मुझे तो लगता है कि यूपी हाथ से निकल गया-अमित शाह


संपादक जी को पता था कि अमित शाह मुझे घास नहीं डालेंगे, क्योंकि उन्हें फेक एनकाउंटर शब्द से ही चिढ़ है। पिछली बार भी वे बिदक गए थे। फेक एनकाउंटर छपने के बाद तो वे और भी बिफरे थे और मैंने बीजेपी अपने परिचित दो-तीन नेताओं के ज़रिए किसी तरह उन्हें सँभाला था। इस बार तो पक्का ही था कि वे मुझे देखते ही ऐसे भड़केंगे जैसे लाल कपड़ा देखकर साँड़। मगर संपादकजी को इससे क्या? मेरी जान जाती है तो जाए। उन्हें तो बस कुछ गरमागरम मसाला चाहिए। लिहाज़ा उन्होंने मुझे शिकार की तरह आगे कर दिया। मरता क्या न करता इसलिए मैं भी जुट गया दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के ख़तरनाक अध्यक्ष को साधने में।

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मुझे अंदाज़ा था और बहुत से लोगों ने बताया भी था कि कोई गुजराती ही मेरी नैया पार लगा सकता है क्योंकि दोनों गुजराती किसी और पर भरोसा नहीं करते। लिहाज़ा, मैंने गुजरात के पत्रकार मित्रों से मदद की गुहार लगाई। एक मित्र ने एक ऐसे गुजराती से मिलवाया जो मोदी-शाह की ओर से ट्रोलिंग करने वाली सेना की कमान संभालने वालों में से था। उसने ले जाकर मुझे अमित शाह के सामने खड़ा कर दिया। चुनावी व्यस्तता में शाह ने किसी तरह के परिचय की ज़रूरत को दरकिनार करते हुए कहा, पांचजघन्य से आए हो न....पूछो क्या पूछना है। मैं समझ गया कि वे कन्फ्यूजन में हैं, मगर मैने कन्फ्यूजन दूर करने के बजाय उसका फ़ायदा उठाया और बिना वक़्त जाया किए सवाल शुरू कर दिए।


अमित जी, लोगों को लग रहा है कि बीजेपी घबराई हुई है।
आपको ऐसा क्यों लगता है?

मोदीजी के बयानों में जो खिसियाहट है, जिस तरह से वे काँग्रेस और समाजवादी पार्टी पर हमले कर रहे हैं, जिस तरह की ज़बान बोल रहे हैं उससे?
मोदीजी की तो ये ओरिजिनल भाषा है। वे तो इसी भाषा के कारीगर हैं। चुनाव के दौरान तो वह और भी खिल जाती है, जैसी कि अभी खिली हुई है।

लेकिन उसमें वैसा आत्मविश्वास नहीं दिख रहा। ऐसा लगता है जैसे वे हारती बाज़ी को किसी तरह बचाने के लिए लड़-झगड़ रहे हों?
अब ये आप मीडिया वालों के कयास हैं। उनकी छाती का नाप ले लो, अभी भी वही है। अगर भरोसा में कमी आती तो वह पिचक जाती।

देखिए, लोग तो ये भी देख रहे हैं कि आप घबराए हुए हैं?
अब आपने साहेब को छोड़कर मुझको लपेटना शुरू कर दिया।

आप में और साहेब में अंतर क्या है....दो बदन एक आत्मा ही तो हैं। लाज़िमी है कि दोनों की बॉडी लैंक्वेज भी एक जैसी ही हो जाएगी।
अब ये बॉडी लैंग्वेज-वैंग्वेज आप लोग ही समझो। मुझे तो ये पता है कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी

सबसे बड़ी पार्टी क्यों, बहुमत क्यों नहीं? आप आश्वस्त नहीं लग रहे जीत को लेकर?
आप लोग भी बाल की खाल बहुत निकालते हो। आपको कैसे लग रहा है कि मैं आश्वस्त नहीं हूँ। अरे जो पॉलिटिकल सिचुएशन है उसी के हिसाब से बता रहा हूँ। वो भी आप अपने अख़बार से आए हो इसलिए ऐसा कह रहा हूँ। कोई दूसरा आया होता तो ज़रूर कहता कि पूर्ण बहुमत, बल्कि दो तिहाई बहुमत मिलेगा। ये भी कहता कि सन् 2014 की तरह मोदीजी की लहर चल रही है और उसमें सब बह जाएंगे। लेकिन जो ज़मीनी सचाई है उसे तो मैं इग्नोर नहीं कर सकता न।
अपना अख़बार सुनकर मैं थोड़ा असहज हो गया था, मगर अपना काम निकालना था इसलिए चुप रह गया और अगला सवाल दाग़ने में जुट गया।


अच्छा अब अपने अख़बार को सच-सच बता दीजिए कि अपनी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी भी बन पाएगी या नहीं?
देखो मैं यक़ीन के साथ कह नहीं सकता क्या होगा, क्योंकि हवा तो इस बार मुझे अखिलेश यादव की लग रही है और क्या पता अंडरकरंट बहिनजी का भी हो। ट्राएंगुलर फाइट में किसी की भी लुटिया डूब सकती है और कोई भी किनारे लग सकता है। इसलिए आप ये भी कह सकते हैं कि सबके लिए चांस है।

बीजेपी के लिए कितने चांस हैं?
कह नहीं सकता। मगर बीजेपी के फेवर में शुरू में जो हवा बनी थी अब वह नहीं है। ऐसे में मुझे लगता है कि यूपी हमारे हाथ से फिसल गया है।

क्या यही डर है जिसकी वजह से आप बार-बार रणनीति बदल रहे हैं? कभी सपा-काँग्रेस गठबंधन को निशाना बनाते हैं, तो कभी केवल काँग्रेस या सपा को। कभी नोटबंदी पर वोटिंग करवाने की चुनौती देने लगते हैं।
देखिए चुनाव तो एक तरह की जंग होती है और इसमें जीत के लिए हर तरह के अस्त्र-शस्त्र आज़माने पड़ते हैं। हम लोग यही कोशिश कर रहे हैं कि अगर एक हथियार कारगर साबित नहीं हो रहा तो दूसरा उठा लो।

इसका मतलब है कि हिंदुत्व का मुद्दा काम नहीं कर रहा?
ये तो मैं नहीं कहूँगा, मगर ऐसा लगता है कि मतदाता इसको लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं।

और विकास का मुद्दा तो पहले ही फुस्स हो चुका है?
अरे हिंदुस्तान में चुनाव कभी विकास के मुद्दे पर लड़े या जीते जाते हैं। उसके लिए भावनात्मक मुद्दे लाने होते हैं। मतदाताओं में उन्माद पैदा करना होता है। लोकसभा चुनाव में मुज़फ़्फरनगर के दंगों ने ये काम कर दिया था, मगर इस बार हमारा कोई भी मुद्दा चल नही रहा है। लोगों को मुलायम परिवार के ड्रामे में ज़्यादा मज़ा आ रहा है। वे सपा को वोट देंगे या नहीं ये बाद की बात है, मगर सचाई तो यही है कि चुनाव में मोदीजी से ज़्यादा बातें अखिलेश यादव की हो रही हैं। काँग्रेस से गठबंधन ने उन्हें और भी मज़बूत कर दिया है।

आपको नहीं लगता कि बीजेपी की कैंपेन इसलिए भी काम नहीं कर रही क्योंकि उसने मुख्यमंत्री पद का कोई दावेदार नहीं दिया और सबको पता है कि मोदीजी तो दिल्ली छोड़कर यूपी सँभालेंगे नहीं?
आप ठीक कहते हैं। हमारे कैंडिडेट डिक्लेयर न करने से एक वैक्यूम पैदा हो गया और अखिलेश यादव उसको भर रहे हैं। हम मोदीजी को बेचने की कोशिश कर रहे हैं मगर यूपी के मार्केट में कोई उन्हें खरीदने को तैयार नहीं दिखता। यूपी का गोद लिए जाने की मोदीजी की टिप्पणी का भी लोगों ने मज़ाक बना दिया है।

आपको एहसास है कि अगर आप यूपी हार गए तो आपके साथ क्या हो सकता है?
कुछ नहीं होगा मेरा। मैं बना रहूँगा क्योंकि मेरी पीठ पर मोदीजी का हाथ है और मेरे बिना उनका काम चल नहीं सकता। वे मुझे छोड़ेंगे नहीं और किसी और में ये दम नहीं है कि मुझे हाथ भी लगाए।


मोदीजी की ताक़त पर इतना भरोसा? कहीं ऐसा न हो कि भारी पड़ जाए? पार्टी के अंदर बगावत हो जाए और आप तथा साहब दोनों नप जाएं?
(ज़ोर से ठहाका लगाय़ा) आप लोग पता नहीं किस दुनिया में रहते हो। अरे पार्टी मे सब पूँछ हिलाने वाले लोग हैं। किसी में भी दम नहीं है कि मोदीजी या मुझ पर हाथ भी लगाने की सोचे। सब सरेंडर कर चुके हैं। मत भूलिए कि संघ मोदीजी के साथ है और बीजेपी नेता उसके विरूद्ध तो जा ही नहीं सकते।

लेकिन यूपी गँवाने के साथ आप लोगों की उलटी गिनती शुरू हो सकती है?
अगर उल्टी गिनती शुरू होगी तो हम उसे सीधी कर देंगे। आप चिंता न करो.....आप तो अपना अख़बार संभालो...उसे हिंदुत्व का झंडाबरदार बनाओ। बाक़ी तो हम संभाल लेंगे। हमें गुजरात में हर तरह के अनुभव हुए हैं और हम चाहते हैं कि उन्हें देश भर में बाँटें।

लेकिन ये तो तय है कि यूपी में हार से मोदीजी का इक़बाल कमज़ोर पड़ेगा, उनकी स्वीकार्यता घटेगी।
ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि चुनाव के बाद हमारी योजनाएं क्या होती हैं, हम हालात को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए हम क्या करते हैं।

आप क्या करेंगे? सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे? पाकिस्तान से जंग लड़ेंगे? हिंदुत्व का ज़ोर बढ़ाएंगे?
ये अभी नहीं बताया जा सकता। वैसे भी क्या पता चुनावी ऊँट हमारी तरफ मुँह करके बैठे। फिर तो मेरी भी जय-जय होगी और साहेब की भी। 11 मार्च का इंतज़ार कीजिए। आप तो अपने आदमी हैं, आपसे कुछ छिपा थोड़ी रहेगा।

मुझे धुकधुकी लगी हुई थी कि इधर शाह मुझे अपना आदमी समझकर उद्गार प्रकट किए जा रहे हैं और उधर कहीं असली वाला आ गया तो मेरा तो सचमुच का एनकाउंटर हो जाएगा। लिहाज़ा मैंने मुस्कराकर उनका धन्यवाद् किया और चला आया।

मुझे तो लगता है कि यूपी हाथ से निकल गया-अमित शाह

Written by-डॉ. मुकेश कुमार


डॉ. मुकेश कुमार










वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।


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