आज नहीं तो कल, बोर्ड पर कब्ज़ा करके रहूँगा-अनुराग ठाकुर


लोग चकित हैं कि सुप्रीम कोर्ट से लगातार फटकार मिलने के बावजूद अनुराग ठाकुर एंड कपनी सुधर क्यों नहीं रही। यहाँ तक कि कोर्ट ने उन्हें बेइज्ज़त करके उनके पदों से हटा दिया है, मगर वे ढिठाई के साथ अड़े हुए हैं और तरह-तरह की तिकड़में करके फिर से काबिज़ होने के रास्ते तलाश रहे हैं। वे कभी किसी को धमका रहे हैं तो कभी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ही चुनौती दे रहे हैं।

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अनुराग ठाकुर की हालत तो सबसे विचित्र है। उनका खाना-पीना सब छूट गया है और उन पर बस एक ही धुन सवार है कि कैसे जस्टिस लोढ़ा की योजना को विफल कर दिया जाए। वे राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करने की कोशिश भी कर रहे हैं, मगर मुश्किल ये आ रही है कि इस बार उनका पाला पड़ा है अदालत से जिसका रवैया बहुत सख्त नज़र आ रहा है।

एक दिन एक मंत्री से अपने मालिक के किसी काम की सिफ़ारिश करके निकल रहा था कि वे मुझे वहीं मिल गए। भरे तो हुए ही थे, फौरन एनकाउंटर के लिए मान गए। मैं उनकी शानदार कार में सवार हो गया और वहीं सवाल जवाब का सिलसिला शुरू कर दिया।

अनुराग जी, ये तो हद हो गई.....आप लोग सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान नहीं कर रहे हैं। यहां तक कि आपको पदों से हटा दिया गया है पर फिर भी आप लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे सुप्रीम कोर्ट कुछ हो ही न?
देखिए, ग़लती सुप्रीम कोर्ट की है, मेरी नहीं। उसे क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के कामकाज में दखल ही नहीं देना चाहिए था। आख़िर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड कोई मामूली संस्था तो नहीं है, उसका रुतबा सरकार से, यहाँ तक कि इस देश के सविधान और कानून से भी ऊपर है ये बात उसे समझ में आनी चाहिए थी। पिछली सरकार ये समझती थी और मौजूदा भी समझती है इसलिए उन्होंने कभी उसमें दखलंदाज़ी नहीं की। अगर करने की कोशिश हुई तो बीसीसीआई ने उसे ठीक कर दिया। अजय माकन के प्लान की याद है न आपको?

लेकिन सुप्रीम कोर्ट जो भी कर रहा है क्रिकेट की बेहतरी के लिए ही तो कर रहा है। ये ज़रूरी है कि बीसीसीआई का काम ठीक ढंग से चले, उसका प्रशासन बेहतर हो?
हम जैसा चला रहे थे, अच्छा चला रहे थे। क्रिकेट का विस्तार हो रहा था, खूब पैसा आ रहा था, भारतीय क्रिकेट टीम अच्छा परफार्म कर रही थी और किसी को क्या चाहिए था? उसे इसी तरह हमें चलाने देते। लेकिन नहीं हमारी कामयाबी सबकी आँखों में खटक रही थी इसलिए हमारे पीछे पड़ गए।

आपकी कामयाबी नहीं आप लोगों के तौर-तरीके खटक रहे थे?  आप लोग न तो फंड का सही इस्तेमाल कर रहे थे और न ही आपके प्रशासन में पारदर्शिता थी?
आपको पारदर्शिता का क्या करना है, अचार डालना है? अरे आपको तो आम खाने से मतलब रखना चाहिए, गुठली गिनने से नहीं। और हमने तो आम के नहीं नोटों के पेड़ बल्कि बागीचे ही लगा दिए थे। हर तरफ पैसे फल-फूल रहे थे। पैसे कहाँ से आ रहे हैं, कैसे खर्च हो रहे हैं इससे किसी का क्यों मतलब होना चाहिए? आप तो मज़े से मैच देखिए और हमें अपना काम करने दीजिए।

आप लोगों ने क्रिकेट को अय्याशी का अड्डा बना दिया था। वह आप लोगों की जागीर बन गई थी। तमाम नियमों की ऐसी-तैसी की जा रही थी। करप्शन भी था?
हाँ था तो? कहाँ नहीं है ये सब? सब जगह है, इसलिए अगर बोर्ड में भी ऐसा हो रहा था तो इसमें कोई बड़ी बात तो थी नहीं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट को ये समझ में नहीं आ रहा कि क्रिकेट अब खेल नहीं धंधा है और धंधे को धंधे के हिसाब से ही चलाया जाना चाहिए। हम यही कर रहे थे। हमने उसे एक सफल उद्योग में तब्दील कर दिया था और उसे मल्टी नेशनल कंपनी बना रहे थे। इससे हमारा क्रिकेट का कारोबार दूसरे देशों में भी फैल रहा था।

देखिए खेल खेल है और उसे धंधेबाज़ों से बचाया जाना चाहिए शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने आप लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
तो बचाकर देख ले। हम बचने देंगे तब न। मत भूलिए कि हम राजनीतिज्ञ भी हैं और मेरे जैसे दर्ज़नों नेता क्रिकेट के इस कारोबार का मज़ा ले रहे हैं। कोई इससे मिलने वाले सेलेब्रिटी स्टेटस को और तमाम तरह की सुविधाओं को छोड़ना नहीं चाहता। वे सब हमारे साथ हैं और हम आज नहीं तो कल फिर से बोर्ड पर काबिज़ हो जाएंगे। अव्वल तो हम ऐसा सिस्टम बनने ही नहीं देंगे। इतनी अड़चनें खड़ी करेंगे कि लोढ़ा साहब खुद बोरिया-बिस्तर समेट लेंगे। अगर वे अभी कामयाब हो भी गए तो हम बाद में सब उलटकर रख देंगे। आप लोगों को हमारी ताक़त का अंदाज़ा नही है।

देखिए, ये ज़िद अच्छी नहीं है। एक तो आप लोग फर्ज़ी तरीके से बोर्ड पर कब्ज़ा जमाए बैठे थे। आप तो खुद जानते है कि आप किस तरह से पहले हिमाचल प्रदेश क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष बने थे। आपके पिता मुख्यमंत्री थे और आपने उसका नाजायज़ फ़ायदा उठाया था। इसी तरह आप भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। और आप ही क्यों जेटली, लालू यादव, शरद पवार, तमाम लोगों ने यही किया।
देखिए राजनीति और मोहब्बत में सब कुछ जायज़ होता है। आपको आगे बढ़ने के लिए हर तरह की जोड़-तोड़ करनी पड़ती है। कभी मोदीजी से पूछिएगा कि वे प्रधानमंत्री पद पर कैसे पहुँचे? अगर वे सच-सच बता देंगे तो आपको पता चलेगा कि अगर उन्होंने नियमों का खयाल रखा होता तो चाय ही बेचते रह जाते या प्रचारक बनकर दर-दर भटकते रहते। इसलिए कोर्ट को इस सबमें जाना ही नही चाहिए। आखिर अदालतों में कम भ्रष्टाचार है क्या? वहाँ इंसाफ़ का कारोबार नहीं हो रहा क्या? 

आप तो कुतर्क कर रहे हैं.....अगर कहीं ग़लत हो रहा है तो क्या हर जगह होने दिया जाए? बहरहाल, ये तो अच्छा है न कि खेल को वे ही सँभालें जो उसे समझते हैं और जिनका उससे जुड़ाव रहा है? जिसने कभी क्रिकेट का बल्ला-गेंद न पकड़ी हो या पकड़ी भी हो तो फर्जीवाड़े के लिए वह क्यों खिलाड़ियों का और खेल का भविष्य तय करे?
इसलिए कि हम क्रिकेट का भविष्य उनसे अच्छा बना सकते हैं। खिलाड़ियों को धंधेबाज़ी नहीं आती और न ही वे मैनेजमेंट जानते हैं। वे बस खेल जानते हैं।

जी नहीं, बहुत से खिलाड़ी खेल के साथ प्रशासन में भी माहिर होते हैं अगर उन्हें मौका मिले तो बहुत कुछ कर सकते हैं, मगर आप नेता लोगों ने उनका रास्ता रोक रखा था। आप लोगों ने हर स्तर पर भाई भतीजावाद को ही प्रोत्साहित किया?
कोर्ट में भी तो भाई-भतीजावाद है, वहाँ भी तो भेदभाव हो रहा है, वहाँ की सफाई क्यों नहीं की जा रही?

फिर वही कुतर्क। आप स्वीकार क्यों नहीं कर रहे कि खिलाड़ियों के चयन तक में भेदभाव होता है, बहुत से अच्छे खिलाड़ियों को मौक़ा ही नहीं मिलता क्योंकि उनको बैक करने वाला नहीं होता जबकि कमज़ोर खिलाड़ी बैकिंग के सहारे आगे बढ़ जाते हैं? 
चलिए मैं मान लेता हूँ कि हम लोग भेदभाव कर रहे थे। लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि खिलाड़ी भेदभाव नहीं करेंगे? वे भी तो करते ही हैं। इसके कई मामले हमारे सामने हैं। वे भी हमारी तरह इंसान हैं, उनके भी भाई-भतीजे हैं, अपने प्रिय हैं। वे भी वही करेंगे जो हग कर रहे थे, बस होगा ये कि नेता की बजाय वहाँ खिलाड़ी बैठा होगा। 

देखिए लोड़ा कमेटी अच्छा काम कर रही है। उसने बुड्ढों का रास्ता बंद कर दिया है। क्रिकेट के मैनेजमेंट में ट्रांसपैरेंसी के रास्ते सुझाए हैं, करप्शन को काबू में करने की व्यवस्था दी है। आप लोगों को चाहिए कि क्रिकेट के हित में और देश हित में भी आप लोग अड़चने खड़ी करने के बजाय उनका सहयोग करें। 
देखिए हमारे लिए सर्वोपरि है अपना हित। अगर हमें हमारा हित पूरा करने का अवसर दिया जाएगा तो हम निश्चय ही क्रिकेट और देश के बारे में सोच सकते हैं। लेकिन अगर हमें बाहर करके हमसे सहयोग की उम्मीद की जाएगी तो मुझे माफ़ कीजिए, मैं और मेरे साथी हर संभव कोशिश करेंगे कि ये प्रयोग सफल न हो। बल्कि जितने भी खेल संघ है सबके प्रशासक चाहते है कि ये प्रयोग विफल हो क्योंकि अगर ये कामयाब हो गया तो फिर बाक़ियों की भी बारी आ जाएगी।


देखिए, मान जाइए और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सम्मान कीजिए, वर्ना अब अगर वह नाराज़ हुआ तो सीधे अंदर कर देगा मानहानि के जुर्म में?
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने हमको यही सिखाया है कि किसी की परवाह न करो, न सरकार की, न कानून की और न ही दर्शकों की। परवाह करना है तो रूपैया की करो, क्योंकि वह आता रहेगा तो सबसे निपट सकते हो। इसीलिए मैं कहता हूँ कि आज नहीं तो कल मैं फिर से बोर्ड पर कब्ज़ा कर लूंगा।

मैं समझ गया कि अनुराग ठाकुर अभी भी हवा में उड़ रहे है। उनके सहयोगी उनमें हवा भी भरे जा रहे हैं और जब तक गुब्बारा फटेगा नहीं तब तक वे ज़मीन पर नहीं आएँगे। इस बीच मेरा बस स्टॉप आ गया था इसलिए मैंने उन्हें जयहिंद कहा और विदा ले ली।

आज नहीं तो कल, बोर्ड पर कब्ज़ा करके रहूँगा-अनुराग ठाकुर

Written by-डॉ. मुकेश कुमार


डॉ. मुकेश कुमार












वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।


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