ट्रम्प ही नहीं अमरीकी समाज भी बीमार है


सुनने में हास्यासपद लगता है मगर बात बहुत गंभीर है। गंभीर इसलिए है कि इसने उस अमेरिकी समाज को बेहद असमंजस और लज्जास्पद स्थिति में डाल दिया है, जो खुद को सबसे संपन्न, विकसित और महाज्ञानी मानता है। वह इस बात की धौंस दुनिया पर जमाने में कोई कोर-कसर भी वह बाक़ी नहीं रखता है। उसे इस चीज़ का भी दंभ रहता है कि सच्चा लोकतंत्र अगर कहीं है तो अमेरिका में और इसी ग्रंथि की वजह से वह दूसरे देशों में लोकतंत्र का निर्यात करना भी अपना विशेषाधिकार और कर्तव्य समझता है। लेकिन विडंबना देखिए कि एक ही घटना ने उसके इस अतिआत्मविश्वास की नींव हिलाकर रख दी है और वह बहुत ही चिंतित तथा व्याकुल दिखलाई दे रहा है। ये घटना है डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका का राष्ट्रपति चुना जाना। हालाँकि उनके चुनाव को भी एक वक़्त गुज़र चुका है और अब तक अमरीकियों को उसे जज़्ब कर लेना चाहिए था, मगर ऐसा हुआ नहीं है। उसके दिमाग़ में खलबली मची हुई है और वह इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि ट्रम्प उसके राष्ट्रपति होंगे।
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ऐसा भी नहीं है कि अमेरिकी समाज में ट्रम्प को लेकर ये बेचैनी अभी पैदा हुई हो। ये तो तब से है जब वे राष्ट्रपति पद की दावेदारी के लिए मैदान में कूदे थे। उसकी ये व्याकुलता लगातार व्यक्त भी होती रही है। न केवल विरोधियों ने ट्रम्प के चरित्र के संबंध में अपनी चिंताएं खुले आम प्रकट की थीं, बल्कि उनकी पार्टी के ही अधिसंख्य नेता उनके निंदक बन गए थे। लेकिन तब शायद लोगों ने इस उम्मीद में अपनी असहजता को दबाकर रख रहा था कि ट्रम्प चुने ही नहीं जाएँगे। अब चूँकि अप्रत्याशित ढंग से ट्रम्प चुने जा चुके हैं और जनवरी में वे पदभार भी सँभाल लेंगे तो वह खुद को रोक नहीं पा रहा है।




अमेरिकी समाज की इस बेचैनी को उन चिंताओं में पढ़ा जा सकता है जो कि ट्रम्प के मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में प्रकट की जा रही हैं। ये चिंताएं किसी कॉफी हाउस की गपबाज़ी में नहीं ज़ाहिर हो रहीं हैं या उनके राजनीतिक विरोधी किसी अभियान के तहत ऐसा कर रहे हैं। ये चिंता अमेरिका के बहुत ही प्रबुद्ध वर्ग की है और वह इसे राष्ट्रीय संकट के तौर पर प्रस्तुत कर रहा है। अमेरिका के तीन बड़े विश्वविद्यालयों के जाने-माने मनोचिकिस्सकों ने ट्रम्प की मनोदशा पर संदेह प्रकट किया है और राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखकर बाकायदा अपील कर डाली है कि इससे पहले कि ट्रम्प राष्ट्रपति पद सँभालें उनके मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण करवाएं। उनका मानना है कि ट्रम्प मानसिक रूप से स्थिर नहीं हैं।

ऐसा किसी देश के इतिहास में शायद ही कभी हुआ होगा कि किसी चुने हुए राष्ट्राध्यक्ष के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में इस तरह से सार्वजनिक रूप से संदेह प्रकट किए जाएं। ख़ास तौर पर जब अमेरिका जैसा विकसित और शिक्षित आबादी वाले देश में ऐसा हो रहा हो तो ये अनहोनी जैसा ही लगता है। मगर ये अनहोनी नहीं हक़ीक़त है। ऐसा भी नहीं है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद इस तरह के संदेह खड़े किए जा रहे हैं, बल्कि पिछले एक साल में ही कई बार अमेरिकी (और बाहर के भी) मनोचिकित्सक ट्रम्प की मानसिक बीमारियों के बारे में सार्वजनिक स्तर पर अपने विचार प्रकट कर चुके हैं। खुद राष्ट्रपति बराक ओबामा ही ट्र्म्प को राष्ट्रपति पद के लिए मानसिक रूप से अक्षम घोषित कर चुके हैं, जो कि सामान्य बात नहीं थी। गत अगस्त में आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद के दावेदारों का मनोविश्लेषण करके बताया था कि ट्रम्प में अडोल्फ हिटलर से भी अधिक मनोरोगी प्रवृत्तियाँ हैं। ये प्रवृत्तियाँ उन्हें नाज़ीवाद के करीब ले जाती हैं। उन्होंने ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि के आधार पर बनाए गए पैमाने का उपयोग करते हुए ये निष्कर्ष निकाले थे। सामाजिक प्रभावों और निडरता के मामले में ट्रम्प हिटलर से आगे थे। ये प्रवृत्तियाँ उनमें नकारात्मक अर्थों में मौजूद थीं यानी उन्हें समाज के लिए घातक माना जा सकता है।




वैसे ट्रम्प ने खुद अपने कर्मों से ऐसे प्रमाण दिए हैं जिनसे उनकी मनोदशा के बारे में अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया में यही धारणा बनी है कि वे संतुलित सोच वाले व्यक्ति नहीं हैं। न तो उनका अपनी ज़ुबान पर नियंत्रण है और न ही वे अपने कार्य-कलापों से आश्वस्त कर पाते हैं। मनोचिकित्सकों की नज़र में तो वे आत्ममुग्ध, नस्लवादी घृणा से भरे हुए, जल्दी ही उत्तेजित हो जाने वाले, अति-संवेदनशील, छोटी सी आलोचना से भी भड़क जाने वाले, कल्पना और यथार्थ में फर्क न कर पाने वाले, बेहद असंतुलित व्यक्ति हैं ही, मगर यदि आम लोगों से भी पूछा जाएगा तो उनकी राय भी कुछ इसी तरह की होगी। इसलिए ये आशंका वाज़िब ही है कि अगर एक मनोरोगी अमेरिका जैसी महाशक्ति का नेतृत्व करेगा तो कभी भी कोई दुर्घटना घट सकती है।

उम्मीद की जा रही थी कि राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ट्रम्प खुद को बदलेंगे और खुद को भावी राष्ट्रपति के हिसाब से ढाल लेंगे। शुरूआत में उन्होंने ये संकेत भी दिए, मगर उसके बाद से वे लगातार ऐसा काम करते जा रहे हैं जिनसे किसी तरह की आश्वस्ति नहीं मिलती। उन्होंने विभिन्न पदों के लिए जिन लोगों को चुना है वे भी उनकी उसी विचारधारा के पोषक हैं जिसमें अश्वेतों और ग़ैर अमरीकियों के प्रति नफ़रत तथा संदेह भरा पड़ा है। यही नहीं, उन्होंने अभी पद सँभाला भी नहीं है और चीन के साथ वाक्युद्ध छेड़ दिया है, जिससे टकराव के बढ़ने की आशंका पैदा हो गई हैं। ट्रम्प के इस चरित्र से अंतरराष्ट्रीय राजनीति कब विस्फोटक मोड़ ले ले कहा नहीं जा सकता। ये भी सोचें कि राष्ट्रपति के हाथों में परमाणु बमों जैसे महासंहारक शस्त्रों के बटन होते हैं और अगर कोई मनोरोगी के हाथ में वे पहुँच गए तो क्या होगा।




वैसे मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों को ट्रम्प का ही मनोविशेषण नहीं करना चाहिए। उन्हें तो अमेरिकी समाज की मनोदशा का भी अध्ययन करना चाहिए और पता करना चाहिए कि वे कौन से कारण हैं जिनकी वजह से अमरीकियों ने ट्रम्प जैसे नेता का चुनाव राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद के लिए किया है। कहीं अमेरिकी समाज ही तो मनोरोगों की जकड़ में तो नहीं आता जा रहा, कहीं उसके एक बड़े हिस्से में ऐसी गाँठें तो नहीं पड़ गई हैं जो नस्लवाद और फासीवाद को समर्थन देती हैं? अगर बीमार अमरीकी समाज ही है तो ट्रम्प जैसे नेता वह पैदा करता रहेगा। ट्रम्प की बीमारी समाज की बीमारी है और उसका इलाज भी समाज के इलाज से ही होगा।


ट्रम्प ही नहीं अमरीकी समाज भी बीमार है
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