ये हार शिवसेना की नहीं, मराठियों की है-उद्धव ठाकरे


मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में बीजेपी की अभूतपूर्व सफलता से शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे बिफरे हुए हैं। हालाँकि उनकी पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटें मिली हैं, मगर अपना मेयर बनवाने के लिए उन्हें बीजेपी के रहम की दरकार आन पड़ी है। जिस तरह से उन्होंने और उनकी पार्टी ने पिछले ढाई साल में सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले किए हैं, उसके बाद उसी के सामने हाथ फैलाना उनके लिए बहुत ही अपमानजनक स्थिति है। लेकिन उनके पास कोई रास्ता भी नहीं बचा है, क्योंकि अगर वे गर्दन नहीं झुकाएँगे तो बीजेपी अपना मेयर चुनवाकर उसे उसकी रही-सही हैसियत से भी वंचित कर देगी। इस बौखलाहट में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मोदी के लिए और भी कड़वे वचन उनकी ज़ुबान से निकल रहे हैं। ये बात और है कि सामना में केवल उतना छपता है जिससे उनकी शेर वाली छवि भी बनी रहे।

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मैं जब उनका एनकाउंटर करने उनके सामने था तो लगा कि बेशक़ उद्धव अभी भी अकड़े हुए हैं मगर आत्मविश्वास हिला हुआ है। यहाँ तक कि उनके पीछे लगी तस्वीर में भी शेर घबराया हुआ दिखाई दिया। मैं समझ गया कि आज घबराहट में उद्धव और भी नख-दंत दिखाएँगे और हुआ भी यही। वे घायल शेर की तरह बीजेपी पर हमले करने लगे। बातचीत कुछ इस तरह हुई-

उद्धव जी, पूरे महाराष्ट्र में तो बीजेपी का प्रदर्शन दस गुना बेहतर हुआ ही है, मुंबई में भी उसने आपको पसीने छुड़वा दिए हैं। लगता है वह शेर को माँद में भेजकर ही दम लेगी?
शेर तो शेर ही होता है और भेड़िए कभी उसे न डरा सकते हैं और न ही हरा सकते हैं। कई बार भेड़ियों का झुंड शेर पर हमला करके उसे भगा देता है और समझ लेता है कि उसने उसे हरा दिया मगर वह जानता नहीं है कि शेर फिर से पलटकर आएगा और एक-एक को सबक सिखाएगा।

आप बीजेपी की तुलना भेड़ियों के झुंड से कर रहे हैं। लगता है कि आपका गुस्सा अभी तक उतरा नहीं है?
गुस्सा कैसे उतरेगा? वह तो भेड़ियों को भगाने से ही उतरेगा न। मुंबई और दिल्ली के भेड़ियों को जब तक महाराष्ट्र से बाहर नहीं खदेड़ दूँगा तब तक मैं चैन से बैठने वाला नहीं हूँ।

आप भूल रहे हैं कि जिन्हें आप भेड़िया कह रहे हैं उन्हीं की मदद से आपको अभी अपना मेयर भी चुनवाना है?
मेरी ज़रूरत है तो क्या मैं भेड़िए को मेमना कह दूँ, हरगिज़ नहीं। वैसे ये मेरी जितनी मजबूरी है उतनी ही बीजेपी की भी। उसे हमारा समर्थन करना ही होगा, वर्ना वह जानती है कि इसका नतीजा क्या होगा। गडकरी जो इतनी नरमी दिखा रहे है तो इसीलिए कि वह जानते हैं कि शिवसेना को नाराज़ करके बीजेपी का काम न महाराष्ट्र में चलने वाला है न दिल्ली में। मत भूलिए कि अभी राष्ट्रपति चुनाव भी होने वाले हैं।

लगता है कि आप अपनी हार को पचा नहीं पा रहे। चुनाव में मतदाताओं ने बीजेपी को जिताया है ये बात आपको स्वीकार करना चाहिए?
बीजेपी षड़यंत्रों से जीती है न कि उसे मतदाताओं ने जिताया है। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि बीजेपी ने 12 लाख मराठी मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिए, जो कि हमारे वोटर थे। इसी तरह मोदी और फड़नवीस की सरकार ने पैसे और सत्ता के बल पर मतदाताओं को प्रभावित किया। ये सच्चे चुनाव नहीं थे। ये दिल्ली की हुकूमत का मराठियों पर हमला था। इसके बावजूद शिवसेना ने जो प्रदर्शन किया वह बताता है कि शिवसेना की ताक़त कम नहीं हुई है।

आप पिछले ढाई साल से बीजेपी और मोदी को गरिया रहे हैं। उनके बारे में आपने जाने क्या-क्या नहीं कहा। उनकी नीतियों की खुल्लमखुल्ला निंदा की, उन्हें चोर, लुटेरा, झूठा, मक्कार, चालबाज़ तक बता दिया। आप सरकार में भागीदार रहते हुए ये सब कर रहे हैं। क्या इसका नैतिक अधिकार आपको बनता है?
बिल्कुल बनता है। सरकार में शामिल होने का मतलब मोदीजी की गुलामी कबूल करना नहीं है। उनकी जन विरोधी और देश विरोधी नीतियों का विरोध करना और जनता को उनके ख़िलाफ़ जागरूक बनाना हमारी ज़िम्मेदारी है और हम उसे निभा रहे हैं।

ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं या सत्ता से बेदखल होने की खीझ उतार रहे हैं?
आप चाहे जो मतलब निकाल लें। अगर आप मोदी और अमित शाह के इशारे पर काम कर रहे मीडिया से हैं तो निश्चय ही यही सोचेंगे। मगर यदि मराठियों की तरफ से सोचेंगे तो समझ जाएंगे कि हम उत्तर भारतीयों की पार्टी के प्रभुत्व का, उसके वर्चस्व का विरोध कर रहे हैं।

कमाल है, जब तक सापको सूट कर रही थी तो आपको कोई शिकायत नहीं थी, अब वह आपको मराठी विरोधी लगने लगी। ये बताइए कि आपकी और बीजेपी की विचारधारा तो एक ही है। दोनों हिंदुत्व को मानती हैं और मुसलमानों का विरोध करती हैं। फिर मतभेद क्यों और वे भी इतने तीखे मतभेद क्यों?
हम दोनों भगवाधारी है मगर हमारे हिंदुत्व में फर्क है। हमारा मराठा हिंदुत्व है और बीजेपी का उत्तर भारतीयों वाला हिंदुत्व। बीजेपी मराठों को खयाल नहीं रखती। उसे राष्ट्रीय राजनीति करना है इसलिए उसे मराठियों की कोई परवाह नहीं रहती। वह मुंबई में अगर जीती है तो उत्तर भारतीयों की ही बदौलत।

गडकरी का कहना है कि अब चुनाव के दौरान पैदा हुई कड़वाहट को भूलकर आगे की सोचना चाहिए और दोनों पार्टियों को मिलकर काम करना चाहिए?
ये कड़वाहट तो तभी दूर हो सकती है जब बीजेपी का ये घमंड टूटे कि शिवसेना उसकी बदौलत है। वह भूल रही है कि बीजेपी शिवसेना के कंधों पर सवार होकर ही यहाँ तक पहुँची है और अब वह उसे ख़त्म करने पर आमादा है। हम ऐसा होने नहीं देंगे। हम बीजेपी और उसके नेताओं यानी मोदी, शाह वगैरा को को दिखा देंगे कि उनकी क्या औकात है। सत्ता के मद में वे पागल हाथियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं, मगर उन्हें याद रखना चाहिए कि पागल हाथियों का हश्र क्या होता है।

बीजेपी नेताओं को आपके तेवर और भाषा भी तो पागल हाथियों वाले ही लग रहे हैं? उन्हें लगता है कि आपका अहंकार गठबंधन को सुचारू रूप से चलाने में बाधा पैदा कर रहा है?
सुचारू रूप से क्या मतलब? क्या हम उनकी ग़ुलामी स्वीकार कर लें, हरगिज़ नहीं। वे अब शिवसेना को पूरी तरह कुचल देना चाहते हैं जो कि मराठी जनता होने नहीं देगी।

आपने चुनाव के दौरान कहा था कि चुनाव के बाद राज्य सरकार को समर्थन देने के बारे में विचार करेंगे। इसका क्या मतलब है? कहीं ये गीदड़ भभकी तो नहीं है, ब्लैकमेलिंग का तरीका तो नहीं है?
राजनीति में इसे अपनी शक्ति का सही इस्तेमाल करना कहते हैं। अगर हमारे पास इस सरकार को झुकाने का और अपनी बाते मनवाने का कोई रास्ता है तो हम उसे ज़रूर अपनाएंगे।

लेकिन चुनाव में मिली सफलता से देवेंद्र फड़नवीस तो और भी मज़बूत हो गए हैं। उन्होंने तो आपकी ओर इशारा करते हुए यहाँ तक कह दिया है कि बीजेपी की जीत सरकार के आलोचकों के मुँह पर करारा थप्पड़ है।
फड़नवीस पर अभी कामयाबी का नशा सवार है। छोटी सी जीत ने उन्हें अहंकारी बना दिया है। मगर उन्हें पता नहीं है कि अभी आख़िरी चाल चली जानी है और तब उन्हें पता चलेगा कि थप्पड़ किसके गाल पर पड़ा और वह कितना करारा था।

देखिए सबको पता है कि आप सरकार से समर्थन वापस नहीं लेंगे, क्योंकि सरकार गिराने से आपको कोई फ़ायदा तो होने वाला नहीं है। अगर मध्यावधि चुनाव हुए तो आपकी उतनी सीटें भी नहीं बचेंगी जितनी अभी हैं?
मोदी का मीडिया कयास लगाता रहे कि हम क्या करेगे और क्या नहीं, मगर मैं इतना ही कहूँगा कि उसे इस बात का एहसास नहीं है कि मराठियों में कितनी ताक़त है और वे शिवसेना के साथ कितनी शिद्दत से जुड़े हैं।

आप खुशफ़हमी में तो नहीं हैं? बीजेपी को जिताने वालों में मराठियों की भारी तादाद है, वह केवल उत्तरभारतीयों की बदौलत कामयाब नहीं हो रही है।
अभी हो रही है, मगर मराठियों को जल्दी ही एहसास हो जाएगा कि मोदी और अमित शाह उनके कितने बड़े दुश्मन हैं और उनसे निजात पाना उनके लिए कितना ज़रूरी है। आप देखते जाइए। जल्दी ही ढोल की पोल खुलेगी। ये जो कहा जा रहा है न कि नोटबंदी के समर्थन में वोटिंग हुई है, वह खामखयाली के सिवाय कुछ भी नहीं है। बीजेपी को सफलता काँग्रेस और एनसीपी के हाशिए में चले जाने की वजह से मिली है न कि नोटबंदी की वजह से।

अगर आपको ऐसा लगता है तो आप राज ठाकरे से हाथ क्यों नहीं मिला लेते? वे भी मराठियों की बात करते हैं और उत्तरभारतीयों के विरोधी हैं।
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रख सकती। वैसे उसे मेरा साथ देना चाहिए, मगर बिना किसी शर्त के। बीजेपी मेरी और उसकी दोनों पार्टियों को निगल रही है, इसलिए हम दोनों को लिए ज़रूरी है कि हम एक हो जाएं। लेकिन पहल उसे ही करनी पड़ेगी।

मैंने देखा कि उद्धव ठाकरे चाहे जितनी बहादुरी भरी बातें कर रहे हों मगर उनका चेहरा लगातार उतरता जा रहा है। उनके पीछे लगी तस्वीर में शेर भी और मायूस हो गया है। मैंने दोनों को उनके हाल पर छोड़ा और चला आया।
Written by-डॉ. मुकेश कुमार


डॉ. मुकेश कुमार










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