मीडिया का वश चले तो वह मोदी को वीरता पुरस्कार दिलवा दे


पहले एक चैनल पर ख़बर चली फिर धीरे-धीरे तमाम चैनलों पर चलने लगी। लगभग जैसी भाषा में शब्दों में मामूली सा हेरफेर के साथ वे एक ही संदेश दे रही थीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूरदर्शन के कैमरामैन की जान बचाई।

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ब्रेकिंग न्यूज़ पढ़कर लगा कि आख़िर मोदी जी ने ऐसा कौन सा करतब दिखाया जो उनकी रक्षा के लिए तैनात कमांडों नहीं कर सकते थे या वे करने से चूक गए? क्या उन्होंने सुरक्षा गेरा तोड़कर हैलीकॉप्टर या हवाई जहाज की खिड़की-दरवाज़े से लटकते किसी कैमरामैन को अपने हाथों से पकड़कर खींच लिया या किसी नदी में छलाँग लगाकर उसे बाहर निकाल ले आए?



चैनलों ने इस बारे में बड़ी देर तक कोई जानकारी नहीं दी और मोदीजी की वीरता के चर्चे मीडिया में चलते रहे। बाद में जब ब्यौरे आए तो पता चला कि उन्होंने ख़तरे की जगह पर खड़े कैमरामैन को इशारे से हटने के लिए कहा था और उसने ऐसा न किया होता तो वह बाद में पानी के साथ बह गया होता।

इसमें संदेह नहीं कि पीएम चौकन्ने थे और उन्होंने समय पर कैमरामैन को चेताया, लेकिन इससे कई प्रश्न उठते हैं। पहला तो यही क्या इसे जान बचाना कहा जा सकता है और ये बहादुरी कहीं वैसी तो नही थी जो उन्होंने उत्तराखंड में आई बाढ़ से गुजरातियों को बचाने के लिए दिखाई थी। याद कीजिए उस समय कहा गया था कि उन्होंने लाखों लोगों को बचाया जो कि बाद में महाझूठ साबित हुआ था।

दूसरा सवाल, पीएम के दौरे के वक्त बाक़ी अधिकारी क्या सो रहे थे या चापलूसी में लगे हुए थे? क्या उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि अगर इस दौरान कोई हादसा हुआ तो कितनी बड़ी ख़बर बनेगी और मोदीजी की कितनी किरकिरी होगी? निश्चय ही नहीं था। सब अपने नंबर बढ़ाने में लगे हुए होंगे और किसी ने कैमरा टीम को ऐसी ख़तरनाक़ जगह तक जाने से रोका नहीं होगा।



तीसरा सवाल, दूरदर्शन की टीम भी क्या चापलूसी की तमाम सीमाएं लाँघने पर आमादा थी? निश्चय ही क्योंकि ये कोई ऐसा शूट नहीं था, ऐसी रिपोर्टिंग नहीं थी जिसमें इतने जोखिम से विजुअल लिए जाएं। यदि उन्हें जोखिम का एहसास नहीं था तो तब तो वे अनुभवहीन लोग रहे होंगे। लेकिन अगर तज़ुर्बेकार थे और उन्हें ख़तरे का एहसास भी था तो निश्चय ही मोदी जी को खुश करने के चक्कर में जान दाँव पर लगाने के लिए आमादा हो गए होंगे।

दूरदर्शन, बल्कि सरकार में ही इस समय चाटुकारिता का नया युग चल रहा है इसलिए कुछ भी संभव है। अपने आकाओं को खुश करने के लिए वे अधिकारी कुछ भी करवा सकते हैं और “समर्पित” न्यूज़मेन कुछ भी कर सकते हैं।

लेकिन सबसे मज़ेदार तो मीडिया की भूमिका रही है। उसने इस घटना को इतना महिमामंडित किया मानो उसका वश चलता तो अपनी ओर से वीरता पुरस्कार की घोषणा कर देता। उसने इस घटना पर किसी तरह के सवाल नहीं उठाए और साबित किया कि वह कितना वफ़ादार है। ये वफ़ादारी नई नहीं है, बल्कि उसी सिलसिले की एक और कड़ी है जो पिछले ढाई-तीन साल से हम देख रहे हैं।

Written By-मयंक दवे

If it’s in medias hands it would have got bravery award for Mr. Modi



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