कवयित्री शुभम श्री पर पत्थर बरसाने वाले कौन हैं


साहित्य से जुड़े पुरस्कारों पर विवाद होना कोई नई बात नहीं है और न ही रचनाकारों और रचनाओं का विवादों में फँसना। लेकिन युवा कवयित्री शुभम श्री को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिए जाने पर जिस तरह का हंगामा बरपाया जा रहा है वह आश्चर्यजनक भी है और दुखद भी। वास्तव में ये दिखाता है कि हिंदी जगत किस तरह की क्षुद्रताओं का शिकार है। उसमें न धैर्य है, न संतुलन है और न ही सकारात्मकता।

पुरस्कारों पर प्रश्न खड़ा करना ग़लत नहीं है न ही रचनाओं की गुणवत्ता को प्रश्नांकित करना ही। बल्कि ये ज़रूरी है कि उन पर खुलकर बातचीत हो ताकि लोगों को समझ में आए कि पुरस्कृत रचना कितनी महत्वपूर्ण है और क्यों है। लेकिन अगर ये शल्य क्रिया दुराग्रहों से भरी हो और इसका उद्देश्य किसी को लाँछित करना हो जाए तो उसकी निंदा ही की जा सकती है।

शुभम श्री की पुरस्कृत कविता पोएट्री मैनेजमेंट (कविता पढ़ने के लिए नीचे जाएं) पर अधिकांश टीका-टिप्पणियाँ अच्छे टेस्ट में नहीं कही जा सकतीं। उसकी मीमांसा में बदनीयत स्पष्ट दिखती है। अगर कोई इस जानदार कविता की तुलना हनी सिंह के बाज़ारू गानं से कर रहा है या कोई उसकी पैरोडी बनाकर मज़े ले रहा है तो ये स्पष्ट है कि वह गंभीर नहीं है।

सवाल उठता है कि आख़िर इस नई कवयित्री ने ऐसा क्या कर दिया जो लोगों की आँखों में चुभ रहा है?
शायद पहला काम तो शुभम श्री की कविता ने ये किया है कि उसने हिंदी जगत में जड़ें जमाए बैठे पंडिताऊ अनुशासन को एक ज़ोर की किक लगाई है। कविता के प्रचलित ढाँचे को तो तोडते हुए उसने उस चिंतन के भी धुर्रे उड़ा दिए हैं जो थके हुए विचारों और उससे भी थके अंदाज़-ए-बयाँ में बँधी सडॉंध मारने लगी थी।

हिंदी की अकादमिक दुनिया को नवाचार और अभिनव प्रयोगों से हमेशा दिक्कत रही है। वह उन्हें ठुकराती रही है उनका मज़ाक बनाती रही है। लेकिन उसका दुर्भाग्य ये है कि पाठक जगत उसके ठीक विपरीत सोचता है। वह नई चीज़ों को तेज़ी के साथ लपकता है, उन्हें सराहता है।




शुभम श्री की कविता में एक किस्म की ताज़गी है। ये ताज़गी रचनाकार की साहसिकता और काव्य की समझ से पैदा हुई है। भाषा के खिलंदड़ेपन का इस्तेमाल करते हुए वह विभिन्न स्तरों पर अनोखे अंदाज़ में प्रयोग करते हुए नए अर्थ खोलती है।

इसमें संदेह नहीं कि शुभम श्री एक युवा कवयित्री हैं और इस उम्र में दिखने वाले आवेग भी उनकी कविताओं में हैं, मगर उन्हें कमज़ोरी की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि नज़रिया ये होना चाहिए कि वे एक अच्छी रचनाकार बनने की प्रक्रिया से गुज़र रही हैं।

शुभम श्री पर कोप वर्षा की एक वजह शायद उन्हें पुरस्कार के लिए चुनने वाले उदयप्रकाश हैं। हिंदी जगत में अगर उदयप्रकाश को चाहने वाले अनगिनत हैं तो उनके निंदकों का एक गिरोह भी है जो ताक में रहता है कि कब मौक़ा मिले और हमला बोला जाए।

कई निंदकों ने तो बाकायदा कह भी दिया है कि वे शुभम श्री को पुरस्कृत किए जाने का नहीं बल्कि जूरी यानी उदयप्रकाश का विरोध कर रहे हैं। वे उदयप्रकाश के चयन में खोट निकालना चाहते हैं और इस चक्कर में शुभम श्री तथा उनकी कविता पर हमले कर रहे हैं। ऊपर जिस क्षुद्रता की बात की गई थी वो यही है। ये दुखद है कि हिंदी वाले अपने आपसी राग-द्वेष से ऊपर उठकर कुछ देख ही नहीं सकते।

हो सकता है कि उदयप्रकाश ने कविता की गुणवत्ता के साथ-साथ कवयित्री की सामाजिक एवं लैंगिक पृष्ठभूमि का ध्यान रखा हो लेकिन अगर ऐसा है भी तो इसमें बुराई क्या है? क्या ये सच नहीं है कि साहित्य जगत में ब्राम्हणवाद कुंडली मारे बैठा है और वह अपने ही पैमानों पर रचनाओं का आकलन करता आ रहा है। पुरस्कार-सम्मान आदि में तो ये ख़ास तौर पर दिखता है। अब अगर इसे ख़त्म करना है तो इस तरह के एजेंडे के साथ काम करना भी ज़रूरी है। यक़ीन मानिए इससे साहित्य का भला ही होगा। हाँ, ब्राम्हणवादी छाती ज़रूर कूटते रहेंगे।

इसलिए आइए शुभम श्री को बधाई दें, उनका हौसला बढाएं।


पोएट्री मैनेजमेंट
             -शुभम श्री

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नमस्कार
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समाचार समाप्त हुए



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