मैं तो खुद सदमे में हूँ, क्या बोलूं कैसे बोलूँ-उर्जित पटेल


रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की चुप्पी न केवल हैरत का विषय है, बल्कि कईयों के लिए तो वह नाराज़गी का सबब भी बन चुकी है। ऐसे समय जब सबसे ज़्यादा उन्हीं को बोलना चाहिए था, वे मुँह पर ताला लगाकर बैठ गए हैं। नोटबंदी को एक पखवाड़े से ज़्यादा हो गया है मगर उन्होंने केवल एक बार कुछ कहा है और वह भी बिल्कुल शुरू में। उसके बाद से तो जैसे उन्हें साँप सूँघ गया है या फिर लकवा मार गया है। हर तरफ से उँगलियाँ उठ रही हैं, मगर वे कुछ बोल ही नहीं रहे।

I am in shock Urjit Patel
उनकी चुप्पी से हमारे संपादक जी भी ख़फ़ा हैं। वैसे उनकी नाराज़गी की दूसरी वजह भी है। नोटबंदी के चक्कर में उनके मालिक का नुकसान भी हो गया है। वे अपने बहुत सारे नोट बदलवा नहीं पाए हैं। अब वे तो किसी के सामने अपना दुखड़ा रो नहीं पाते इसलिए संपादक जी को ही को गरियाकर अपना ग़म ग़लत कर लेते हैं। जैसा कि अमूमन होता है संपादक जी अपनी खिसियाहट अपने नीचे के लोगों पर उतारते हैं। इसी खिसियाहट में आकर उन्होंने एक दिन मुझे उर्जित पटेल के पीछे लगा दिया। बोले पटेल का एनकाउंटर करके आओ नहीं तो हम तुम्हारा कर देंगे। अपना सिर बचाने के लिए मैं रिजर्व बैंक के सामने बैठ गया। चार दिन सुबह से शाम तक धरना देने के बाद आख़िर उर्जित पटेल मिलने को तैयार हो गए।

उर्जित अपने चैंबर में मुँह पर मास्क लगाए बैठे थे। मैंने नमस्कार किया तो उन्होंने सुना ही नहीं। दो-तीन बार और नमस्ते ठोंकी तो उन्होंने नज़रें उठाकर देखी और फिर कानों से रुई निकालकर एक तरफ रखी। लेकिन आवाज़ अभी भी नहीं निकली। मैंने निवेदन किया कि अब ये मास्क भी हटा लीजिए। उन्होंने इधर-उधर देखा और धीरे से मास्क हटा ली। मगर ये क्या? उनके तो होठों पर ही टेप लगा हुआ है। मैंने पूछा-ये हालत आपकी किसने की? उन्होंने दीवार पर लगी एक तस्वीर की तरफ इशारा किया। मैंने तस्वीर देखी और सारा माज़रा समझ गया। फिर भी मैंने उनसे टेप हटाने के लिए कहा क्योंकि उसके बिना एनकाउंटर हो नहीं सकता था। जवाब में वे सीट से उठे और कमरे में जितने भी परदे थे, सब बंद किए और फिर मुँह को बोलने के लिए आज़ाद कर दिया।

मैंने राहत की साँस लेते हुए कहा-आप भी कमाल करते हैं उर्जित, दुनिया आपको सुनना चाहती है और आप यहाँ मुँह पर पट्टी बाँधकर बैठे हुए हैं?
पट्टी बाँधकर न बैठूं तो क्या करूँ? मुझे चुप रहने के लिए कहा गया है। नहीं कहा नहीं गया, धमकी दी गई है। नहीं धमकी शब्द भी सही नहीं है, इसके ग़लत मायने निकाले जा सकते हैं। मुझसे निवदेन किया गया है कि आप फिलहाल कुछ न बोलें।

और आपने ये निवेदन स्वीकार कर लिया?
कैसे न करता? जिस तरह निवेदन किया गया था उसे देखते हुए उसे मंज़ूर करने में ही भलाई थी।

लेकिन आपको अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना चाहिए। आप रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं, नोट बंद करने या छापने की पहली ज़िम्मेदारी आपकी है?
जिम्मेदारी की बात तो आप न ही कीजिए, क्योंकि सारी जिम्मेदारियाँ तो पीएमओ ने ले रखी है। रिजर्व बैंक भी वही चला रहा है। मेरा काम तो अँगूठा लगाने का है, वह मैं जहाँ कहा जाता है लगा देता हूँ।

देखिए आपको ये कहते हुए शर्म आनी चाहिए.....एक आपके पहले वाले गवर्नर थे जो सरकार क्या किसी की परवाह नहीं करते थे। आपको थोड़ी रीढ़ दिखानी चाहिए या नहीं?
इस सरकार में रीढ़ की हड्डी दिखाने वाले का कोई भविष्य नहीं है। जो दिखाएगा, वह जाएगा। मैं तो लाया ही इसी शर्त पर गया था कि पीएम और पीएमओ के कामकाज में अड़चन नहीं बनूँगा। इसलिए ये लाज़िमी है कि मैं चुप रहूँ।

अच्छा ये बताइए कि नोटबंदी के लिए रिजर्व बैंक ने कहा था या सरकार ने?
आप ये सवाल न ही पूछें तो ठीक रहेगा, क्योंकि मैं कुछ बोलूँगा तो कंट्रोवर्सी हो जाएगी। फिर ये ब्रीच ऑफ ट्र्स्ट यानी भरोसे को तोड़ना भी होगा। अभी मुझे दो महीने भी नहीं हुए हैं, इसलिए ऐसा करना मेरे करियर के लिए भी ठीक नही होगा।


अच्छा चलिए बोलिए मत, इशारों से बता दीजिए.....
जवाब में उर्जित ने सामने टँगी तस्वीर की ओर इशारा किया। मैंने मुस्कराकर उनकी तरफ देखा और कहा-उनसे तो आपको डरना ही चाहिए। उनसे जो नहीं डरेगा वह मरेगा। अब तो पूरा मुल्क उनसे ख़ौफ़ज़दा है। इसलिए आप भी डरिए, क्या पता आपको कब वे लाइन में लगा दें। लेकिन
ये बताइए कि आप उनको सलाह तो दे सकते थे कि थोड़ी तैयारी करके नोटबंदी कीजिए, नहीं तो पूरी इकॉनामी ही हिल जाएगी?
देखिए सलाह कोई लेने वाला हो तो देना ठीक होता है। जहाँ सर्वज्ञ हों वहाँ जान जोखिम में डालने का क्या मतलब। अब देखिए रघुराम का क्या हुआ।

अगर इतना ही डर लगता है तो आपको इस पद से हट जाना चाहिए। आप देश के साथ धोखा नहीं कर रहे हैं?
देखिए, मैं धोखा-वोखा नहीं जानता। मैं तो इतना जानता हूँ कि जिन लोगों ने मुझे इस पद पर बैठाया है, उनकी सेवा करना मेरे फ़र्ज़ बनता है और वह मैं करूँगा ही।

जिन लोगों से आपका क्या मतलब है? आपको तो एक ही शख्स की सेवा करना है?
नहीं, नहीं। वह एक व्यक्ति नहीं है। आपको लगता है मगर मेरी नियुक्ति के पीछे कई लोग थे। मैं नमकहराम नहीं हूँ। मैं उनका वफ़ादार था और रहूँगा।

आप अंबानी की बात कर रहे हैं या अदानी की अथवा किसी और की भी?
देखिए मैं किसी का नाम नहीं ले सकता, लेकिन इतना ज़रूर है कि मैं अपने नियोक्ताओं का एजेंडा पूरी श्रद्धा के साथ पूरा कर रहा हूँ।

फिर भी थोड़ा ही सही देश के आम आदमी के बारे में भी सोचना चाहिए आपको?
अगर मैं आम आदमी के बारे में सोचने लगूँ तब तो कुछ काम ही करना मुश्किल हो जाएगा। अलबत्ता मुझे भी लोगों की दुर्दशा देखकर कष्ट होता है। इतने लोग मर गए, इतनी शादियाँ टूट गईँ। मैं तो सदमे में हूँ। समझ में नहीं  आ रहा कैसे रिएक्ट करूँ। कुस मुँह से बोलूँ, क्या बोलूँ। 

आपकी इस पीड़ा से लोगों को तो कोई राहत मिलने से रही। आपको उनकी मदद करनी चाहिए?
मदद करनी चाहिए, मगर कैसे करूँ? नोटबंदी का फ़ैसला अचानक ले लिया गया। हमें समय ही नहीं दिया गया कि हम कुछ इंतज़ाम करते, तैयारी करते। रातों रात 86 फ़ीसदी नगदी इकोनॉमी से बाहर हो जाएगी और उससे अफरा-तफरी न फैले ऐसा हो ही नहीं सकता था। ऐसा न हो इसके लिए कम से कम छह महीने का वक्त चाहिए था, मगर हमें तो चौबीस घंटे का समय भी नहीं दिया गया।


आप कहना चाहते हैं कि आपको सरकार के इस निर्णय के बारे में कुछ पता ही नहीं था?
मुझे क्या किसी को पता नहीं था। मुझे तो शक़ है कि वित्तमंत्री को भी बताया गया था या नहीं। कैबिनेट को तो पक्का पता नहीं था। सब अँधेरे में थे। अब अंधकार में निर्णय लिए जाएंगे तो हाहाकार तो मचेगा ही। ख़ास तौर पर तब जब आपको पता ही न हो कि आप जो फरमान जारी करने जा रहे हैं उसके क्या नतीजे निकल सकते हैं।

आपके कहने का मतलब है कि मोदीजी को ने बिना सोचे-समझे नोटबंदी का ऐलान कर दिया?
उर्जित ने सामने टँगी तस्वीर की तरफ देखते हुए दोनों कानों को हाथों से छूते हुए कहा-मैंने ऐसा तो नहीं कहा, आप अपने शब्द मेरे मुँह में न डालिए। मोदीजी के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता.....न न सोच तो सकता हूँ कह नहीं सकता। वे सर्वज्ञ हैं, सर्वशक्तिमान हैं, दूरदर्शी हैं। उन्होंने निश्चय ही सोच-समझ के फ़ैसला लिया होगा। ये बात और है कि वो मेरी समझ से बाहर है।

ये बताइए कि जब अख़बारों में ख़बर छप रही थी और स्टेट बैंक को अप्रैल से ही पता था कि पाँच सौ और हज़ार के नोट बंद होने वाले हैं तो रिजर्व बैंक क्या सो रहा था?
मैंने तो सितंबर के पहले हफ़्ते में ज़िम्मेदारी सँभाली और उसके बाद से मुझे इस बारे में आफिसियली जानकारी नहीं दी गई।

लेकिन कहा तो ये भी जा रहा है कि बहुत से लोगों को पता था। बीजेपी के लोगों को पता था, इंडस्ट्री के लोगों को पता था, कारोबारियों को मालूम था और उन्होंने अपने काले धन को ठिकाने लगाने का काम भी कर लिया?
हो सकता है पता हो या उन्हें किसी ने सावधान कर दिया हो, मगर मुझे ऑफिसियली किसी ने नहीं बताया था इसलिए मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता।

अच्छा अनऑफिसियली पता था क्या?
देखिए, मैं ऐसा कुछ नहीं कह सकता जो ऑफिसियल न हो। मैं नियम-कानून से चलने वाला इंसान हूँ।

आप अपनी सुविधा से नियमों के पाबंद हो रहे हैं। रिजर्व बैंक स्वायत्त संस्था है, सरकार या उद्योगपतियों की गुलाम नहीं, जो आप उनकी इच्छाओं के हिसाब से काम करें?
मैं नियम-कायदों को उनकी इच्छाओं के दायरे में ही देखता हूँ और उन पर अमल करता हूँ।

चलिए आपने स्पष्ट कर दिया कि आपके काम करने का स्टायल क्या है। अब ये बताइए कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब में उर्जित ने मुँह पर उँगली रख ली।

अच्छा इस सवाल को भी छोड़ दीजिए और बताइए कि क्या नोटबंदी से काला धन ख़त्म हो जाएगा?
इस बार उन्होंने अपने होठों पर टेप लगाना शुरू कर दिया।

अच्छा आख़िरी सवाल का जवाब दे दीजिए-ये बताइए कि सरकार के इस फ़ैसले के पीछे काला धन समाप्त करने की इच्छा काम कर रही थी या चुनाव जीतने और अपनी राजनीति को मज़बूत करने की? 
अबकी बार उन्होंने मुँह पर मास्क भी लगा लिया। ज़ाहिर है कि मेरे पास इसके सिवाय कोई चारा नहीं बचा था कि मैं विदा ले लूँ, क्योंकि अब कोई जवाब मिलने वाला नहीं था।

मैं तो खुद सदमे में हूँ, क्या बोलूं कैसे बोलूँ-उर्जित पटेल

Written by-डॉ. मुकेश कुमार
डॉ. मुकेश कुमार










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वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।

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