About Deshkaal.com
देशकाल उन लोगों का उन लोगों के लिए उन लोगों द्वारा खड़ा किया जा रहा एक ऐसा मंच है, जहाँ पत्रकारिता एक पेशा नहीं सामाजिक कर्म है, कारोबार नहीं परिवर्तन का औज़ार है और एक ऐसा “स्पेस” है जो बाज़ार के दबाव में लगातार सिकुड़ता जा रहा है। हममें से बहुत से लोग जानते और मानते हैं कि मीडिया का भले ही अंधाधुंध विस्तार हो रहा हो, टीवी चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं की भरमार हो रही हो, मगर उनमें ऐसी चीज़ों की गुंज़ाइश लगातार कम होती जा रही है, जो समाज और देश की सेहत के लिए परम आवश्यक हैं।
देशकाल उन लोगों का उन लोगों के लिए उन लोगों द्वारा खड़ा किया जा रहा एक ऐसा मंच है, जहाँ पत्रकारिता एक पेशा नहीं सामाजिक कर्म है, कारोबार नहीं परिवर्तन का औज़ार है और एक ऐसा “स्पेस” है जो बाज़ार के दबाव में लगातार सिकुड़ता जा रहा है। हममें से बहुत से लोग जानते और मानते हैं कि मीडिया का भले ही अंधाधुंध विस्तार हो रहा हो, टीवी चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं की भरमार हो रही हो, मगर उनमें ऐसी चीज़ों की गुंज़ाइश लगातार कम होती जा रही है, जो समाज और देश की सेहत के लिए परम आवश्यक हैं।
उनकी जगह घटिया मनोरंजन, अंध विश्वास, सस्ती उत्तेजना, झूठ-फरेब आदि ने ले ली है और सही मायनों में वह बुद्धू बक्सा बन गया है। ये दर्शकों के साथ छल है और इसीलिए ऐसे वैकल्पिक मंचों की सख़्त ज़रूरत हम महसूस करते हैं जहाँ वे चीज़ें उपलब्ध करवाई जा सकें जो कि उन तक पहुँचनी चाहिए। हम देख रहे हैं कि मीडिया से सचाई गायब हो गई है। वे एक ऐसा मायालोक गढ़ रहे हैं, जिसमें तरक्की के आँकड़े तो जगमगाते हैं मगर उस आबादी का ज़िक्र नहीं होता जो घोर अंधकार में जीवन जीने को अभिशप्त है। मीडिया उस वर्ग का प्रवक्ता बन गया है जिसने ग़लत-सही तरीकों से बेहिसाब धन जोड़कर अपना जीवन सुरक्षित कर लिया है और उसे मनोरंजन चाहिए, चिंता पैदा करने वाली सूचनाएं और समाचार नहीं।
यही नहीं, वे खूबसूरत चीज़ें भी सुनियोजित ढंग से परिदृश्य से हटा दी गई हैं जो जनता को नए विचार देती हैं, उम्मीदें और संघर्ष का हौसला देती हैं। साहित्य और संस्कृति का अदृश्य हो जाना महज़ संयोग नहीं है। ये एक साज़िश के तहत हो रहा है। दिए बुझाए जा रहे हैं, जुगनुओं का शिकार किया जा रहा है।
हम चाहते हैं कि वे चीज़ें जो हाशिए के परे ढकेली जा रही हैं या जिन्हें किसी अँधेरे कोने में इस तरह रख दिया जा रहा है जहाँ किसी की नज़र न पड़े उन्हें सबके बीच रखा जाए। कई बार घटनाएं या ख़बरें ज़ोर-शोर से आती भी हैं तो उनका परिप्रेक्ष्य सही नहीं होता। हम कोशिश करेंगे कि उन्हें सही नज़रिए के साथ पेश किया जाए। समाज में एक तरह की विचारशून्यता या विचार-शत्रुता पसरती जा रही है, उसे दूर किया जाए।
हम कितने कामयाब होंगे, होंगे भी या नहीं, इस पर हम विचार नहीं करना चाहते। हम कोशिश करना चाहते हैं और ईमानदारी के साथ करना चाहते हैं। उम्मीद करते हैं कि आपका साथ हमें मिलेगा और आपके साथ मिलकर हम कुछ न कुछ कर ही डालेंगे।
धन्यवाद्!
आपका
डॉ. मुकेश कुमार
डॉ. मुकेश कुमार