वीके सिंह की मंत्रिमंडल से अब छुट्टी कर दी जानी चाहिए


वर्तमान सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह का ये आरोप बेहद गंभीर है कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने उनके प्रमोशन की राह में बाधाएं खड़ी कीं और दुर्भावना से प्रेरित होकर फैसले किए। भारतीय सेना के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि इस तरह के आरोप लगाए जाएं और बात सर्वोच्च न्यायालय तक जाए।

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दो सर्वोच्च सैन्य अधिकारियों का टकराव इसलिए बहुत चिंताजनक है क्योंकि इससे पता चलता है कि सेना में सर्वोच्च स्तर पर किस तरह के व्यक्ति पहुँच रहे हैं और स्वार्थों से प्रेरित होकर वे किस तरह के खेल खेलते हैं। ये विवाद ये भी बताता है कि उन्हें देश की सुरक्षा की चिंता कम रहती है और अपने स्वार्थ सर्वोपरि।

सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह इस पूरे विवाद में अब तक खामोश रहे हैं। इस बार भी उन्हें कोर्ट में निजी हैसियत से हलफनामा दाखिल करके अपनी बात कहनी पड़ी है। लेफ्टिनेंट जनरल रवि दास्ताने ने याचिका दायर करके उनके चयन में भेदभाव बरते जाने का आरोप लगाया है और इसके जवाब में उन्हें ये क़दम उठाना पड़ा है।



ये तो सबको पता है कि जनरल वीके सिंह पिछले चार साल से लगातार विवादों में हैं। अपनी जन्मतिथि को लेकर वे रक्षा मंत्रालय से भिड़ गए थे। कोर्ट ने जब उन्हें फटकारा तो उन्हें चुप होना पड़ा, मगर अपनी आदत को वे सुधार नहीं सके। कभी मीडिया पर तो कभी दलितों के संबंध में उन्होंने अपनी टिप्पणियों से सरकार के लिए तो संकट खडे किए ही, अपने कद और पद की गरिमा को भी गिराया।

सवाल सबसे बड़ा ये है कि आख़िर वो कौन सी वजहें थीं जिनके चलते वे दलबीर सिंह को सेनाध्यक्ष बनने से रोकना चाहते थे? ये कारण व्यक्तिगत थे या इनका संबंध कामकाज से था? कहीं ऐसा तो नहीं कि वीके सिंह अपने चिर-परिचित राग-द्वेष और स्वार्थों के चलते दलबीर सिंह को निशाना बना रहे थे?

प्रश्न ये भी है कि दलबीर सिंह को रोकने के लिए उन्होंने क्या-क्या तिकड़में आज़माईं और उनका सेना की रीति-नीति पर क्या असर पड़ा? कहीं इससे सेना का अनुशासन तो भंग नहीं हुआ और अगर हुआ तो उसके नतीजे क्या निकल सकते हैं?

ये सवाल बहुत मायने रखते हैं क्योंकि इनसे सेना की सेहत का पता चलता है। अगर इस तरह की घटिया राजनीति सर्वोच्च स्तर पर चलती है तो बहुत से लोग साज़िशों के शिकार होते होंगे। ये अन्याय विभिन्न स्तरों पर रोष भी पैदा होता होगा जिससे सेना की क्षमताओं पर बुरा असर पड़ना लाज़िमी है।



इस बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो जनरल वीके सिंह का अपराध बहुत बड़ा है। वे सेना की छवि खराब करने के दोषी हैं, सेना में अनुशासन भंग करने और भेदभाव बरतने के गुनहगार हैं। ये तीनों चीज़ें ऐसी हैं जिनकी बहुत गंभीर सज़ा होनी चाहिए।

अफसोस की बात ये है कि राष्ट्रवादी होने का दम भरने वाली सरकार ने उन्हें मंत्रिमंडल में सजाकर रखा हुआ है। उनकी वजह से पैदा होने वाले विवादों की भी उसने परवाह नहीं की है। बीच मे उनकी ज़िम्मेदारियाँ थोड़ी कम ज़रूर कर दी गई थीं, मगर मंत्रिपद पर बनाए रखा गया।

सेनाध्यक्ष दलबीर सिंह के हलफनामे के बाद अब समय आ गया है जब उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया जाना चाहिए। कम से कम उस समय तक तो उन्हें हटाया ही जाना चाहिए जब तक सुप्रीम कोर्ट उनके संबंध में कोई फ़ैसला नहीं सुना देता।


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