अब मोदीजी ओबामा को क्या मुँह दिखाएंगे-विजय गोयल


खेल मंत्री विजय गोयल के लिए ये सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने वाली बात हो गई। वे रियो ओलंपिक में गए तो थे छब्बे बनने मगर लौटे दुबे बनकर। सेल्फी कांड ने उनकी ऐसी फ़ज़ीहत की है कि अभी तक सदमे से उबरे नहीं हैं। ऊपर से ओलंपिक समिति ने भी उनका जुलूस निकालने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

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लेकिन लगता है इतना ही काफी नहीं था। खिलाड़ियों के प्रदर्शन ने भी उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। इस एनकाउंटर तक साक्षी मलिक का इकलौता मेडल ही भारत ने जीता था और ज़ाहिर है कि ये किसी भी खेल मंत्री के लिए डूब मरने वाली बात है हालाँकि विजय गोयल ऐसे इंसान नहीं हैं जो ऐसे छोटे-मोटे मामले पर इस तरह की वीरता दिखाएं। अलबत्ता उन्हें ये ज़रूर सता रहा होगा कि वे प्रधानमंत्री के सामने कौन सा चेहरा लेकर जाएंगे, क्योंकि उन्होंने उनसे बड़े ही आसमानी वादे किए थे।

एनकाउंटर के लिए भी उन्होंने साफ़ मना कर दिया था, मगर जब मैंने उन्हें ये कहते हुए चाभी घुमाई कि सोच लीजिए, आपके बहुत सारी पोल मेरे पास हैं तो उनका ताला खुल गया और वे झटपट तैयार हो गए। बोले-आप भी कैसी बात करते हैं, आपको कभी मना कर सकता हूँ क्या, आइए-आइए, साथ चाय पिएँगे।



चाय पीते-पीते मैंने सवाल पूछने शुरू कर दिए।

गोयल जी ये बताइए कि ओलंपिक में इतना बड़ा दल गया था। आप लोग हौसला अफज़ाई के लिए गए थे, मगर नतीजे तो बहुत ही बुरे हो गए। लंदन ओलंपिक से आगे बढ़ना तो दूर उसकी बराबरी भी नहीं कर पाए?
यार क्यों जले पर नमक छिड़क रहे हो? सेल्फी के चक्कर में मीडिया ने पहले ही मेरा बैंड बजा रखा है। अब आप खिलाड़ियों के परफार्मेंस के बारे में पूछ रहे हो। मैं क्या बताऊँ आपको कि किस तरह खिलाड़ियों ने हमारी सरकार की नाक कटवा दी है।


सरकार की नाक क्यों कटेगी, ये तो देश की नाक का सवाल है?
सरकार ही तो देश है और देश ही सरकार है। बल्कि सच बात तो ये है कि मोदी जी ही देश हैं और देश ही मोदीजी। अगर पचीस-पचास पदक आ गए होते तो सोचो हमारी सरकार का यानी मोदीजी का कितना नाम होता।

लेकिन खिलाड़ी तो देश के लिए खेलते हैं, सरकार या पीएम के लिए नहीं खेलते?
वे चाहे जिसके लिए खेलते हों, मगर हम तो यही मानते हैं कि वे हमारे लिए यानी सरकार और मोदीजी के लिए खेलते हैं।

लगता है मोदीजी से आपको जमकर डॉट पड़ी है?
अब आपसे क्या छिपा है। डॉट तो पड़ी है मगर उसके लिए नहीं जिसके बारे में आप सोच रहे हो। कारण वह नहीं दूसरा है।

मैं तो यही सोच रहा हूँ कि आपको सेल्फी के लिए मोदीजी ने ज़रूर हडकाया होगा?
नहीं, यही तो मैं कह रहा हूँ कि आपका अनुमान ग़लत है। मोदीजी ने तो उसके बारे में बात तक नही की। उनका गुस्सा दूसरी बात पर था।

किस बात पर था?
यही कि वे 15 अगस्त को लाल किले से देश को बताना चाहते थे कि ओलंपिक में भारत ने जो साठ साल में नहीं किया वह हमारी वजह से दो साल में ही हो गया। मैने उनसे कह रखा था कि पदकों की संख्या दोगुनी तो करवाकर ही लौटूँगा। मगर आप तो जानते ही हैं कि अभी तो किसी तरह से खाता भर खुल पाया है।

लेकिन ये तो सच है कि जो साठ साल में नहीं हुआ, वह दो साल में आपने कर दिखाया?
अच्छा,....वो कैसे?


वो ऐसे कि अभी तक किसी ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन इतना खराब नही रहा, जितना इस बार?
अब आप भी हमारी खिंचाई करने लगे जी। ठीक है, छिड़क लीजिए हमारे ज़ख़्मों पर नमक। संसार का यही नियम है। हारे को सभी सताते हैं।


लेकिन ये बात समझ में नहीं आई कि मोदीजी को इस छोटी सी चीज़ के लिए क्यों परेशान होना चाहिए?
आप भी ग़ज़ब बात करते हो जी। ये छोटी सी चीज़ नहीं है। इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व है। ज़रा सोचिए अब मोदीजी ओबामा को मुँह कैसे दिखाएंगे।


क्या मतलब?
मतलब ये कि जब एक महाशक्ति दूसरी महाशक्ति से मिलेगी तो मामला बराबरी का होना चाहिए न। चलिए न सही बराबरी का क्योंकि हम तो अभी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, मगर कम से कम आधे पदक तो सीने पर चमकने चाहिए न। अब खाली हाथ ओबामा से वे नज़र कैसे मिलाएंगे? और ओबामा ही क्यों दुनिया के वे तमाम नेता पुतिन, एंजेला मार्केल, ओलांदे, थेरेसा मे वगैरा जो उनके इतने बड़े फैन हैं, वे क्या सोचेंगे उनके बारे में। उनकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को कितना बड़ा धक्का लगा है ज़रा सोचकर देखिए आप। बस इसी बात से वे बहुत खफ़ा हैं मुझ पर। मेरी तो छुट्टी ही करने वाले थे मगर पता नहीं क्या सोचकर बख्श दिया।


लेकिन ये बताइए कि भारतीय खिलाडी कुल मिलाकर ओलंपिक में हमेशा फिसड्डी रहे है ऐसे में आपने उनसे इस तरह के चमत्कार की उम्मीद कैसे कर ली?
देखिए देश में जबसे मोदीजी की सरकार बनी है, पूरी फिज़ा बदली हुई है। हर जगह उत्साह का उमंग का माहौल है। चारों ओर विकास की गंगा बह रही है। देश धन-धान्य से भरा जा रहा है। ऐसे में ये अपेक्षा करना स्वाभाविक है कि खिलाड़ी भी पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़कर नए चमत्कार करेंगे। लेकिन अफसोस कि हमारे खिलाड़ी माटी के माधो निकले। वे ऊपर चढ़ने की बजाय नीचे फिसल गए।

आप खिलाड़ियों को दोष दें, ये शोभा नहीं देता। आपको ये देखना चाहिए कि वे किन परिस्थितियों में खुद को इस लायक बना रहे हैं कि वे ओलंपिक में हिस्सा ले सकें। कुछ खिलाड़ियों ने तो बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया है?
ये सब बकवास है, बहानेबाज़ी है। जिसमें इच्छाशक्ति होती है वह साधनों के बिना भी बहुत कुछ कर लेता है। फिर ज़्यादातर खिलाड़ियों को तो हमने सारी सुविधाएं मुहैया करवाई थीं, वे क्यों फेल हुए?


आप भी ग़ज़ब करते हैं गोयल जी। विपक्ष में थे तो आप ही लोग कहते थे कि सरकार खिलाड़ियों का ध्यान नहीं रखती, उन्हें सुविधाएं मुहैया नहीं करवाती। अब आपकी भाषा बदल गई है क्योंकि आप मंत्री बन गए हैं.?
सरकार तो सरकार की भाषा ही बोलेगी भाई। आप क्या चाहते हैं कि मैं ये बोल दूँ कि मेरी सरकार की लापरवाहियों की वजह से हमारे खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन नही कर पाए? ऐसा होता है क्या?  हमारी भाषा तो यह रहेगी, क्योंकि मुझे अभी मंत्री बने रहना है। 


एक धाविका है दुतीचंद। उसने ट्वीट किया था कि किस तरह से उसे इकॉनामी क्लास में छत्तीस घंटे यात्रा करनी पड़ी, जबकि अधिकारी बिज़नेस क्लास में सफर कर रहे थे?
ये तो खिलाड़ियों की कुछ ज़्यादा ही अपेक्षाएं हैं हमसे। उन्हें हम ओलंपिक में भेजते हैं यही क्या कम है। उन्हें तो एहसानमंद होना चाहिए हमारा, मगर हममें ही खोट निकाल रहे हैं। भलाई का ज़माना नहीं रह गया अब।


अब इस खराब परफार्मेंस के बाद अब बतौर मंत्री क्या क़दम उठाएंगे?
सबसे पहला क़दम तो यही उठाऊँगा कि खिलाड़ियों को मिलने वाली सुविधाएं आधी करवाऊंगा। इनकी आदतें बिगड़ गई हैं, ये आलसी और सुविधाभोगी होते जा  रहे हैं। थोड़ा मुसीबतें रहेंगी, तो संघर्ष की आदतें बनी रहेंगी। मैंने तो मोदीजी से साफ़-साफ़ कह दिया है कि आप न तो इन हारे हुए खिलाड़ियों से मिलना और न ही इनके लिए दिखाने की खातिर भी आँसू बहाना। आप ऐसा करेंगे तभी इनको अपनी ग़लतियों का एहसास होगा। 




मैं समझ गया था कि विजय गोयल फुँके बैठे हैं और खिलाड़ियों को कोसने का सिलसिला जारी रखेंगे, लेकिन मेरे लिए ये सब नाकाबिल-ए-बर्दाश्त हो रहा था। लिहाज़ा, जैसा कि सब जानते हैं गोयल बहुत खुन्नस पालने वाले आदमी है इसलिए मैंनेउनकी खेलनीति की तारीफ़ की और चुपचाप निकल लिया।

Written by-डॉ. मुकेश कुमार











ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। इसे इसी रूप में पढ़ें।

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