राहुल की खाट सभाओं में लोग दिलचस्पी तो दिखा रहे हैं मगर वोट देंगे क्या?


पहली खाट सभा में जब खाटों की लूट हुई थी तो राहुल गाँधी का अभियान मज़ाक का विषय बन गया था। न केवल राजनीतिक दलों ने बल्कि मीडिया में भी उसकी खिल्ली उड़ाई गई थी। सबने मान लिया था कि अब उसे कोई गंभीरता से नहीं लेगा और मतदाताओं को लुभाने की उनकी ये महत्वाकांक्षी कवायद भी बेकार जाएगी। लेकिन अब जबकि उसे एक हफ़्ते से ज़्यादा हो गया है तो क्या माना जाए? क्या सचमुच में वह फ्लॉप हो रही है या फिर काँग्रेस को कहीं कुछ फ़ायदा होता नज़र आ रहा है?

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राहुल गाँधी की खाट सभाओं का सिलसिला जारी है। उनमें भीड़ भी जुट रही है और इससे काँग्रेसियों के चेहरे खिलने लगे हैं। चुनाव प्रभारी ग़ुलाम नबी आज़ाद और रणनीतिकार प्रशांत किशोर की उम्मीदें भी परवान चढ़ने लगी हैं। लेकिन वे आश्वस्त नहीं हैं कि काँग्रेस बड़ी चुनावी सफलता की ओर बढ़ रही है। एक किस्म की सावधानी सभी के बयानों में पढ़ी जा सकती है। खुद राहुल गाँधी की बॉडी लैंग्वेज भी यही कहती है।



देवरिया में खाटों की लूट के बाद राहुल गाँधी के यूपी मिशन को गहरा धक्का लगा था। ऐसा लगा था कि शुरूआत में ही उनके इस नए आयडिया का जनाजा निकल गया। काँग्रेस खेमे में भी मुर्दनगी छा गई थी। मगर फिर राहुल के एक ही बयान ने मज़ाक उड़ाने वालों के मुँह बंद कर दिए थे। उन्होंने कहा था कि खाट ले जाने वाले किसानों को चोर कहा जा रहा है जबकि जो नौ हज़ार करोड़ लूटकर भाग गया उसे डिफॉल्टर बताया जाता है।

इसके बाद खाट सभाओं पर टीका-टिप्पणियाँ कम हो गईं। यहाँ तक कि राजनीतिक दलों ने भी मौन साध लिया, मानो वे उसे ज़्यादा महत्व नहीं देना चाहते हों। वैसे मीडिया का फोकस भी दूसरी ख़बरों पर चला गया और राहुल अपनी सभाओं के साथ चुनावी नैया खेते रहे।

हालाँकि काँग्रेस ने यूपी के विधानसभा चुनाव में ब्राम्हण कार्ड चला है। ब्राम्हणों को लुभाने के मक़सद से शीला दीक्षित को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट भी किया जा रहा है। उसकी पूरी कोशिश यही है कि ये जाति उसके पास वापस लौटे और उसकी बिगड़ी किस्मत सँवारे। लेकिन वह दूसरे वर्गों को भी दूर नहीं करना चाहती, इसीलिए राहुल दलितों के घर में खाना भी खा रहे हैं। ये और बात है कि उनका ये फॉर्मूला पिट चुका है और लगता नहीं है कि बीएसपी का वोटर काँग्रेस की ओर लौटेगा।



वैसे राहुल गाँधी केवल जातीय गणित पर निर्भर नहीं रहना चाहते या फिर उनका उस पर उतना भरोसा नहीं है। इसीलिए अपनी सभाओं में वे सबसे अधिक ज़ोर खेती और किसानों पर दे रहे हैं। वे किसानों की दुर्दशा के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर जमकर कटाक्ष करते हैं। इससे बीजेपी के खिलाफ़ माहौल तो बन रहा है, मगर इसका फायदा काँग्रेस को मिलेगा या किसी और को ये कहना मुश्किल है।

हालाँकि किसान राहुल के इस अंदाज़ को पसंद कर रहे हैं मगर ये कहना मुश्किल है कि वे उनकी पार्टी को वोट भी देंगे या नहीं, क्योंकि यूपी की सियासत में मतदाताओं को मतदान केंद्रों में जाने के बाद जाति और धर्म याद आ जाते हैं, वे बाक़ी के मसले भूल जाते हैं। इसीलिए फिलहाल यक़ीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि मतदाता उसकी तरफ आकर्षित भी हो रहे हैं या नहीं।

ये सही है कि खाट सभाओं में भीड़ जुट रही है और लोगों में उनको लेकर उत्साह भी है। मगर राहुल गाँधी को देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए भीड़ पहले भी जुटती रही है। सवाल उठता है कि लोग काँग्रेस को वोट भी देंगे या नहीं? इस सवाल का जवाब काँग्रेस के किसी नेता के पास नहीं है।

राहुल गाँधी और उनके सिपहसालार अच्छे से जानते हैं कि ऐसे राज्य में जहां काँग्रेस की जड़ें तक साफ हो चुकी हैं, फिर से जान फूँककर पार्टी को खड़ा करना बहुत मुश्किल चुनौती है।

राहुल की खाट सभाओं में लोग दिलचस्पी तो दिखा रहे हैं मगर वोट देंगे क्या?
People are taking interest in Rahul’s Khat Sabhas but will they vote congress?

Written by-चाणक्य सेन

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