मेहबूबा सरकार अब कितने दिनों की मेहमान है?


जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती के लिए इससे बुरा वक़्त कुछ भी नहीं हो सकता। बुरहान वानी की मौत के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों को सत्तर दिन गुज़र चुके हैं मगर शांति कायम करने में वे नाकाम साबित हो रही हैं। वादी में हर तरफ उनके ख़िलाफ़ गुस्सा खदबदाने लगा है।

Mehbooba-government-will-lost
यही नहीं, अब तो मेहबूबा को हटाए जाने और राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की अफ़वाहें भी तैरने लगी हैं। ख़बरें ये भी आ रही हैं कि पार्टी में उनके ख़िलाफ़ बगावत तक हो सकती है। पार्टी सांसद तारिक़ हमीद कर्रा के इस्तीफ़े को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है।

वास्तव में सांसद कर्रा ने मेहबूबा सरकार के लिए ख़तरे की घंटी बजा दी है। उन्होंने न केवल संसद सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है बल्कि पार्टी भी छोड़ दी है। पहले से ही डाँवाडोल चल रही पीडीपी सरकार के लिए ये बहुत बड़ा धक्का है।



मेहबूबा के लिए तो ख़ास तौर पर, क्योंकि कर्रा ने उन पर सीधा हमला बोला है। उनका कहना है कि पार्टी अपने आदर्शों से पीछे हट गई है और मेहबूबा लोगों के साथ नाज़ियों से भी बुरा बर्ताव कर रही हैं। उन्होंने ये आरोप भी लगाया है कि मेहबूबा ने बीजेपी और केंद्र सरकार के सामने पूरी तरह से आत्मसमर्पण कर दिया है।

कर्रा की ओर से किए गए इस हमले के बाद अब संभावनाएं ज़ाहिर की जा रही है कि शायद पार्टी के अंदर मेहबूबा के खिलाफ़ आवाज़ें और तेज़ होंगीं, जिसका मतलब है मुश्किलों का बढ़ना। मेहबूबा अगर पार्टी पर अपनी पकड़ खोती हैं तब तो उनका पतन तय है।

समस्या ये है कि मेहबूबा ने दिल्ली के साथ इतनी निकटता दिखाई है और ऐसे-ऐसे भड़काऊ बयान दिए हैं कि वे अवाम से दूर होती चली गई हैं। पीडीपी के बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने को वैसे भी पसंद नहीं किया गया था, मगर पिछले दो महीनों में तो ये नापसंदगी चरम पर पहुँच चुकी है।

लोगों को लग रहा है कि मेहबूबा अब बीजेपी की जबान में बोल रही हैं और कश्मीरियों के साथ उनकी प्रतिबद्धता कमज़ोर हो गई है। अगर इस तरह की राय मज़बूत होती गई तो सरकार चलाना मुश्किल हो जाएगा।



खबरें तो ये भी आ रही हैं कि केंद्र सरकार भी अब विकल्पों को तौल रही है। उसे लग रहा है कि राष्ट्रपति शासन लगाना उसके लिए ज़्यादा फ़ायदेमंद होगा क्योंकि तब वह खुद ड्रायविंग सीट पर होगी और अपने मन की कर सकेगी।

ये स्थिति कश्मीर और देश दोनों के लिए ख़तरनाक़ है। राष्ट्रपति शासन में बीजेपी को अपना फ़ायदा भले ही दिख रहा हो मगर इससे हालात और बिगड़ेंगे। कश्मीर में एक चुनी हुई सरकार का होना अलगाववादियों को ग़लत साबित करने और अलग-थलग रकने के लिहाज़ से बहुत जरूरी है।

मेहबूबा सरकार अब कितने दिनों की मेहमान है?
How many days Mehbooba government will lost?


Written by-माजिद ख़ान

अन्य पोस्ट :
बीजेपी का साथ महबूबा मुफ़्ती को इस तरह से महंगा पड़ रहा है?
This way Mehbooba Mufti Sayeed paying high price for partnering with BJP?
कश्मीर को देखना है तो मिथ और अफ़वाहों के पार देखना होगा-आँखों देखा कश्मीर-2
If you want to see Kashmir, you have to see beyond myths and rumours
इस दिशाहीन और दिखावटी यात्रा से न कुछ होना था और न हुआ
Nothing could be achieved through these directionless and showy visits and it is proved again
कश्मीर के दो दुश्मन-कश्मीरी अलगाववाद और हिंदू राष्ट्रवाद
Two enemies of Kashmir-Kashmiri Separatism and Hindu Nationalism
मैंने कश्मीर में वह देखा जिसे कोई नहीं दिखा रहा और जो देखा जाना चाहिए
What I have seen in Kashmir, nobody is showing and it must be seen

Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment