बीजेपी का साथ महबूबा मुफ़्ती को इस तरह से महंगा पड़ रहा है?


अच्छे दिन लाने के वादे के साथ सूबे की बागडोर सँभालने वाली कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती के बुरे दिन आ गए हैं। वे अपनी विश्वसनीयता गँवा चुकी हैं और अब तो आम अवाम में उनके ख़िलाफ़ गुस्सा भी उबल रहा है। सबसे ख़तरनाक़ बात ये है कि उन्हें बीजेपी और केंद्र सरकार की कठपुतली के रूप में देखा जाने लगा है।
चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद से अब तक 75 लोग मारे जा चुके हैं और हज़ारों की तादाद में घायल हैं। लोग नाराज़ भी हैं और दुखी भी, मगर महबूबा उन्हें कोई राहत नहीं दे पा रहीं। उल्टे उनका रवैया ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने वाला साबित हो रहा है।

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अव्वल तो उनकी चुप्पी ने लोगों में आक्रोश भर दिया था। फिर जब आम लोगों की मौतों के संबंध पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने जो कुछ कहा उसने आग में घी की तरह काम किया। उनके बयानों का ये मतलब निकाला गया कि कश्मीर में जो कुछ भी आम लोग कर रहे हैं सब ग़लत है और सुरक्षा बलों और पुलिस ने की तमाम कार्रवाई जायज़ थी।


महबूबा का दूसरा भड़काने वाला बयान वो था जिसमें उन्होंने कहा कि कश्मीर में कुल पाँच फ़ीसदी लोग आज़ादी चाहते हैं। इसने घाटी में ज़बर्दस्त विवाद खड़ा कर दिया। हालाँकि अगले दिन वे अपने बयान से पलट गईँ और ये सफ़ाई दी कि उनका कहने का मतलब ये था कि 95 फ़ीसदी लोग कश्मीर समस्या का हल अमन से चाहते हैं। लेकिन इसका भी उल्टा असर हुआ।

कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार हारुन रेशी कहते हैं-महबूबा मुफ़्ती ने एक के बाद एक ऐसे बयान दिए जो लोगों की नाराज़गी को बढ़ाने वाले थे। उनका सबसे विवादास्पद बयान था कि केवल पाँच प्रतिशत लोग आज़ादी चाहते हैं। बेशक़ वे बाद में पलट गईं लेकिन उनके बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है।

दरअसल, कश्मीरी पीडीपी से उसी समय से नाराज़ चल रहे हैं जब उसने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। विधानसभा चुनाव में उसने बीजेपी के ख़िलाप़ लोगों से वोट माँगे थे, लेकिन जब उसने उसी के साथ सरकार बनाई तो लोग सकते में आ गए। ये गुस्सा लोगों के अंदर काफी दिनों से खदबदा रहा था, जो अब ऊपर आ गया है।

सरकार बनने के बाद कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के लिए सैनिक कॉलोनी बनाने का मसला भी अवामी हलकों में गुस्से की वजह बना। लोगों को लगा कि पीडीपी बीजेपी के मंसूबों को पूरा करने का रास्ता साफ़ करने में लग गई है। उसे लगा कि पीडीपी उसके साथ धोखाध़ड़ी कर रही है।



वास्तव में गठबंधन सरकार ही कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि कश्मीरियों में भारत सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा भरा रहता है और निकलने का इंतज़ार करता रहता है। हाँ, महबूबा के बयानों और बीजेपी की कट्टरपंथी नीतियों ने उसे और भी हवा दे दी है।

आज की तारीख़ में कश्मीर का नौजवान खुद को अलग-थलग पा रहा है और इसका इज़हार वह सड़कों पर कर रहा है। सबसे हैरतनाक़ बात ये है कि महबूबा के पास उनके लिए हमदर्दी का एक शब्द भी नहीं है, उल्टे वे आए दिन उन्हीं पर दोष मढने में लगी हुई हैं।

ज़ाहिर है कि मेहबूबा को सत्ता मोह की क़ीमत चुकानी पड़ेगी। साफ़ दिख रहा है कि उनका जनाधार ख़त्म हो रहा है। सबसे ज़्यादा नुकसान तो दक्षिणी कश्मीर में हो रहा है जो कि पीडीपी का गढ़ माना जाता है। बुरहान की मौत के बाद विरोध प्रदर्शन यहीं से शुरू हुए थे और अभी तक ये इलाक़ा नियंत्रण से बाहर है।

कश्मीर के मौजूदा हालात यही बता रहे हैं कि बीजेपी का सथ महबूबा को महँगा पड़ेगा। उनके हाथों से कश्मीर निकल रहा है और खुद उनके लिए सियासी रास्ते एक के बाद एक करके बंद होते जा रहे हैं।

बीजेपी का साथ महबूबा मुफ़्ती को इस तरह से महंगा पड़ रहा है?
This way Mehbooba Mufti Sayeed paying high price for partnering with BJP?

Written by-माजिद जहांगीर


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राष्ट्रीय, जम्मू-काश्मीर, URL-Mehbooba-Mufti-Sayeed-paying-high-price
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