पहले पूछता नहीं, अब इनाम देगा, सेल्फी लेगा, हिप्पोक्रेट है सब लोगां-सिंधु


जब तक एक का तीन वसूला न जा सके तब तक मेरा मैनेजमेंट और संपादक जी एक दमड़ी खरचने के लिए तैयार नहीं होते। पीवी सिंधु जब सेमीफायनल में पहुँच गई और किसी स्पांसर से सेटिंग हो गई तो उन्होंने आनन-फानन में मुझे रियो भेज दिया।

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सेमीफायनल तो ख़ैर मैं कवर कर ही नहीं पाया मगर मामला ऐसा कट टू कट था कि इधर मैं स्टेडियम में दाखिल हुआ और उधर फायनल शुरू हुआ। अपन ने भी जोश में भरकर खूब इंडिया-इंडिया चिल्लाना शुरू कर दिया। पहले सेट में सिंधु की जीत के बाद आवाज़ में थोड़ा और ज़ोर आ गया मगर फिर उम्मीदें घटने के साथ-साथ वह कम होता गया। लेकिन सिंधु ने सिल्वर जीतकर भी खुश कर दिया। भारतीय खेल इतिहास के लिए तो ये सुनहरी उपलब्धि थी ही, मगर ऐसे मौके पर वहाँ होना अपने लिए भी ये लाइफ टाइम अचीवमेंट बन गया।

मैच ख़त्म होने के बाद मैं उसका एनकाउंटर करने पहुँचा। वह अभी भी भारतीय खिलाड़ियों और मीडिया के लोगों से घिरी हुई थीं। थोड़ी देर में जब भीड़ छंटी तो मैंने इजाज़त लेकर बातचीत शुरू की-



सिंधु आपको इस ऐतिहासिक सफलता के लिए ढेर सारी बधाईयाँ। आपने अपना ही नहीं देश का नाम भी रोशन किया है। आपसे पता नहीं कितनी महिला खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी?
थैंक्यू थैंक्यू। मैं भी आज बहुत खुश हूँ। मुझे खुशी है कि देश ने जो अमी से एक्सपेक्ट किया था मैं उसे पूरा कर सकी। लेकिन मैं थोड़ा दुखी भी हूँ। मैं गोल्ड जीतना चाहती थी, जीत भी सकती थी, मगर आख़िरी दो सेट में गड़बड़ कर दिया। 


खेल में ये सब तो होता रहता है सिंधु, उसे भूल जाइए और आज अपनी इस कामयाबी का जश्न मनाइए। आपने हिंदुस्तान के खेल इतिहास में नया पन्ना जोड़ दिया है?
मेरा कोच भी येइच बोलता है। ओके आई एम हैप्पी (इतना कहकर सिंधु मुस्कराने लगी)।

सिंधु सब कह रहे हैं कि आपकी जीत का भारतीय खेलों और खिलाड़ियों पर ज़बर्दस्त असर पड़ेगा, आपको क्या लगता है?
मुझे नहीं लगता कोई असर पड़ेगा। मैं इसलिए बोला कि हमारे यहाँ पहले भी लोगां ने मेडल जीता मगर कुछ हुआ नईं। एक्चुली में क्या किपहले पूछता नहीं, मगर अभी खूब बात करेगा, मीडिया में शोर मचेगा। इनाम बाटेगा, सेल्फी लेगा और फिर भूल जाएगा अगले ओलंपिक तक। हिप्पोक्रेट है सब।

आप ऐसी निराशा भरी बातें क्यों कर रही हैं?
मैं इसलिए कर रही हूँ कि इंडिया में अइसैच होता है। पहले खिलाड़ी को सपोर्ट नई करेगा, पीछू जब वो कुछ अचीव करेगा तो उसका क्रेडिट लेने पहुँच जाएगा अउर अगर फेल हो गया तब तो उसका जीना मुश्किल कर देगा। अभी देखो साक्षी के साथ क्या हुआ। उसका पैरेंट घर बेचकर उसको कुश्ती का कोचिंग दिलवाया। तब उधर का सरकार ने  अउर स्पोर्ट्स अथॉरिटी ने कुछ नईं किया। अभी जब वो ब्रांज जीत लिया तो ढाई करोड़ का इनाम दे दिया, नौकरी भी दिया। ये तो हाइट ऑफ हिप्पोक्रेसी है न।

मैं आपसे सहमत हूँ सिंधु। लेकिन आप लोग की जीत से उम्मीद बँध रही है कि अब कुछ चेंज आएगा?
हमको नईं लगता कि कोई चेंज आएगा। जब तक नेता लोग पॉलिटिक्स करेगा अउर एडमिनिस्ट्रेटर लोगां खिलाड़ियों को जानवर के माफ़िक ट्रीट करेगा कोई चेंज नई आने का। अभी देखो दुतीचंद क्या ट्वीट किया था। बेचारी को इकोनाँमी क्लास में छत्तीस घंटे का जर्नी करवाया। अब वह रियो में कैसे परफार्म करता। इधर इंडिया में ज़रा कोचिंग सेंटर में जाकर देखो क्या हाल है। खाना ठीक से नई देता। रहने का जगह एकदम फालतू। यहाँ तक कि खेल का सामान भी घटिया होता है। ये तो हम लोगां का पर्सनल विल प़ॉवर है जो फिर भी स्ट्रगल करके आगे बढ़ता रहता है। एक्चुली में हमारा पोलिटिसियन और एडमिनिस्ट्रेटर आर एक्सप्लायटर। दे एक्सप्लायट अस।

आप सही कहती हैं कि इर्फास्ट्रक्चर बहुत खराब है और खेल प्रशासन बहुत संवेदन हीन भी। मगर हमें उम्मीद रखनी चाहिए?
कइसे उम्मीद रखेगा हमको बताओ तुमे? सेवेंटी परसेंट लोगां के पास खाने को नईं है मुल्क में। उसका जिंदा रहना मुश्किल है तो उने खेलेगा कइसे? उम्मीद रखना एक बात है मगर हार्ड रियलिटी दूसरा। अभी सब बोलता है कि हमको चाइना का बराबरी करने का, यूएस का बराबरी करने का। ये कोई डिस्कस नईं करता कि ऊना लोग स्पोर्ट्स पर कितना खर्च करता। चीन अउर यूएस हमसे हज़ार गुना ज़्यादा खर्चा करता। जमैका जइसा छोटा मुलुक भी हमसे पचास गुना ज़्यादा खर्च करता है। हमारे मुलुक में एक तो कम खर्च करता है उसमें भी पोलिटिसियन अउर एडमिनिस्ट्रेटर मिलकर सब खा जाता है। खिलाड़ियों को तो कुत्तों के माफिक टुकड़ा डाल दिया जाता है।



अऊर एक बात बोलेगा। हमारे स्पोर्ट्स में कास्ट सिस्टम भी बहुत है। अभी देखो नरसिंह यादव को कइसा साज़िश करके बरबाद किया है। वो ज़रूर मेडल जीतता, मगर उसको ड्रग्स में फँसा दिया। पूरा सिस्टम में ये कास्ट घुसा हुआ है। लोअर कास्ट को ऊपर आने नईं देता जबकि उसमें बहुत ज़्यादा टैलेंट है, अपर कास्ट से ज़्यादा टैलेंट है। मगर उसको आने नईं देता, अगर आता तो साज़िश करके बाहर कर देता। अइसे में हमारा खेल कइसा डेवलेप होगा सोचो तुमी।


लेकिन सिंधु, आप ये तो मानोगी न कि आम लोगों के मन में खेल के लिए बहुत इज्ज़त है, वो खिलाड़ियों को बहुत प्यार करते हैं?
सब बकवास। सब बोलने का बातां है। ज़रा जाकर देखो, सब माँ-बाप अपने बच्चा लोगां को बोलता खेल-कूद में टाइम बरबाद नईं करने का, बस पढ़ो, डॉक्टर, इंजीनियर एमबीए बनो। उसमें लाइफ सेफ है। खेल में कुछ नईं रखा। सब डिसकरेज करता। लड़की लोगां के लिए तो हालत अउर भी खस्ता। उनको तो घर से निकलने नईं देता, खेलने क्या देगा। हम इंडियन लोग पक्का हिप्पोक्रेट। हिप्पोक्रेट बोले तो ढोंगी। बोलता कुछ है करता कुछ। उनाकूं बस क्रिकेट ही क्रिकेट दिखता। क्रिकेट का खिलाड़ी खुदा का माफ़िक और सिंधु, साक्षी, मैरी काम, सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल सब फालतू, एकदम फालतू। मेडल जीतेगा तो शोर मचाने लगेगा, फिन सब भूल जाएगा। याद रखेगा तो सचिन, धोनी, कोहली को, बस। उनका मंदिर बनाएगा, पूजा करेगा, दिन-रात उनी लोगां का बात करेगा, जबकि क्रिकेट में सबसे ज़्यादा टाइम बरबाद होता।

लेकिन अब नज़रिया बदल रहा है सिंधु। अब माँ-बाप बच्चों को खिलाड़ी भी बनाने की तरफ सोचने लगे हैं?
हाँ, खिलाड़ी बनाने के बारे में सोचने लगा है कुछ लोग, लेकिन पइसा कमाने वाला खिलाड़ी। वो क्रिकेट खिलाता है, टेनिस खिलाता है, गोल्फ और बैडमिंटन खिलाता है, क्योंकि इन गेम्स में पइसा है। ट्रैक एंड फील्ड किसी को नईं दिखता, उसका मार्केट कम है न। अउर ये एटीट्यूड भी रिच क्लास में बदला है, क्योंकि वो अफोर्ड कर सकता है। खेल में फेल होगा तो कोई बिजनेस करने लगेगा, लेकिन आम लोगां तो अइसा नईं सोच सकता न। जब तक ग्रास रूट लेवल पर चेंज नईं आएगा, तब तक कुछ नईं बदलेगा।

कुछ भी कहो सिंधु मुझे लगता है कि जिस तरह से महिला खिलाड़ी जीत रही हैं, उससे कम से कम लड़कियों को लेकर तो लोगों के सोच में बदलाव आएगा। लोग अब मैरी क़ोम, सायना, सानिया और आप जैसी खिलाड़ियों को भी रोल मॉडल मानने लगे हैं?
आई डोंट नो हाऊ फॉर इट इज़ ट्रूथ......लेकिन जो कुछ हमारे मुल्क में हो रहा है उसे देखकर लगता है कि हम लोग उल्टा डायरेक्शन में जा रहा है


वो कैसे?
देखो न, हमारे यहाँ जिसको देखो वही बोल रहा है कि औरत लोगाँ को ये करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए। वो लोंगा बोलता लड़की लोगां को घर में रहकर बच्चा पालना मांगता। अभी सानिया की स्कर्ट को को लेकर हंगामा करता तो कभी किसी और चीज़ को लेकर। ये कल्चरल पोलिसिंग करने वाला लोगां लड़की लोगां का दुश्मन है। क्राइम अगेंस्ट वीमेंस इतना बढ़ गया है कि लड़कियाँ बाहर जाने से भी डरने लगा है। अइसे में औरत लोगाँ कैसे आगे आएगा अमी को समझ मे नईं आता। अमी को लगता है कि अगर खेल में अमको कुछ करने का तो पहले सोसायटी को चेंज होना। नईं तो हमारे जइसा मॉडल आएगा अउर चला जाएगा।

(इतनी बातचीत करने के बाद मुझे लगने लगा कि बातचीत ग़लत ट्रैक पर चली गई है। ये मौक़ा ऐसे सवालों का नहीं है। अभी तो सिंधु को चियरअप करने का है, उसकी अचीवमेंट को सेलिब्रेट करने का है। लिहाज़ा मैने दो-चार सवाल मैच, कोच और उसके घरवालों के बारे में किए और उसे बधाई देकर चला आया।)

Written by-डॉ. मुकेश कुमार










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पहले पूछता नहीं, अब इनाम देगा, सेल्फी लेगा, हिप्पोक्रेट है सब लोगां-सिंधु

ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। इसे इसी रूप में पढ़ें।

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1 comments:

  1. एकदम सही बोल रहे हैं आप मुकेश जी। जैसे 70 साल तक जब कुर्सी छूट गयी तो कांग्रेस कम्युनिस्ट्स और माओवादी कन्हैया कुमार के पैरों पर गिर पड़े। अभी तक गरीबों की याद नहीं आ रही थी। और ऊपर से केजरीवाल जिन्हें मूवीज रिव्यू से फुर्सत नहीं है..एक भी डिपार्टमेंट नहीं लिया दिल्ली सरकार में. पूरी दिल्ली को शराबी बना दिया और पंजाब से ड्रग्स हटाने चले हैं। नशे में धुत्त भगवंत मान को सारे भारतियों का नस्कर बोलियेगा 😷

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