आलोचना को अश्लील और अमर्यादित नहीं होना चाहिए


अभी हाल में 2016 का समकालीन युवा कविता का सबसे प्रतिष्ठित और बहुचर्चित भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, इस बार युवा कवि शुभम श्री (जन्म:1991) की कविता ’पोएट्री मैनेजमेंट’ को देने का निर्णय लिया गया है। इस साल पुरस्कार के निर्णायक थे कवि उदयप्रकाश। यह कविता नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाली अनियतकालिक पत्रिका ‘जलसा-4’ में प्रकाशित हुई है।

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इस पुरस्कार की स्थापना तार-सप्तक के यशस्वी कवि श्री भारत भूषण अग्रवाल की स्मृति में उनकी पत्नी स्वर्गीय श्रीमती बिन्दु अग्रवाल ने सन् 1979 में की थी। पुरस्कार समिति के निर्णायक मण्डल में श्री अशोक वाजपेयी, श्री अरुण कमल, श्री उदय प्रकाश, श्रीमती अनामिका और श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल हैं, जो हर वर्ष बारी-बारी से वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कविता का चयन करते हैं। इस बार के निर्णायक श्री उदय प्रकाश थे।

और जब से यह पुरस्कार कवयित्री शुभम को मिला है, विवाद सा छिड़ गया है. कोई कविता को स्वीकार नहीं कर रहा है, कोई कवयित्री को, तो कोई चयन समिति को ही नकार रहा है... आलोचनाओं का अंबार लग गया है सोशल मीडिया पर, फेसबुक और वटसप ग्रुप्स में, ज्यादातर आलोचना शुभम श्री और उनकी कविता के विरोध में ही की जा रही है.. किसी को भाषा शैली पसंद नहीं आ रही, किसी को विषयवस्तु...



इतने मंझे हुए, साहित्यकारों, और शिक्षकों ने कविता को पुरस्कार के लिए चुना है..... फिर भी लोग विपक्षीय आलोचना कर रहे हैं..... क्यों? सिर्फ इसलिए कि, कविता उनकी समझ विचारों के म्यार पर खरी नहीं उतरी....
आईये ज़रा कुछ आलोचनात्मक टिप्पणीयों पर नज़र डालें, जो सोशल मीडिया पर की गई, शुभम जी की कविता के संदर्भ में..

(1) पहली बात यह है सम्मान से पहले शुभम को कोई नहीं जानता था इसलिए आलोचना शुभम की नहीं कविता की हुई थी ।
मैं यह बात अब भी कह रहा हूँ कविता में कोई नई बात नहीं थी । अगर आप लोग कविता पढ़ते हैं तो आपको शुभम जैसी ही कविता खूब मिल जाएंगी

सुरेन्द्र जिंसी
(2) भाया इस कविता बुखार,ब्रेक आप,आई लव यू को ही पुरुष्कृत कर दिया जाता तो इतनी फजीहत नहीं होत। तोड़ फोड़ की क्रमबद्धता तो इसमें कथ्य के अनुसार  है पर फिर भी वह व्यक्तिगत स्तर पर ही है जो स्वालंबी स्त्रियों के साथ कम से कम जुड़ तो जाती है।परंतु पुरुष्कृत वाली तो किसी से भी सही ढंग से नहीं जुड़ पाती है।

बी. एल. पाल
भाषा शैली में कोई नयापन नहीं है । और न ही कविता में कोई नयापन है । इस कविता का चुनाव कविता की ताकत की वजह से नहीं, बल्कि एक हो-हल्ला पैदा करने की वजह से किया गया है । कविता का चयन यह बताता है कि देश में हर चीज का चुनाव इसी तरह का होता है । और इस तरह के चुनाव प्रतिभाओं का पतन कर रहें हैं जिसके उदय प्रकाश जी खुद भुक्तभोगी हैं ।

मित्र मंडल ग्रुप के एक सदस्य द्वारा

उस बच्ची को बहुत सताया जा रहा है। ऐसे लग रहा है कि उसे पुरस्कार नहीं श्राप मिल गया है।
कुछ लोग उदय प्रकाश को बकवादी साबित कर रहे हैं और तो और कुछ लोग भारत भूषण के चरित्र-चित्रण का सुख लूट रहे हैं।
रमैया के दुलहिन लूटै बाज़ार....
लोग दरोगा की तरह पेश आ रहे हैं। े सभी दिमागी तौर पर सामंती वाइरस से इन्फेक्टेड हैं। ऐसे ऐसे फरमान जारी कर रहे हैं मानो हिंदी साहित्य विभाग के सफाई मंत्री हों।
अपने ही मानस में जमी स्त्री-विरोधी काई में सदियों से फिसल-फिसल कर गिरने वाले.........जाने दीजिए, क्या कहा जाए।

रमन मिश्रा
मैंने भी कविता को दो तीन बार पढ़ा, और पढ़कर अनुभव किया कि, कविता में नई भाषा का प्रयोग किया गया है, और कवयित्री ने अपनी इस कविता को बिल्कुल साधारण, आमबोलचाल की भाषा शैली में, व्यक्त किया है... कह सकते हैं गद्य में लिखा है, और एक ही कविता में बहुत सारे प्रश्न उठाए है.. एक चिकित्सकों का उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट करती हूँ..



किसी झोला छाप डॉ के पास दँवाई लेने जाओ..... सर्दी लग जाने पर , जो अमुमन होता है.... ज़ुक़ाम, बुखार, बदन दर्द, खाँसी, तो वो डॉ एक ही खुराक में, चार टेबलेट देगा... पैरासिटामोल, निमोस्लाइड, सिट्राजेन और खाँसी का सिरप.... खुली शीशी में गुलाबी रंग का...... घर आ कर बीमार हालत में तीन गोलियां और सिरप पियो, थोड़ी देर बाद, आपके हाथ पैर कांपने लगेंगे, घबराहट होगी, प्यास भड़क जाएगी.... बी पी लो हो जाएगा... कारण होगा कि, बीमारी के कारण आप भर पेट खाना नहीं खाएंगे, और 250/500 mg  की गोलियां खाएंगे... यही होता है अक्सर अंग्रेजी दँवाईयों की डोज़ लेकर.... टटपुंजिये झोला छाप डॉ को अक्ल नहीं होती है... और कभी-कभी तो m. b. b. s, md  जो  नए नए डिग्री लेकर आते हैं, सिखवड़ होते हैं, अनुभव के अभाव में, ऐसी ग़लती करते हैं.... एक समझदार डॉ मरीज़ की बीमारी के साथ, उसकी शारीरिक हिस्ट्री भी देखता है, और फिर उसकी बॉडी नेचर को समझता है, फिर दवाइयाँ लिखता है... साथ में परहेज़ भी बताता है... और दँवाईयों का ढेर नहीं थेली में भरकर देता... खाने के लिए.... ऐंटीबयॉटिक दँवाई देता है... एक ही गोली खाने से कई बीमारियों में फायदा होता है... ऐंटीबयॉटिक दँवाईयों के साइडईफेक्टस भी होते हैं.. इसीलिये एक अनुभवी डॉ जहाँ ऐंटीबयॉटिक की जरूरत होती है, वहीं अपने मरीज़ को देता है... आजकल

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