रायबरेली से राहुल गांधी, रणनीति या बड़ी भूल? Video Included
Is Rahul Gandhi's Rae Bareli Strategy a Winning Formula or a Disaster?
दोस्तों
राहुल गांधी ने राय बरीले से चुनाव लड़ने का फैसला किया है वह अब अमेठी से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और उसको लेकर एक राष्ट्रीय स्तर की बहस शुरू हो गई सबसे ज्यादा हमलावर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी पार्टी के नेता हैं वह राहुल गांधी के लिए कह रहे हैं कि वह भाग गए वह डर गए भाग गए
इसलिए अमेठी से चुनाव नहीं लड़ा क्या इसमें कोई हकीकत है या सचमुच में अमेठी से चुनाव ना लड़ना राहुल गांधी की कमजोरी है कायरता है इसे इस तरह से देखा जाना चाहिए या फिर यह चुनाव का खेल है राजनीति का खेल है
जिसमें आपको बहुत सारे प्लस माइनस देखने पड़ते हैं यह सीधे-सीधे भिड़ जाने वाला मामला नहीं होता है अब सवाल उठता है कि अगर हम इसको इस तरह से देखना चाहे कि यह राजनीतिक भूल है या फिर राजनीतिक दाव है
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इसे किस तरह से आप इसका आकलन करेंगे तो सबसे पहले ये देखते हैं अगर यह भूल है तो किस तरह से भूल है तो इस तरह से कि आपने इतना हाइप खड़ा किया कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ सकते हैं एक माहौल बन गया और उस माहौल के बाद राहुल गांधी ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया
या वो चुनाव लड़ने वहां नहीं गए उन्होंने वहां से नामांकन दाखिल नहीं किया गया तो इसका एक नेगेटिव मैसेज तो जाता ही है कि आखिरकार राहुल गांधी ने ऐसा क्यों किया दूसरी बात यह है कि पिछले कुछ दिनों से लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कह रहे थे कि यह तो वायनाड भाग कर गया था वायनाड से भी भाग जाएगा
वगैरह वगैरह मतलब राहुल गांधी को जो बदनाम करने की जो तमाम हत कंडे मोदी जी इस्तेमाल करते उनमें से एक यह भी था अब ऐसी सूरत में अगर राहुल गांधी अमेठी के मैदान में उतर पड़ते तो जाहिर है यह एक मैसेज जाता पूरे उत्तर प्रदेश में पूरे देश में कि व आंख से आंख मिलाकर लड़ने के लिए आए हैं वह पीछे नहीं हट रहे हैं
तो एक यह बड़ा पुख्ता संदेश जाता इस लिहाज से आप मान सकते हैं कि यह संदेश अब नहीं जाएगा इसलिए भूल है उन्होंने एक सुरक्षित सीट चुनी है राय बरेली और वहां से लड़ रहे हैं इसका मतलब है कि वह जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं थे
जोखिम लेना नहीं चाहते थे तो एक तो यह बात हो गई लेकिन इसका दूसरा पक्ष है जिसमें हम राजनीतिक समझदारी की बात कर रहे हैं राजनीतिक चतुराई की बात कर रहे हैं उसमें सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राहुल गांधी अगर अमेठी में लड़ते तो अमेठी में लड़ने में उनकी ऊर्जा ज्यादा लगती उन्हें ज्यादा समय देना पड़ता
क्योंकि वहां मुकाबला निश्चित रूप से थोड़ा टफ होता क्योंकि स्मृति ईरानी जो कि मोदी जी की खासम खास है उनको उनको जिताने के लिए और राहुल गांधी को हराने के लिए भी पूरा पूरी बीजेपी का अमला वहां जुट जाता
तमाम मंत्री राज्य की सरकार योगी आदित्यनाथ और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस दौरान तीन चार दौरे करके एक माहौल बनाने की कोशिश करते तो दबाव में आ जाती कांग्रेस और राहुल गांधी भी दबाव में आते क्योंकि उनको भी ज्यादा वक्त देना पड़ता
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और ज्यादा वक्त देने का मतलब यह है कि वह फंस जाते अपनी कांस्टेंसी में और जो वो स्टार कैंपेनर है सबसे बड़े स्टार कैंपेनर हैं कांग्रेस पार्टी के और उनकी जरूरत राष्ट्रीय स्तर पर है
वो फिर दूसरे हिस्सों में चुनाव प्रचार के लिए ना जा पाते या कम जा पाते या तो वह अमेठी पर फोकस करते या राष्ट्रीय स्तर पर फोकस करते तो इस लिहाज से यह एक समझदारी वाला फैसला कहा जाएगा
कि उन्होंने इस चक्रव्यू में फंसने से इंकार कर दिया यह जो जाल था जो उनके भगोड़े के रूप में बुना जा रहा था वह उसमें नहीं फंसे उससे निकल आए और उन्होंने यह स्वीकार कर लिया कि जो बीजेपी का प्रचार तंत्र है वो तो उनके पीछे वैसे भी पड़ा रहता है वह भी उटपटांग कोई भी अनाप शनाप तर्क देकर उनको घेरने की कोशिश करते ही रहते हैं
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तो इस पर भी घेर अगर वो लड़ते तब भी घेरा जाता तब भी हमले होते तो उन्होंने अपने आप को उससे अलग कर लिया अब रायबरेली चूंकि ज्यादा सुरक्षित सीट है बहुत पारंपरिक सीट है उस पर लगातार इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी और अब व खुद लड़ने पहुंच गए तो एक पारंपरिक सीट है
उसको बचाने का जो उनका लक्ष्य रहा होगा वो भी हो गया है यह भी इससे यह लक्ष्य भी सद जाता है कि उत्तर प्रदेश में कम से कम गांधी परिवार का एक शख्स चुनाव लड़ रहा है
तो ये एक बहुत सेफ गेम है अब लोग पूछते हैं कि तो फिर प्रियंका गांधी को उतार देना था अमेठी से लेकिन यह भी गांधी परिवार के लिए कोई अच्छी बात नहीं होती कि उनके परिवार के तीन-तीन सदस्य पार्लियामेंट में होते और शायद इसी वजह से प्रियंका गांधी पीछे हट गई
या उनको खड़ा नहीं किया गया है हालांकि संकेत दे दिए गए हैं कि जब दो सीटों से अगर जीतते हैं राहुल गांधी राय बरेली और वायनाड तो उनमें से एक छोड़ेंगे
और फिर वहां से प्रियंका गांधी उपचुनाव लड़कर संसद में पहुंच सकती हैं और फिर अगर चुनाव प्रियंका भी लड़ने लगती तो दोनों ही बिजी हो जाते अपनी कंसीट में और प्रचार राष्ट्रीय स्तर पर जो करना था और प्रभावित होता
तो उन्होंने इससे भी प्रियंका गांधी को खाली रखा है और वह जमकर प्रचार कर सकती हैं तो रणनीतिक लिहाज से अगर देखें तो उन्होंने यह पार्टी के हित में और अभियान के हित में अच्छा काम किया
दूसरी बात स्मृति ईरानी को एक बड़ा नेता बनने का मौका नहीं दिया उनके सामने केएल शर्मा को खड़ा करके उन्होंने उनको डिफेंसिव कर दिया केल शर्मा भी बहुत पुराने आदमी हैं
अमेठी से उनकी वाक़फ़ियत बहुत अच्छी है तो वह भी एक बड़ा चैलेंज स्मृति रानी को दे सकते हैं इस लिहाज से अगर देखें तो जो ना लड़ने का फैसला मेटी से उससे थोड़ा नुकसान जरूर होगा
लेकिन राय बरेली से लड़ने के फैसले से फायदा ज्यादा होगा कांग्रेस पार्टी को और लॉन्ग टर्म में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी।