अगर आम रसीले हों, गूदेदार हों अच्छी रंगत वाले हों तो किसी का भी दिल मचल सकता है। दिल क्या जुबान भी मचल सकती है। ये भी मुमकिन है कि मुँह भी अनियंत्रित हो जाए और अनचाहे ही उसमें पानी भर आए। इसके बाद तो लार टपकना भी लाज़िमी ही हो जाता है। ये और बात है कि लोग सबके सामने लार न टपके इसलिए उसे उदरस्थ कर लेते हैं।
ये एक स्चाभाविक मानवीय प्रवृत्ति है कि अच्छी चीज़ों को देखकर लोगों की लार टपकने लगती है। लेकिन शर्त यही है कि वह चीज़ अच्छी हो। सड़ी-गली चीज़ों पर भला लार कौन टपकाता है?
अब आमों को ही ले लीजिए। ज़रूरी नहीं है कि सभी आम अच्छे हों। वे पिलपिले, चुसे हुए, खट्टे भी हो सकते हैं। उन्हें देख और सूँघकर कोई भी जानकार आसानी से समझ जाएगा कि उन पर लार टपकाना बेकार है। उसकी लार टपकेगी ही नहीं, बल्कि बनेगी ही नहीं, क्योंकि लार ग्रंथियाँ ऐसे मौक़ों पर सक्रिय नहीं होतीं।
हाँ कई बार आमों के रंग-रूप देखने से भ्रम हो सकता है। ऊपर से वे ललचाने वाले लग सकते हैं, मगर अंदर से खट्टे या सड़े हुए भी। कई बार तो गुठलियों तक में कीड़े हो सकते हैं। लेकिन जानकार लोग आमों की किस्मों से वाकिफ़ होते हैं। उन्हें पक्की जानकारी होती है कि फलाँ आम का स्वाद कैसा होगा। इसलिए वे तुरंत उतावले नहीं हो जाते। वे लार टपकाना तो दूर, उन आमों की तरफ़ देखते भी नहीं।
इसलिए किसी को चिंतित नहीं होना चाहिए कि कहीं कोई सड़े आमों को देखकर लार टपकाएगा। वे उन्हें अपनी टोकरी में रखे रहें। सड़े आम सड़े आमों की संगत में रहें तो अच्छा है। अच्छे आमों के साथ आकर वे उन्हें भी सड़ा देते हैं। इसीलिए फल विक्रेता सड़े आमों को फौरन अच्छे आमों के बीच से हटा देते हैं और उन्हें उन्हीं की तरह के आमों की संगत में रख देते हैं।
कई दुकानदार लालची भी होते हैं। वे सोचते हैं कि अच्छे आमों के साथ सड़े आम भी बेच देंगे। इस चक्कर में उन्हें चमकाकर रखते हैं। कई लोग धोखे में खरीद भी लेते हैं और फिर पछताते हैं। लेकिन कई मर्तबा दुकानदार को भी पछताना पड़ता है।
अभी बाज़ार में जिस आम की ख़ास चर्चा हो रही है, अमूमन हर आम-ओ-ख़ास को उसके बारे में पता है। उसकी शक्ल को ही देखकर लगता है कि वह धक्का खाकर पिलपिला हो गया है। लोगों को पक्का पता है कि ये अंदर से सड़ गया है और इसकी गुठलियों में भी अगर कीड़े लग गए हों तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
कई लोगों का कहना है कि ऐसा कोई सगा नहीं जिसको इस आम ने ठगा नहीं। हालांकि आमों के दाँत नहीं होते, मगर पता नहीं क्यों कहा जाता है कि इसके पेट में दाँत हैं। कुल मिलाकर ये कि इस आम को लेकर ढेरों संदेह हैं। ज़ाहिर है कि इस पर कोई लार नहीं टपका रहा।
फिर भी अगर कोई कह रहा है कि उस सड़े, गले, पिलपिले आम पर लार न टपकाई जाए, तो उसके प्रति हमदर्दी ही रखी जा सकती है। हमदर्दी इसलिए कि हम देख रहे हैं कि वह उस सड़े आम को खा रहा है और उसकी सेहत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
लेकिन हमदर्दी जताकर ही भला क्या होगा। विनाशकाले विपरीत बुद्धि। जिसका बुरा वक़्त आता है कुदरत उसकी बुद्धि पहले ही हर लेती है। इसलिए कुछ नहीं हो सकता।
कृपया सड़े आम उसी टोकरी में ही रहने दें, लार न टपकाएं
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