इंडिया न्यूज़ और तीन अन्य टीवी चैनलों को चार हफ़्ते तक सस्पेंड करने का निर्णय लेकर बार्क यानी ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च कौंसिल ने ये संकेत तो दे दिए कि वह धाँधली बर्दाश्त नहीं करेगा, बल्कि कड़ी कार्रवाई करने के लिए भी तैयार है। लेकिन इस प्रकरण ने एक बार फिर से ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या टीवी रेटिंग बताने की व्यवस्था छिद्ररहित है, अचूक है?
टैम इंडिया को हटा कर उसकी जगह एक विश्सनीय मार्केटिंग रिसर्च एजंसी की स्थापना का वादा करते समय बार्क के संस्थापकों ने यही भरोसा दिया था कि वे सारी सावधानियाँ बरत रहे हैं। मगर दो साल के अंदर ही कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जो संदेह पैदा करने वाली है।
सबसे पहला सवाल तो यही है कि बार्क धांधली के ज़रिए टीआरपी में छलांग लगाने वाले इन चैनलों को सही समय पर क्यों नहीं पकड़ पाया? लगभग छह महीने बाद उसे संदेह हुआ कि इंडिया न्यूज़ तथा तीन अन्य चैनल ग़लत तरीकों से टीआरपी बढ़ाने के लिए रेटिंग प्रणाली के साथ कोई छेड़छाड़ कर रहे हैं। यानी कार्रवाई करते समय भी वह पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था। ये उसकी बहुत बड़ी नाक़ामी कही जाएगी।
बार्क को ये सोचना चाहिए कि इन छह महीनों में उन चैनलों को साख एवं राजस्व का कितना नुकसान हुआ होगा जो रेटिंग में ऊपर के स्थान के सही हक़दार थे। अगर धाँधली से प्रभावित हुए टीवी चैनल बार्क पर हर्ज़ाने का दावा नहीं ठोंक रहे हैं तो शायद इसलिए कि वे मानते हैं कि बार्क ने पर्याप्त कार्रवाई कर दी है। दूसरा कारण ये हो सकता है कि चूँकि बार्क में वे खुद भी हिस्सेदार हैं इसलिए अपनी ही बनाई संस्था को कठघरे में खड़ा करना उचित नहीं होगा। सोचिए, अगर ऐसा ही कुछ टैम इंडिया की वजह से हुआ होता तो वे आसमान सर पर उठा लेते, जो कि सही भी होता।
धांधली करके रेटिंग बढ़ाने का पूरी प्रणाली में एक ही तरीका है और वह है पहले उन घरों की जानकारी हासिल करो जहाँ पीपल्स मीटर लगे हैं और फिर उन परिवारों को रिश्वत देकर अपना चैनल ज़्यादा देखने के लिए राज़ी कर लो। ज़ाहिर है कि निलंबित चारों चैनलों ने भी यही रास्ता अख़्तियार किया होगा। ऐसे में ये पूछना बनता है कि बार्क पीपल्स मीटर वाले कुल बाईस हज़ार घरों के बारे में गोपनीयता क्यों नहीं बरत पा रहा या उन घरों पर उसकी निगरानी में चूक क्यों हो रही है? अगर वह इतना भी सुनिश्चित नही कर पा रहा तो फिर टैम और उसमें फ़र्क क्या रह जाता है? आख़िर टैम के ख़िलाफ़ जो प्रमुख आरोप थे उनमें से एक यही था। इसी आरोप को लेकर एनडीटीवी कोर्ट में गया था और भारी हर्ज़ाना माँगा था।
ये पहली घटना नहीं है जब बार्क के पीपल्स मीटरों की गोपनीयता भंग हुई है या उनका दुरूपयोग हुआ है। कुछ समय पहले भी कुछ लोगों ने ये जानकारी सार्वजनिक की थी कि पीपल्स मीटर कहाँ-कहाँ लगे हैं। ये ऐसी जानकारी है जिसका इस्तेमाल करके अपनी रेटिंग को बढ़वाया जा सकता है। मार्केटिंग रिसर्च की निष्पक्षता और विश्वसनीयता को क़ायम रखने के लिहाज़ से इस जानकारी का लीक होना बहुत ग़लत है, क्योंकि इससे पूरे आँकड़े ही संदिग्ध हो जाते हैं। सवाल उठना लाज़िमी है कि दूसरे चैनल इस तरह की तिकड़मों में लिप्त नहीं होंगे और जो आगे बढ़ रहे हैं उनकी सफलता के पीछे इनका हाथ नहीं है।
ध्यान रहे कि बार्क का गठन टीवी चैनलों, विज्ञापन एजंसियों और विज्ञापनदाताओं ने मिलकर किया था। इसका मतलब है कि उन्होंने एक पारदर्शी, ज़्यादा कुशल एवं विश्वसनीय व्यवस्था बनाने की ज़िम्मेदारी उठाई थी। ये कहना तो ग़लत होगा कि वह इसमें पूरी तरह फेल हो गई है। कुछेक मोर्चों पर उसने सचमुच में महत्वपूर्ण प्रगति की है। मसलन, पीपल्स मीटरों को वह ऐसे क्षेत्रों में ले गया है जिनकी उपेक्षा की जा रही थी। इनमें पूर्वोत्तर के राज्य भी हैं और ग्रामीण क्षेत्र भी। इससे जनता की पसंद जानने का आधार थोड़ा बढ़ा है।
इस सबके बावजूद इस सचाई से वह मुँह नहीं मोड़ सकता कि पीपल्स मीटरों के ग़लत इस्तेमाल को रोकने में उसकी नाकामी बहुत बड़ी एवं घातक है। ख़ास तौर पर इसलिए कि ये काम वही कर रहे हैं जो उसके गठन में हिस्सेदार हैं। इसलिए उससे भी कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा की जानी चाहिए जो उसने चार चैनलों के ख़िलाफ की है।
टीवी रेटिंग में ‘धांधली’ से उठे सवाल
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
अन्य पोस्ट :
किसकी लाठी, किसके लठैत?
काला धन, काला मीडिया
Black money, black media
जब सरकार मुक़ाबिल हो...
न्यूज़ ऐंकरिंग के नए गुरु-मंत्र
मीडिया को जंगखोर किसने बनाया?
Who made media war hungry?
प्रायोजित स्वच्छता अभियानों का कूड़ा-करकट
प्रोपेगंडा मशीनरी से चमकता नक़ली विकास
अमिताभ बच्चन भाँड़ हैं भाँड़, जया उनसे ज़्यादा ईमानदार इंसान-काटजू
मेरा मुँह न खुलवाएं, एक-एक आदमी नंगा हो जाएगा-अमर सिंह
बलूचिस्तान से तो मेरी बल्ले-बल्ले हो गई, लॉटरी लग गई-नवाज़ शरीफ़
back to home page