बुआ को मुख्यमंत्री बन जाने दूँगा मगर चाचा को नहीं-अखिलेश यादव

मुलायम परिवार के महादंगल ने समाजवादी पार्टी को अखिल भारतीय तमाशा बना दिया है। अब तो लोग हर रात कॉमेडी नाइट्स देखने के बजाय सपा फाइट्स देखकर हँसने का अपना कोटा पूरा कर लेते हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी के लिए मुलायम खानदान का ये कॉमेडी सीरियल अब लंबा हो चला है और ट्रेजेडी की तरफ बढ़ रहा है।

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मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पापा और चाचा के दो पाटों में पिस रहे हैं। अमर सिंह इस नाटक में खलनायक की भूमिका में हैं और अखिलेश की सौतेली माँ का वैंप वाला किरदार भी डाल दिया गया है। पार्टी अध्यक्ष का पद शिवपाल को दे दिए जाने के बाद से अखिलेश रूठने और बहुअर्थी टीका-टिप्पणियाँ करने के अलावा कुछ ख़ास कर नहीं पा रहे हैं। मुझे पता चला कि वे अंदर से भरे बैठे हैं और कोई सही ढंग से बात करे तो सब बाहर आ सकता है। मैंने सोचा कि क्यों न मैं खुद ही जुबान आज़मा लूँ, लिहाज़ा पहुँच गया उनसे मिलने।

अखिलेश मुझे देखते ही चौंक गए। एनकाउंटर की आशंका देखते ही वे सावधान भी हो गए। लेकिन पुराना परिचय होने की वजह से शांत बने रहे। मैंने भी उनकी मंशा ताड़ ली थी इसलिए रणनीति के तहत बात करने लगा।

अखिलेशजी मैं पूरा उत्तरप्रदेश घूमकर लौटा हूँ, हर जगह विकास का डंका बज रहा है। सब कह रहे हैं कि अखिलेश ने काम तो किया है। सचमुच में आपने कमाल कर दिया है।
अखिलेश ने एक बार मुझे देखा और भाँपने की कोशिश की कि मैं सच बोल रहा हूँ या कोई चाल चल रहा हूँ। बचपन से ड्रामे करता रहा हूँ इसलिए मुझे अपना झूठ छिपाने मे कोई दिक्कत नही हुई। अखिलेश लपेटे में आ गए और बोले-दुनिया भर को कमाल लग रहा है, मगर घर के लोगों को नहीं दिख रहा। आप ही बताओ क्या फ़ायदा हुआ पांच साल मेहनत करने का?

फ़ायदा क्यों नही हुआ? और चुनाव में तो इस सबका असर पड़ेगा न?
पता नहीं, पडेगा या नहीं। दो महीने से घर में महाभारत चल रही है। मेहनत पर तो पानी ही फिर गया होगा। कौन वोट देगा हमें?

अरे हिम्मत मत हारिए। वोट समाजवादी पार्टी को ही मिलेंगे?
वोट मिलेंगे तो हमको तो मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया जाएगा।

आप ऐसा क्यों सोचते हैं? अब तो शिवपालजी ने भी कह दिया है कि मुख्यमंत्री तो आप ही बनोगे?
अरे ये सब कहने की बातें हैं। चाचा ने तो पूरी शतरंज ही इसलिए बिछाई है कि मुझे बेदखल करके खुद मुख्यमंत्री बन जाएं।

आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?
इसलिए कि पिछली बार मुख्यमंत्री न बनाए जाने की कसक उनके मन में है और पूरे पाँच साल वो उसको ज़ाहिर भी करते रहे हैं। सरकार चलाने में क़दम-क़दम पर रूकावट डाली उन्होंने। हमें कठपुतली बनाकर रख दिया था। अगर नेताजी ने दखल न दिया होता तो वो तख्ता पलट कर देते हमारा।

आपको अपने पिताजी पर भरोसा रखना चाहिए। वे ऐसा नहीं करने देंगे?
अरे सबसे ज़्यादा दुख तो मुझे इसी बात का है कि वही अपने लड़के का साथ नहीं दे रहे। चाचा के इशारों पर चल रहे हैं।

वो तो पार्टी को टूटने से बचाने के लिए कर रहे हैं?
कौन तोड़ रहा है पार्टी? मैं तो नहीं तोड़ रहा। कोई तो है जो पार्टी के विभाजन की धमकी देकर नेताजी को ब्लैकमेल कर रहा है। ये सही है कि पार्टी को बनाने वाले नेताजी ही हैं। उन्होंने ही ज़ीरो से शुरू करके इतनी बड़ी पार्टी खड़ी की और अगर वो टूटेगी तो उन्हें दुख भी होगा। मगर ब्लैकमेलिंग के सामने घुटने टेककर तो पार्टी नहीं बचाई जा सकती न।

कौन कर रहा है ब्लैकमेल?
ये भी कोई पूछने की बात है। दुनिया को पता है कि कौन ब्लैकमेल कर रहा है।

दुनिया तो अटकलें लगा रही है, आप बताइए?
अब मेरे मुँह से मत बुलवाइए। खुली जंग हो जाएगी। वैसे पार्टी की फ़ज़ीहत हो चुकी है बहुत। मैंने नाम ले लिया तो भूचाल आ जाएगा।

लगता है कि आप इससे बहुत नाराज़ हैं कि आपके समर्थकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है?
नाराज़ क्यों न होऊँ? मुझे पता है कि सब सोची-समझी साज़िश के तहत हो रहा है। मैं क्या समझता नहीं हूँ कि इस सबका मतलब क्या है। मुझे नीचा दिखाया जा रहा है भाई। मुझे कमज़ोर करने की साज़िश रची जा रही है। चाचा की कोशिश ये है कि चुनाव बाद उनके समर्थक विधायकों की संख्या ज़्यादा हो ताकि मुझे आउट करके वे मुख्यमंत्री बन जाएं। लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूँगा।


आप क्या करेंगे?
मैं बगावत करूँगा।

वो तो आपने कर ही दी है। अकेले रथ यात्रा निकालने पर आमादा हैं। यहाँ तक कि समाजवादी पार्टी के सिल्वर जुबली समारोह में भी नहीं जाना चाहते। 
ये तो कुछ भी नहीं है। मैं तो अब ये दिखाकर रहूँगा कि जनता किसके साथ है। जनता जिसके साथ होगी, सरकार उसकी बनेगी और मुख्यमंत्री भी वही बनेगा।

यानी आप घर के झगड़े का समाधान आप जनता से करवाना चाहते हैं?
आप ग़लत समझ रहे हैं। ये घर का झगड़ा नहीं है, ये सियासी झगड़ा है। ये झगड़ा तख्त और ताज का है। जनता का नेतृत्व हासिल करने का है। मैं इसमें आसानी से हार नहीं मानने वाला। 

इससे तो पार्टी टूट जाएगी?
तो टूट जाए। अब तो मैं अलग पार्टी बनाना चाहता हूँ। बल्कि बनानी ही पड़ेगी। अगर पिताजी और चाचाजी मुझे बच्चा समझकर बहलाने की सोचते हैं तो ये उनकी भूल है और इसकी उन्हें महँगी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

आपको लगता है कि पार्टी के नेता मुलायम सिंह जी और शिवपाल को छोड़कर आपके साथ आएंगे?
बिल्कुल आएँगे। सबको पता है कि अब लोग वोट मुझे देखकर देंगे, चाचा को देखकर नहीं। पिताजी भी अब बूढे हो चुके हैं, लोगों को उनसे भी उम्मीद नहीं है। सबको समझ में आ रहा है कि मैं ही पार्टी को आगे ले जा सकता हूँ।

कहीं आप अपनी ताक़त को ज़्यादा तो नहीं आँक रहे? कहीं ऐसा न हो कि आप जिस शाख पर बैठे हैं वही टूटकर गिर जाए?
अब जो होना हो सो हो जाए। मैं अब पीछे हटने वाला नहीं हूँ। मैं जानता हूँ पीछे हटने का मतलब है चाचा और अमर सिंह का पार्टी पर पूरा कब्जा और मेरा राजनीतिक भविष्य का द एंड। ऐसा मैं होने नहीं दूँगा।

अगर नेताजी आपसे कहते हैं क्या तब भी आप अपनी ज़िद पर अड़े रहेंगे?
बिल्कुल। मैं तो समझ गया हूं कि वे मेरा साथ नहीं देने वाले। वे एक तरफ चाचा के चंगुल में फँसे हुए हैं तो दूसरे ओर मेरी सौतेली माँ उन्हें नचा रही हैं। वे मेरे भविष्य के बारे में सोच ही नहीं रहे अब।

देखिए, बहुत से लोग मानते हैं कि झगड़े को बढ़ाएँगे तो पार्टी टूट जाएगी, जिससे न आपका भला होगा, न चाचा का। दूसरों को फ़ायदा ज़रूर हो जाएगा?
तो हो जाए फ़ायदा। मैं बुआ को मुख्यमंत्री बन जाने दूँगा मगर चाचा को हरगिज़ नहीं। ज़रूरत पड़ी तो मायावती जी से हाथ मिला लूँगा या काँग्रेस के साथ चला जाऊंगा, मगर अब न पिताजी की सुनूँगा न चाचा की।

अगर नेताजी और चाचा आपको लिखित में दे देंगे कि आपको ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा तो?
तब मैं एक बार सोच सकता हूँ। मगर मुझे शक़ है कि वे इसके लिए तैयार होंगे। अगर ऐसा हो सकता तो ये नौबत ही क्यों आती।

क्या आपकी नेताजी और शिवपालजी से बात होती है?
कई दिन हो गए बात हुए। बात करने का मन ही नहीं करता। हर समय एक ही बात। मेरे अधिकारों में कटौती और चाचा को सब कुछ सौंप दो। मुझे ये मंज़ूर नहीं है। इसीलिए मैंने अपना चूल्हा-चौका तक अलग कर लिया है। मैं अब अपने अलग घर में शांति के साथ रहता हूँ।

क्या आपको ये नहीं लगता कि आप अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रहे हैं?
आज की तारीख़ में आप ऐसा कह सकते हैं, लेकिन यदि मैं कामयाब हो गया तो आप ही कहेंगे कि अखिलेश यादव ने सही समय पर हिम्मत दिखाई और समाजवादी पार्टी की किस्मत बदल दी। पार्टी को अब पुरानी सोच वाले नेता की नहीं युवा नेतृत्व की ज़रूरत है और वह केवल मैं ही दे सकता हूं। अगर मैं मज़बूत होता तो पार्टी में अमर सिंह की वापसी न होती और न ही क़ौमी एकता दल के साथ विलय होता। लेकिन चाचा ने मेरी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाया। इसीलिए अब मैं मज़बूत बनना चाहता हूँ ताकि पार्टी को जोड़-तोड़ करने वालों से बचा सकूँ। 


इतने में मोबाइल की घंटी बजी। अखिलेश ने फौरन फोन उठाया और बोले-हाँ पापा। पता नहीं उधर से क्या कहा गया, मगर अखिलेश का जवाब था कि वह नहीं आ पाएंगे मीटिंग में क्योंकि पहले से कार्यक्रम लगे हैं। उधर से फोन काट दिया गया। मैं समझ गया कि बाप और बेटे के बीच बहुत दूरियाँ पैदा हो चुकी हैं और अगर जल्दी ही कोशिश न हुई तो वे आपस में ही गुत्थमगुत्था हो जाएंगे। ये सोचते हुए कि शायद यूपी की राजनीति नई करवट लेने वाली है, मैंने उनसे इजाज़त ली और चला आया।
बुआ को मुख्यमंत्री बन जाने दूँगा मगर चाचा को नहीं-अखिलेश यादव

Written by-डॉ. मुकेश कुमार











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