हिंदू औरतें बच्चा पैदा करने वाली मशीन नहीं बनेंगी भागवत जी


चौतरफा आलोचना के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत भले ही सफाई देते फिरें कि उन्होंने ऐसा नहीं वैसा कहा था, मगर सचाई यही है कि उन्होंने हिंदुओं से ज़्यादा बच्चे पैदा करने की अपील की थी। जिस संदर्भ में उन्होंने कहा था कि आपको ज़्यादा बच्चे पैदा करने से किसने रोका है, उसका सीधा सा मतलब यही था कि वे यही चाहते हैं कि हिंदू ज़्यादा बच्चे पैदा करने के लिए कह रहे हैं।

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और भागवत ही क्यों संघ परिवार के बहुत से स्वनाम धन्य नेतागण बारंबार ये कह चुके हैं। उनके इस तरह के बयानों के निहातार्थ भी सब जानते हैं। वे हिंदुओं में इस डर को बड़ा करना चाहते हैं कि मुसलमानों की बढ़ती आबादी उनके लिए ख़तरा बन सकती है। वे जानते हैं कि हिंदुओं में ये भय जितना बड़ा होगा हिंदुत्व के नाम पर चल रही उनकी राजनीति भी उतनी ज़्यादा फलेगी-फूलेगी।

उत्तरप्रदेश में अगले साल की शुरूआत में चुनाव होने हैं इसलिए ज़रूरी है कि सांप्रदायिकता की आँच को तेज़ किया जाए और भागवत का ये बयान उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। लेकिन राजनीति के लिए आबादी बढ़ाने का या आव्हान इस चुनावी राजनीति के लिए खेले जाने वाले हथकंडों से ज़्यादा ख़तरनाक़ है।



वास्तव में ये समाज-विरोधी भी है और देश विरोधी भी। भागवत को राजनीति से मतलब है इसलिए उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि दुनिया के सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चे भारत में ही हैं। निरक्षरों की संख्या भी सबसे अधिक यहीं हैं और भुखमरी, ग़रीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा का समंदर भी हिंदुस्तान मे ही लहलहा रहा है।

ज़ाहिर है कि जब देश मौजूदा आबादी की देखभाल ही ठीक से नहीं कर पा रहा तो ज़्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देना देशद्रोह से कम नहीं है। बरसों से आबादी कम करने का अभियान चलाया जा रहा है। मगर भागवत एंड कंपनी देश को उल्टी दिशा में हाँकने में लग गए हैं। वे नहीं समझ रहे कि इससे देश के संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा, उसकी अर्थव्यवस्था कमज़ोर होगी और जब ये सब होगा तो देश तो मज़बूत होने से रहा।

लेकिन भागवत के बयान की सबसे निंदनीय बात ये है कि ये घोर स्त्री विरोधी है। भागवत जैसे लोग औरतों को बच्चे पैदा करने की मशीन समझते हैं। उन्हें नहीं पता कि ज़्यादा बच्चे पैदा करने का क्या असर महिलाओं की सेहत पर पड़ता है और उसका हर तरह से विकास अवरूद्ध होता है।



भारतीय महिलाएं सेहत के मानदंड पर बहुत पीछे हैं। उनमें आयरन की कमी आम है। वे कुपोषित या अल्प पोषित होती हैं। एक बच्चा पैदा करने में ही उसकी देह निचुड़ जाती है। इसीलिए ये अभियान चलाया जा रहा है कि दो बच्चों के बीच में अंतराल हो। लेकिन अगर भागवत की चली तो उन्हें हर नौ महीने में बच्चा पैदा करना पड़ेगा और तब तक पैदा करते रहना पड़ेगा जब तक कि वे मरने की स्थिति में न पहुँच जाएं।

क्या देश की आधी आबादी को कमज़ोर बना देना देश के हित में है?

सच तो ये है कि भागवत का बयान ब्राम्हणवादी भी है और मर्दवादी भी। वैसे भागवत पहले भी कह चुके हैं कि औरतों को चूल्हे-चौके तक सीमित रहना चाहिए। यानी उन्हें सिंधु, साक्षी, सानिया वगैरा बनने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। वे केवल बच्चे पैदा करें और उन्हें पालें-पोसें। वे पढ़े-लिखें भी न क्योंकि पढने-लिखने से उनमें आगे बढ़ने की आकांक्षा जागेगी और वे उन दायित्वों को नहीं सँभालेंगी जो भागवत साहब के एजेंडे में हैं।



ऐसे में सोचने की बात है कि क्या देश की आधी आबादी को अनपढ़ और अज्ञानी रखना देश विरोधी नहीं है?

लेकिन हिंदू औरतें इतनी मूर्ख नहीं रहीं कि अब वे भागवत या अपने घर के मर्दों के कहने पर बेबी मैनुफैक्चरिंग मशीन बन जाएंगी। उन्हें धर्म के नाम पर कुर्बानी देने को बहलाया ज़रूर जाएगा मगर वे बहलेंगीं नहीं क्योंकि वे ब्राम्हणवाद और मर्दवाद दोनों के छल-छद्म को समझ चुकी हैं। वे बराबरी और सम्मान के साथ जीना चाहती हैं, अपने पैरों पर खड़े होकर अपने सपने पूरे करना चाहती हैं इसलिए वे विद्रोह कर देंगी।

हिंदू औरतें बच्चा पैदा करने वाली मशीन नहीं बनेंगी भागवत जी
Hindu women will not become baby manufacturing machine Mr. Bhagvat

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