सवा सौ करोड़ का मुल्क तुम्हें गले लगा रहा है सिंधु...


पीवी सिंधु स्वर्ण पदक जीतने का संकल्प लेकर कोर्ट में उतरी थी। पहले सेट में उसने जता भी दिया था कि वह जीतने के इरादे से आई है, उसे रजत नहीं स्वर्ण पदक ही चाहिए। वह आखिरी तक लड़ी और उसने जीत भी हासिल की।

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इस जीत ने पूरे देश में उम्मीद जगा दी। उसे लगा कि अब सिंधु अपनी ज़िद पूरी करके ही मानेगी, इतिहास तो वह रच ही चुकी है, मगर उसे स्वर्णिम बना देगी। सिंधु ने उसके लिए भरपूर संघर्ष भी किया, मगर वह ऐसा कर न सकी। विश्व चैंपियन केरोलिना के शानदार खेल के सामने उसके संघर्ष की चमक फीकी पड़ गई।

इसमें संदेह नहीं कि केरोलिना का खेल दमदार था, आक्रामक था और उसके पास बेहतर रणनीति भी थी। उसने सिंधु की कमज़ोरी को अच्छी तरह भाँपा और उसका भरपूर फ़ायदा भी उठाया। सिंधु ने भी केरोलिना की कमज़ोरी को पकड़कर फायदा उठाने की कोशिश की मगर वह उतनी कामयाब नहीं हो सकी।



केरोलिना सिंधु के मुक़ाबले ज़्यादा आक्रामक भी थी और आत्मविश्वास से भरी हुई भई। इसीलिए पहला सेट गँवाने के बाद उसने शानदार वापसी करते हुए दूसरे सेट को एकतरफा बना डाला। वह इस तरह से गेम पर हावी हो गई कि सिंधु फिर उबर ही नहीं सकी। बीच-बीच में उसने चमक ज़रूर दिखलाई मगर जिस चकाचौंध की ज़रूरत फायनल मुक़ाबले को जीतने के लिए चाहिए होती है वह नहीं दिखा सकीं।

शायद मनोवैज्ञानिक स्तर पर सिंधु ज़्यादा हारी। निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने में उसकी जो कमज़ोरी पहले रही है वह इसमें भी दिखाई दी। पहला सेट जीतने के बाद मनोवैज्ञानिक लाभ उसके साथ था, मगर उसने उसे तुरंत गँवा दिया।

शायद सिंधु को अभी और अनुभव की ज़रूरत है और अधिक मंजने की ज़रूरत है। लेकिन उनके गुरू गोपीचंद ने उन्हें जिस तरह से तैयार किया है वह भी कम नहीं है। ओलंपिक में फायनल के स्तर तक उसे ले जाना मामूली बात नहीं है। और ध्यान रहे सिंधु उनकी पहली शिष्या नहीं हैं जिसने विश्व स्तर पर ऐसा कमाल किया है।



लेकिन ये समय सिंधु के खेल में कमियाँ निकालने का नहीं है। कमियाँ तो थी हीं, अन्यथा वह हारती क्यों? मगर इस समय तो जश्न मनाया जाना चाहिए। किसी भारतीय महिला का पहली बार फायनल मुक़ाबले तक पहुँचने और रजत पदक हासिल करने का जश्न, पुरुषों के वर्चस्व वाले देश में उपलब्धियों के नए शिखर छूने का जश्न।
सिंधु आओ, सवा सौ करोड़ का ये मुल्क तुम्हें गले लगा रहा है। वह मुल्क जो छोटी-मोटी उपलब्धियों के लिए तरसता रहता है, उसे तुमने इस बेशकीमती तोहफ़े से नवाज़ा है। तुम्हारी जय हो।


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