पूर्वोत्तर भारत में आतंकवाद का फैलता दोहरा जाल


असम में पिछले कुछ वर्षों के दौरान एक हद तक थमी रही उग्रवाद की समस्या फिर से अपने पैर फैलाने लगी है। सरकार के साथ बातचीत के विरोध में विदेशी धरती से सत्ता को चुनौती देता अल्फा (स्वाधीन) अपने प्रमुख नेता परेश बरुवा की निगेहबानी में विशेष रूप से ऊपरी असम में फिर से आतंक का सबब बन गया है।

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अल्फा के इस वार्ता विरोधी धड़े की गतिविधियों के बीच चरमपंथी समूहों की गतिविधियां अत्यंत गंभीर चुनौती के रूप में सामने आने लगी हैं। हालांकि अभी भी सरकार और उसके सुरक्षा अंग, जैसे कि पुलिस की ओर से राज्य में इस्लामिक इस्टेट जैसे अति खतरनाक आतंकी संगठन की गतिविधि से इनकार किया जा रहा है। लेकिन पिछले दिनों कोकराझाड़ में घटी आतंकी घटना और फिर ऊपरी असम में एक भाजपा नेता के रिश्तेदार के अपहरण के बाद सामने आए वीडियो से काफी खतरनाक इशारे मिल रहे हैं।



हालाँकि यह दावा तो कतई नहीं किया जा सकता कि इसमें इस्लामिक कट्टरवादी संगठनों की सीधी-सीधी संलिप्तता है। मगर असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में तीन दशक से अधिक समय से अपनी दहशत कायम रखे तमाम उग्रवादी संगठनों ने पहले ऐसे तरीके कभी नहीं अपनाए।

कोई एक साल पहले ही तत्कालीन पुलिस महानिदेशक खगेन शर्मा ने राज्य में चरम पंथी आतंकी गतिविधियों का अंदेशा जता दिया था। उन्होंने आईएसआईएस के इंटरनेट पर अपलोड तस्वीरों का हवाला दिया था। उन्होंने कहा था कि देश के अन्य भागों के अलावा विशेष तौर पर असम के अंदर कतिपय युवाओं में उनके प्रति रुझान की प्रवृत्ति सबसे अधिक देखने को मिल रही है।

उन्होंने पत्रकारों के सामने यह खुलासा भी किया था कि बड़ूी संख्या में लोगों ने आईएसआईएस की वेबसाइट इंटरनेट पर खंगाली है, जिनमें बहुत से मामले "महज जिज्ञासा" से अलग प्रवृत्ति के हैं। कौन कह सकता है कि उसके बाद राज्य में इस चरमपंथी संगठन के तार यहां सक्रिय उग्रवादी संगठनों से कहां-कहां नहीं जुड़े होंगे।
असम के संदर्भ में यह चिंता इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि यहां अभी भी पुलिस के पास ऐसे मामलों की त्वरित और सटीक परख के लिए आवश्यक तकनीकी सरंजाम और विशेषज्ञता की कमी है। नेशनल टेक्निकल रिसर्च आर्गेनाइजेशन(एनट्रो) इन गतिविधियों पर नजर रखता है। असम पुलिस बहुधा उसी के आधार पर आगे बढ़ती रही है।

तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने जब यह बात कही थी, उसके कुछ माह पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुलिस महानिदेशकों के सम्मेलन में यहां की पुलिस को "स्मार्ट पुलिस" में तब्दील करने का जज्बा जगा गए थे। असम पुलिस कितना स्मार्ट इन दो से अधिक वर्षों में बन पाई है, इस पर तर्क करने की भी जरूरत नहीं है।
कुछ कमजोर पहलुओं पर नजर न डालें तो इसमें शक नहीं कि सीमित संसाधनों और अत्याधुनिक साइबर विशेषज्ञता के अभाव के बावजूद असम पुलिस ने उग्रवादी गतिविधियों को काबू पाने में समय-समय पर कामयाबी पाई है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि असम दोहरे धार्मिक कट्टरतावाद के खतरे से घिरा है।



एक खतरा इस्लामिक चरमपंथी संगठनों का तो दूसरा दक्षिणपंथी हिंदूवादी कट्टरपंथी ताकतों का है। आखिर हमारे देश की सरकार बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए हिंदू बंगालियों को नागरिकता देने का मन पहले ही बना चुकी है। राज्य के तमाम जातीयतावादी संगठन इसका पुरजोर विरोध करते आ रहे हैं।

बहुत सारे लोगों को तकरीबन तीन साल पहले पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी के पू़र्व प्रमुख असद दुर्रानी का पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के सामने दिया गया बयान भूला नहीं होगा। उन्होंने माना था कि आईएसआई ही पूर्वोत्तर भारत में आतंकी विषबेल फैलाने का मास्टरमाइंड है और बांग्लादेश की डायरेक्टोरेट जनरल आफ फोर्सेस इंटेलीजेंस(डीजीएफआई) का सहयोग उसे मिलता रहा है।

बात यह भी सामने आई थी कि आईएसआई ने डीजीएफआई को मिशन पूर्वोत्तर तबाही के लिए नौ हजार पूर्ण प्रशिक्षित जिहादियों की मदद भी दी थी। ये अपुष्ट ख़बर भी आई थी कि डीजीएफआई काम कर सके इसलिए तत्कालीन प्रधानमंत्री खालिदा जिया को पचास करोड़ का भुगतान भी आईएसआई ने किया था।

आईएसआई के नापाक मंसूबे पूरे करने के लिए पूर्वोत्तर के सवा सौ से अधिक उग्रवादी संगठनों को  हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी (हुजी) के साथ मिलकर डीजीएफआई हर तरह की सैन्य तंत्रीय मदद उपलब्ध कराता रहा है, ताकि खासतौर पर असम में लगातार उग्रवाद का साया बरकरार रहे। डीजीएफआई के अलकायदा से रिश्ते और हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी को पैदा करने जैसी बातें इससे जुड़ी हैं।

हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी को लश्कर-ए-तैयबा का आनुषांगिक संगठन माना जाता है। जब भी भारत में अस्थिरता फैलाने की बात आती है ये दोनों एक दूसरे के पूरक नजर आते हैं।

पूर्वोत्तर भारत में आतंकवाद का फैलता दोहरा जाल
Network of dual terrorism is spreading in north east India

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सत्यनारायण मिश्र, गुवाहाटी


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