गाँधीजी को सामने देखकर मैं रुक नहीं पाया - राहुल बजाज

गाँधीजी को सामने देखकर मैं रुक नहीं पाया - राहुल बजाज
हालाँकि पत्रकारिता का ये अलिखित उसूल है कि ऑफ द रिकॉर्ड बातों को पब्लिश नहीं करना चाहिए। अगर आप करते हैं तो एक तो उस व्यक्ति का नुकसान होता ही है, मगर इससे विश्वास भंग होता है और भविष्य में आपसे कोई बात शेयर नहीं करता।

लेकिन कई बड़े पत्रकारों ने जनहित को ध्यान में रखते हुए इस नियम को तोड़ा भी है और आज मैं वही करने जा रहा हूँ।

दरअसल, जाने-माने उद्योगपति राहुल बजाज ने चारों तरफ हो रही वाहवाही से उत्साहित होकर मुझे इंटरवयू का टाइम दे दिया और वह हो भी गया मगर तभी उनके दोनों बेटे आ गए और पापा को समझाने लगे।



उन्होंने कहा कि आपने अमित शाह से सवाल पूछकर पहले ही पंगा ले लिया है, सब लोग नाराज़ हैं। सुना है पी एम तो खास तौर पर खफ़ा हैं। अब अगर ये इंटरव्यू पब्लिश हुआ तो हमारी ख़ैर नहीं रहेगी,

मोदी-शाह हमें बख्शेंगे। सालों में खड़ा किया ये साम्राज्य मिनटों में ढह जाएगा और पता नहीं हममें से कौन-कौन अंदर होगा।

बेटों के दबाव में आकर उन्होंने मुझसे कहा कि ये इंटरव्यू ऑफ द रिकॉर्ड था और आप इसे पब्लिश न करें। अब माहौल कुछ ऐसा था कि मैने हामी भर दी, 

मगर मुझे लगा कि नहीं इसे लोगों के सामने आना चाहिए। एक उद्योगपति तो सचाई बयान कर रहा है और अगर वह भी सेंसर हो गया तो ये न तो लोकतंत्र के हित में होगा न ही देश के। लिहाज़ा सुनिए।

गाँधीजी को सामने देखकर मैं रुक नहीं पाया - राहुल बजाज


लेकिन सबसे पहले मैं आपको बता दूँ कि राहुल बजाज ने इंटरव्यू के पहले चाय पानी के दौरान उन्होंने जो कुछ कहा, वह मैं आपसे साझा नहीं कर रहा हूँ क्योंकि वह कुछ ज़्यादा ही ऑफ द रिकॉर्ड है और मेरे द्वारा किए गए इंटरव्यू का हिस्सा भी नहीं।

मेरा पहला सवाल था-आपने अमित शाह के सामने बोलने का जोखिम क्यों उठाया, ये तो आपके और आपके बिजनेस के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता था। खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा?

आप बराबर बोलते हैं। मेरे बेटों ने भी मुझे समझाया था कि पापा आप वहाँ जा तो रहे हो मगर कुछ बोलना नहीं। आपकी आदत है खराब आप कुछ बोल दोगे और फिर भुगतना हमें पड़ेगा। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया था कि कुछ नहीं बोलूँगा।

मगर आप तो बोले....और बहुत कुछ बोल गए......?

हाँ, ये मुझे बाद में रियलाइज़ हुआ कि मैं कुछ ज़्यादा बोल गया। हालाँकि मैं बहुत सँभल सँभलकर बोल रहा था। बीचे में मैने मस्का भी लगाया कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं,,,,बट सम हाऊ मैं कंट्रोल नहीं कर पाया और मन की बात निकल गई।

लेकिन जब आप बोल रहे थे तो लग रहा था कि आप डरकर बोल रहे हैं, बहुत हिचक के साथ आपने अपनी बात रखी......?

अरे मैं खड़ा तो हो गया और सोचा भी था कि सरकार की तारीफ़ करते हुए एकाध हल्का-फुल्का सवाल कर लूँगा, लेकिन तभी मैंने देखा कि पास में ही मेरे दादा जमनालाल बजाज गाँधी जी के साथ खड़े हैं। अब मेरी सिट्टी पिट्टी गुम।

गाँधी जी के सामने झूठ बोलूँ तो कैसे बोलूँ। बस फिर तो वही हुआ जो होना था। न दिमाग़ ने साथ दिया न ज़ुबान ने....सच निकलता चला गया।

आपको अफ़सोस हो रहा है कि आपने सच क्यों बोला?

जब लोग तालियाँ बजा रहे थे और जब फोन करके बधाई दे रहे थे तो लगा अच्छा किया.....लेकिन जब अपने बेटों की रोनी सूरत देखता हूँ तो अफ़सोस होने लगता है.....मोदी-शाह की तस्वीरें देखकर अफ़सोस ख़ौफ़ में बदल जाता है।

ख़ौफ़ किस बात का?

यही कि कहीं वे मेरा हश्र भी चिदंबरम की तरह न कर दे।

लेकिन अमित शाह ने सरे आम आपको और सभी को आश्वस्त किया है कि आप लोग बेखौफ़ रहे?

देखिए इनकी कथनी और करनी में इतना फर्क है न कि इनके आश्वासन पर भरोसा करना मुश्किल है। पब्लिक में कुछ बोल गए हैं पता चला पीछे से इनकम टैक्स, सीबीआई, इनफोर्समेंट डायरोक्टोरेट को भेज दे। मनी लॉड्रिंग का कोई केस बनाकर अंदर कर दें।

आप ज़रूरत से ज़्यादा डर रहे हैं?

मैं ही नहीं, पूरी इंडस्ट्री डरी हुई है। सत्तर साल में पहली बार मैंने किसी सरकार का ऐसा आतंक देखा है। मैं तो फिर भी खड़ा हो गया सवाल पूछने के लिए, लोग तो हिलने के पहले भी सोच रहे थे कि हिलें कि न हिलें। कई लोग तो वॉशरूम भी इसी लिए नहीं गए कि कहीं गृहमंत्री अन्यथा लेकर कोई कार्रवाई न कर दें।

आज आप ये सब कह रहे है लेकिन आप लोग ही तो थे इन्हें लाने वाले। इंडस्ट्री ने ही तो नरेंद्र मोदी के लिए पिच तैयार की थी तारीफ कर करके?

आप सही कह रहे हैं.....उस समय हम लोग यूपीए सरकार की पॉलिसी पैरालिसिस से इस क़दर दुखी थे कि हमें लगा ता कि ये आदमी सही है, मगर क्या पता था कि ये तो इकोनॉमी का कबाडा ही कर देगा। इंडस्ट्री का भट्टा बैठा देगा। अब देखिए कि ऑटोमोबाइल इंड्स्ट्री का क्या हाल है। हमारा बजाज अब किसी का बजाज नहीं रह गया है। इतनी मंदी आ गई है कि कोई सायकल खरीदने को राज़ी नहीं से बाइक स्कूटर क्या खरीदेगा।

सब लोग देख रहे हैं कि इस सरकार ने इंडस्ट्री को ही सबसे ज़्यादा रियायतें दी हैं। एक झटके में कार्पोरेट टैक्स दस फ़ीसदी घटाया और भी ढेर सारी सहूलियतें दी हैं।  सब मानते हैं कि ये पूँजीपतियों के बारे में सोचती है, आम आदमी के बारे में नहीं......?


आपका कहना सही है मगर प्राब्लम यहाँ है कि हम उन छूटों का करेंगे क्या अगर लोग हमारे प्रोडक्ट खरीदेंगे ही नहीं तो। लोगो के हाथों में पैसा रखना होगा न चीज़ें खरीदने के लिए। लेकिन ये सरकार रखने के बजाय छीन रही है। 
आपने टालरेंस की बात कही......मॉब लिंचिंग और प्रज्ञा ठाकुर की बात कर दी। आपने बीजेपी के साथ-साथ आरएसएस को भी निशाने पर ले लिया। 
मैंने बताया न गाँधीजी को सामने देखकर ये सब हुआ। मुझे लगा कि अगर उनके हत्यारे गोडसे से जुड़ी बात न कही तो गाँधी जी सोचेंगे अजीब मतलबपरस्त आदमी है ये। 
लेकिन ये तो अवार्ड वापसी गैंग की भाषा है......अर्बन नक्सलाइट्स की भाषा है। और बीजेपी के मंत्री ऐसी बातें कहने वालों को पाकिस्तान चले जाने की बात कर रहे हैं?
हाँ, ये तो सही है। बेचारे आमिर ख़ान ने वाजिब बात कही थी तो उसे पाकिस्तान जाने के लिए कह दिया था। अगर मैं मुसलमान होता तो अभी तक कोई न कोई बीजेपी नेता मुझे पाकिस्तान जाने के लिए कह चुका होता। 
देखिए आप इंडस्ट्री के नेताओं में से माने जाते हैं.....आपको लीड लेना चाहिए.....?
लीड तो मैं लेना चाहता हूँ, मगर डर लगता है.....।
किससे.....?
इनकम टैक्स के छापों से....।
आपने इलेक्टोरल बाँड के ज़रिए बीजेपी को पैसा तो दिया होगा न?
हाँ दिया तो है।
तब फिर क्यों डरते हैं.......कितना दिया है.....?
ये मैं आपको क्यों बताऊँ......ये सीक्रेट है......ये हमारे और बीजेपी हाईकमान के बीच की बात है......।
नहीं मैं तो इसलिए पूछ रहा था कि अगर कम दिया हो तो एक बड़ी किस्त देकर आप उन्हें खुश कर सकते हैं? 
हाँ, ये आपने अच्छी सलाह दी है....मगर मुझे लगता है कि ये सरकार जा रही है......महाराष्ट्र में तो चली ही गई। अब केवल चालीस फ़ीसदी हिंदुस्तान में इनकी सत्ता रह गई है। अब इसे और कंट्रीब्यूशन देने से पैसा बरबाद करना न हो जाए। नई सरकार पर पैसा लगाना ज़्यादा ठीक होगा क्या.....।
मैने कहा, सोच लीजिए आप। आप व्यापारी हैं। मुझसे ज़्यादा अच्छे स समझ सकते हैं कि मार्केट में कहाँ पैसा लगाने से ज़्यादा रिटर्न आएगा। 
इसके बाद इंटरव्यू ख़त्म हो गया। अब आप ही तय कीजिए कि मैंने ऑफ द रिकॉर्ड इंटरव्यू को पब्लिश करके ठीक किया या नहीं।

Written By

Prof.(Dr.) Mukesh Kumar [Sr. Journalist, TV anchor, Writer]



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