बिहार के मुख्यमंत्री इस समय बहुत उलझे-उलझे से रहते हैं। कारणों का ठीक से पता किसी को नहीं है, मगर उनके अफसर बताते हैं कि सुशासन बाबू ने अपने घर और दफ़्तर में कई नक्शे लगा रखे हैं और अकसर उन्हें देखकर सोचते रहते हैं। एकाध ने उन्हें ये बड़बड़ाते भी सुना है कि दिल्ली जाने का सबसे आसान रास्ता कौन सा होगा। उनकी ये हालत देखकर किसी ने उनके मोबाइल में गूगल मैप भी डाउनलोड कर दिया है, ताकि वे उसके ज़रिए भी दिल्ली का सही रास्ता तलाश सकें। प्रशांत किशोर के काँग्रेस में जाने के बाद से उन्हें कोई ऐसा आदमी भी नहीं मिला जो उनका मार्गदर्शन कर सके। किसी और से कुछ कह नहीं सकते। बड़े भाई यानी लालू यादव से तो हरगिज़ नहीं कह सकते, क्योंकि उन्हें तुरंत पेट के दाँत दिखने लगते हैं। कुछ पत्रकार ज़रूर उनको सलाह देते रहते हैं, मगर उन्हें उन पर भरोसा नहीं है, क्योंकि वे जानते हैं कि वे पत्रकार खुशामदी हैं। एक अर्थशास्थ्री भी उनसे चिपका रहता है, मगर नीतीश बखूबी समझते हैं कि अर्थशास्त्र की ट्रेन पकड़कर कभी दिल्ली नहीं पहुँचा जा सकता।
मैं जब 1 अणे मार्ग स्थित उनके निवास पहुँचा तो वे उस समय भी दिल्ली पहुँचने की कवायद में ही लगे हुए थे। वे सामने रखे काग़ज़ पर पेंसिल से नक्शा बना रहे थे। मैंने जब पूछा कि क्या कर रहे हैं तो टालते हुए बोले बिहार के विकास का प्लान तैयार कर रहा हूँ। मैंने मुस्कराते हुए कहा-जल्दी बनाइए, क्योंकि बिहार को विकास की बहुत ज़रूरत है और अगर आपकी सरकार इस बार भी फेल कर गई तो अगले चुनाव में वापसी नहीं हो पाएगी। जवाब में उन्होंने कहने के बजाय एक रहस्यमयी मुस्कान बिखेर दी। अब मैं उलझन में था कि नीतीश बाबू की इस मुस्कराहट का मतलब क्या था। बहरहाल, उनकी इजाज़त लेकर मैंने बातचीत का सिलसिला शुरू किया।
ये बताइए कि ये अचानक आप सभी विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ कैसे खड़े हो गए हैं? सब हैरत में हैं कि आख़िर आप कौन सा गेम खेल रहे हैं?
देखिए गेम तो एक्कै है, सब लोग वही खेल खेल रहे हैं।
सब लोग मतलब?
मतलब मोदी से लेकर ममता तक सब के सब राजनीति-राजनीति खेल रहे हैं और दिखा ऐसे रहे हैं कि देश के लिए मर-मिट जाएंगे, अभिऐ सिर कटा लेंगे। मगर हम इनको जनते नहीं हैं का। पचीसों साल से सबको देख रहे हैं, खूब बूझते हैं सबको।
मोदीजी की नोटबंदी आपको राजनीति लग रही है, मगर आप उसका समर्थन भी कर रहे हैं?
मोदीजी तो राजनीति कर ही रहे हैं, उसके सिवा उसमें कुछ नहीं है। ये काला धन-वन सब ढोंग-धतूरा है। सब जानते हैं कि इससे कुछ होना-जाना नहीं है। जो करना चाहिए था वह किया नहीं, अब अपना फेल्योर छिपाने के लिए नोटबंदी ले आए।
लेकिन आप तो उस ढोंग-धतूरे को सही ठहरा रहे हैं न? आपको विरोध करना चाहिए था?
त हम कउन सा सचमुच में समर्थन कर रहे हैं। अरे हम तो उनकी राजनीति का पोल-पट्टी जानते हैं न मगर क्या है कि हमको ये भी पता है कि ये जो पब्लिक है न उसके समझ में कुछौ नहीं आता है। इसीलिए देखिए कि मोदीजी का इमोशनल अत्याचार झेले जा रही है। अब क्या है के हम अगर विरोध करेंगे तो पब्लिक बोलगी के नीतीश बड़ा ईमानदार बनता था अब काला धन का मुद्दा आया तो विरोध करने लगा। इसलिए हमने सोचा कि क्यों न हम भी इस इमोशनल अत्याचार का फैदा उठा लें।
आपको क्या फायदा होगा? फ़ायदा तो मोदीजी का हो रहा है, उन्हें कहने को मिल गया कि ईमानदार लोग उनके क़दम का समर्थन कर रहे हैं?
देखिए मोदीजी तो एक्सपोज हो रहे हैं और आगे अउर भी होंगे, लेकिन हमरा इमेज तो बन ही जाएगा न कि जब सही चीज़ का समर्थन करना होता है तो नीतीश सबसे अलग रास्ता भी पकड़ सकता है, भेड़ चाल नहीं चलता है। नेशनल पॉलिटिक्स करना है तो सबसे अलग छवि बनाना न पड़ेगा भई। आप ही बोलिए, अगर हम भी सबके साथ हाँ में हाँ मिलाते तो कोई हमरा नाम लेता क्या? अभी देखिए सब लोग नीतीश नीतीश कर रहा है। आप भी एनकाउंटर करने दिल्ली से चले आए।
लेकिन जिस नेशनल पॉलिटिक्स की बात आप कर रहे हैं उसमें ये भी तो ज़रूरी है कि आप विपक्षी दलों का साथ दें, नहीं तो आपको समर्थन क्यों देंगे? अब देखिए कि ममता बैनर्जी ने आपको गद्दार तो कह ही दिया न?
ममताजी का क्या है कि वे हैं इमोशनल लेडी। दिमाग़ से कम और दिल से ज्यादा सोचती हैं। फिर ऊ कौन सी नोटबंदी के ख़िलाफ़ लड़ रही हैं। अरे हमको पता नहीं है का कि सारधा चिट फंड का पैसा कैसे आता जाता था और इलेक्शन में उन्होंने कैसे इस्तेमाल किया। ममता सरकार तो घोटालों पर बैठी है। ये भी मत भूलिए कि वो भी राजनीति ही कर रही हैं।
कैसी राजनीति?
एक तो हमको लगता है कि मोदी जी ने उनको धमकाया है कि अगर विरोध करोगी तो हम सीबीआई छोड़ देंगे आपके ऊपर और फँसाकर अंदर करवा देंगे। अब आप तो जानते ही हैं कि अफेंस इज द बेस्ट डिफेंस होता है। इसलिए वे आक्रामक होकर खुद को बचाने की कोशिश कर रही हैं। त एक तो ये राजनीति है। दूसरे वो भी नेशनल लेवल पर खुद को प्रोजेक्ट करने में लगी हुई हैं। उनका भी एंबीशन होगा पीएम बनने का। मोदी के पीएम बनने के बाद हर सीएम पीएम बनने की कोशिश में लगा हुआ है।
लेकिन आप भी तो पीएम बनने की लाइन में हैं? क्या ये स्टैंड आपने उसी को ध्यान में रखकर नहीं लिया है?
आप सही बूझे हैं। आगे की पोलिटिक्स के लिए क्लीन इमेज ज़रूरी है अऊर हमारे जैसी इमेज वाले कितने नेता हैं बताइए तो। ममता, मुलायम, लालूजी सबके दामन तो दाग़दार हैं। बस तो उसी सबका पोजीशनिंग कर रहे हैं।
क्या आप ममताजी की इस बात से सहमत हैं कि नोटबंदी आर्थिक इमर्जेंसी है और ये राज्यों के अधिकारों पर हमला है?
ममताजी बिल्कुल सही कह रही हैं, मगर हम अपने मुँह से नहीं कहेंगे, काहे से कि सब समझेगा कि काला धनवालों का समर्थन कर रहा हूँ। इसमें तो कोई शक़ ही नहीं है कि मोदीजी की नोटबंदी न तो देश हित में हैं और न ही जनहित में। पूरे देश को परेशानी में डाल दिया है। न कोई तैयारी की बस खड़े हो गए कैमरे के सामने और दे दिया राष्ट्र के नाम संदेश। ये तो तुग़लकी फरमान है। हाँ, अपने लोगों को पहले से बताना नहीं भूले। और अब तो फिफ्टी-फिफ्टी की स्कीम लाकर उन्होंने साबित ही कर दिया है कि वे काले को सफ़ेद करने का मौक़ा दे रहे हैं बस।
ये आप किस आधार पर कह रहे हैं?
अरे बिहार और दूसरे राज्यों में बीजेपी और बीजेपी वालों की ज़मीन और सोने की खरीदी के रिकार्ड निकलवा लीजिए। देख लीजिए कि किसने कहाँ क्या खरीदा है सब दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। अकेले बिहार में ही तेईस जगह ज़मीन खरीदी गई है। और अपने उद्योपति मितरों को उन्होंने बताया नहीं होगा, इस पर कोई विश्वास कर सकता है क्या? कोई नहीं करेगा।
तो आपको लगता है कि नोटबंदी से देश का नुकसान होगा?
सौ फ़ीसदी भरोसा है कि नुकसान होगा। अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ चुकी है, आम आदमी परेशान है। लेकिन अगर आप मुझसे कहेंगे तो ऑफिसियली तो मैं यही कहूँगा कि नोटबंदी अच्छी है।
आपको लगता है कि इससे मोदीजी को नुकसान होगा?
देखिए मोदीजी ने किया तो ये फ़ायदे के लिए था। वे एक झटके में हीरो बनना चाहते थे और इसका आने वाले चुनाव में फ़ायदा भी उठाना चाहते थे। मगर अब लगता है कि पाँसा उलटा पड़ रहा है। लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। ख़ास तौर पर मज़ूरी और छोटे-मोटे काम करके गुज़ारा करने वालों में।
लेकिन कहा तो ये जा रहा है कि आप लालूजी से परेशान हैं इसलिए उन्हें मैसेज देने के लिए ये पैंतरा चले हैं? इसे बीजेपी से सटने के रूप में भी देखा जा रहा है?
देखिए हमने इस बारे में कहा है कि ये अफवाह मेरी राजनीतिक हत्या करने के लिए फैलाई जा रही है और इसमें बीजेपी वाले ही सबसे आगे हैं। आप ये जान लीजिए कि जब तक मोदीजी हैं तब तक तो बीजेपी के पास वापस जाने का सवाल ही नहीं उठता। रही बात लालूजी की तो हाँ लालू एंड संस से हम परेशान ज़रूर हैं और उनको इससे कोई संदेश चला गया है तो अच्छा ही है, मगर उनको भी पता है और हम भी जानते हैं कि एक दूसरे के बिना हमारा गुज़ारा नहीं है, कम से कम फिलहाल तो नहीं ही है।
पूरे एनकाउंटर के दौरान नीतीश बाबू का ध्यान सामने रखे काग़ज़ पर लगा हुआ था। बीच-बीच में वे कुछ लाइनें भी खींचते जा रहे थे। मैंने देखा कि एक लाइन खींचने के बाद वे मुस्कराने लगे। मेंने पूछा क्या हुआ, तो फिर मुस्करा दिया। उन्होंने पीए से ममता बैनर्जी से बात करवाने को कहा। मैं चौंक गया। उन्होंने मेरा चौंकना देखा और कहा अगर आपका काम हो गया हो तो जा सकते हैं। मुझे आगे की रणनीति बनानी है। मैं उनकी मुस्कराहट के अर्थ निकालने की नाकाम कोशिश करता हुआ वापस चला आया।
मोदी की नोटबंदी न देशहित में है, न जनहित में-नीतीश
Written by-डॉ. मुकेश कुमार
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वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।
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