सिमी के कथित आतंकवादियों की हत्याओं के बाद से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जो बाँछें खिली थीं वे मुरझाने का नाम ही नहीं ले रहीं। मुरझाएंगी भी कैसे, बधाईयों का ताँता लगा हुआ है और खूब शाबाशियाँ मिल रही हैं। आलम ये है कि एक फोन रखते हैं तो दूसरा बजने लगता है। फोन भी वे खुद ही उठा रहे हैं। निजी सचिव फोन उठाने को हाथ बढ़ाता है उसके पहले ही वे लपककर उठा लेते हैं। जैसे उन्हें पहले से पता हो कि ये घंटी भी उनके लिए बधाई संदेश देने के लिए ही बजी है।
ऐसे खुशियों भरे माहौल में फर्ज़ी मुठभेड़ या आतंकवादियों की बातें करना थोड़ा अटपटा लग रहा था। ये गुब्बारे पर पिन चुभाने जैसा होता। वैसे ये डर की वजह थी। पता नहीं कौन सा सवाल राष्ट्रीय सुरक्षा पर ख़तरा समझ लिया जाए और मुझे या मेरे अखबार को देशद्रोही घोषित करके प्रतिबंधित कर दिया जाए। लेकिन अपन ने भी तय कर लिया कि अब जो हो सो हो, मगर चूकना नहीं है क्योंकि ये लोकतंत्र, मीडिया की आज़ादी और तानाशाही की ओर बढ़ते देश को बचाने का मसला है। लिहाज़ा मैंने ज़्यादा आगे-पीछे सोचने के बजाय ओखली में सिर देने का फैसला कर लिया।
शिवराजजी, कम से कम आपसे लोगों को ये अपेक्षा नहीं थी कि आपके रहते इस तरह की फर्ज़ी मुठभेड़ होगी? आपकी छवि शालीन और विनम्र मुख्यमंत्री की है मगर अब आपके राज में भी ये सब शुरू हो गया?
आपने अपने एक सवाल में दो मुद्दे उठा दिए हैं। पहला तो आपने कहा कि फर्ज़ी मुठभेड़ हुई। बतौर मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता के मैं इसे मानने से इंकार करता हूँ। ऐसा हुआ ही नहीं है। ये विपक्षी दलों की साज़िश है, मुझे बदनाम करने की। रही बात मेरी छवि की तो वह तो समय के हिसाब से गढ़नी और बदलनी पड़ती है। जब शालीनता की पूछ-परख थी तो मैंने उसका लबादा ओढ़ लिया और अब ऊपर से बदमाश बनने के सिग्नल मिले तो शातिर बनना पड़ रहा है।
इतने सारे प्रमाण आ चुके हैं कि अब आपके इस दावे की हवा निकल चुकी है कि मुठभेड़ असली थी। जेल से भागने से लेकर उन आठ लोगों को मारने तक की पूरी कहानी ही मनगढ़ंत और झूठी लगने लगी है?
देखिए मैंने जाँच के आदेश कर दिए हैं और आपको अब नतीजे आने का इंतज़ार करना चाहिए। बिना जाँच-पड़ताल के किसी निष्कर्ष पर पहुँचना ग़लत होगा
आपकी जाँच पर किसी को भरोसा नहीं है शिवराज जी। व्यापम के मामले की जाँच के नाम पर जिस तरह की लीपा-पोती आपने की और करवाई ये तो सब देख ही चुके हैं। फिर जो वीडियो, सबूत और गवाहियाँ सामने आई हैं वे तो साफ़ बता रही हैं कि क्या हुआ?
कुछ नहीं हुआ। आप लोग बेकार में शोर मचा रहे हैं। सब कुछ कानूनी के अनुसार हुआ।
क्या निहत्थे लोगों को घेरकर मार डालना कानून सम्मत है?
वे निहत्थे नहीं थे, ख़तरनाक़ हथियारों से लैस थे।
आपके पुलिस अधिकारी का ही बयान है कि उनके पास हथियार नहीं थे?
देखिए वे ख़तरनाक़ आतंकवादी थे।
ये तो अभी अदालत में साबित होना है और जब तक अदालत का निर्णय नहीं आ जाता किसी को कुछ भी कहना ग़ैर कानूनी है ये तो आप भी जानते हैं?
वे जेल से भागे थे और उन्हें पकड़ना ज़रूरी था नहीं तो वे कहीं और बड़ी वारदात को अंजाम दे देते।
अगर पुलिस उन्हें पकड़ लेती तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। आपकी भी वाहवाही होती। मगर उसने उन्हें पकड़ने के बजाय उनकी हत्याएं कर दीं?
अब भाई मुझे पता नहीं, पुलिस तो स्पॉट पर सिचुएशन देखकर फ़ैसला करती है न।
ये मामला स्पॉट का नहीं है मुख्यमंत्री जी, विशुदध रूप से प्लानिंग के साथ मार डालने का है?
ये आरोप आप कैसे लगा सकते हैं?
मैं आरोप नहीं लगा रहा, बल्कि सचाई बयान कर रहा हूँ। टूथ ब्रश से ताला खोलने से लेकर तीस फीट की दीवार लाँघकर भागने तक की तमाम कहानियाँ मनगढ़ंत लग रही हैं और वे हैं भी?
अब आप उनके भागने को भी शक़ की निगाहों से देख रहे हैं।
मैं नहीं देख रहा, दुनिया देख रही है। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा कि अलग-अलग कोठरियों में बंद हुए लोग एकजुट होकर योजना भी बना लेते हैं और सफलता पूर्वक उसे अंजाम भी दे देते हैं। अच्छा ये बताइए कि क्या आपने वे वीडियो और ऑडियो देखे-सुने हैं जो बता रहे है कि पुलिस वालों ने किस तरह से पूरे ऑपरेशन को अँजाम दिया है?
हाँ, देखें तो हैं।
क्या आपने ये महसूस नहीं किया कि पुलिस वालों का लक्ष्य उनको मारने का था, पक़ड़ने का नहीं? वे किसी एक को भी ज़िंदा नहीं पकड़ पाए, क्योंकि उन्हें मारने के आदेश मिले हुए थे?
हाँ, कुछ ऐसा तो सुना था, मगर वह सही है या नहीं ये यक़ीन से कैसे कहा जा सकता है। हो सकता है कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई हो।
लेकिन ये तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ही कह रही है कि सभी को पास से गोलियाँ मारी गई है और वे भी शरीर के ऊपरी हिस्से में। इसका मतलब तो यही है न कि पुलिस वालों को एनकाउंटर करने के आदेश मिले हुए थे, पकड़ने के नहीं?
आप सब सुनी-सुनाई बातों के आधार पर कह रहे हैं। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
आप न मानें लेकिन बहुत सारे लोगों का तो ये भी मानना है कि ये एनकाउंटर गुजरात की तर्ज़ पर करवाया गया?
देखिए गुजरात तो हमारा आदर्श राज्य है। वहाँ से हमारे प्रधानमंत्री आते हैं। महाबलशाली अध्यक्ष अमित शाह भी आते हैं। मैं तो उनके पदचिन्हों पर चलना अपना सौभाग्य समझता हूँ। इसलिए आश्चर्य नहीं कि हम गुजरात के नक्शे क़दम पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। मैं जल्दी से एमपी को गुजरात बना देना चाहता हूँ।
लेकिन उस राह पर चलने से बदनामी होगी?
बदनामी होगी तो क्या नाम न होगा? फिर क्या पता ये बदनामी मेरे प्रधानंमंत्री बनने की आधारशिला ही बन जाए। आख़िर हमारे प्रधानमंत्री माननीय मोदीजी की भी तो कम बदनामी नहीं हुई थी, आज देखिए वे कहाँ है। हमारे अध्यक्ष जी तो जेल तक चले गए थे, मगर आज वे पार्टी के सर्वेसर्वा हैं।
क्या इसका ये अर्थ निकाला जाए कि गुजरात की तरह फर्ज़ी मुठभेड़ों का ये सिलसिला अभी जारी रहेगा?
देखिए, मेरे मुँह में अपने शब्द मत डालिए। मैंने ये स्वीकार नहीं किया है कि मुठभेड़ फर्ज़ी थी या किसी अदालत ने उसे फर्ज़ी करार दिया है। मैं तो कह रहा हूँ कि मैंने पुलिस को पूरे अधिकार दे रखे हैं कि वह देश की सुरक्षा के लिए हर संभव क़दम उठाए।
क्या आप गृह राज्यमंत्री किरण रिजुजु के इस बयान से सहमत हैं कि पुलिस या सुरक्षाकर्मियों की कार्रवाई पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए?
सौ फीसदी सहमत। जैसे गुजरात की जनता ने मोदीजी और अमित शाह जी की कार्रवाई को आँख मूँदकर सच मान लिया उसी तरह से पूरे देश को करना चाहिए। सवाल पूछने से सरकार को काम करने में दिक्कत आती है।
लेकिन ये तो लोकतंत्र की ख़िलाफ़ है, एक तरह की तानाशाही इस बयान में झलकती है?
तो तानाशाही की आदत डाल लीजिए क्योंकि हमारे गुड गवर्नेस का ये अविभाज्य हिस्सा है। और हाँ हमारे लिए लोकतंत्र नहीं सुरक्षा पहले है।
शिवराज के इस बयान में छिपी धमकी से मैं सिहर उठा। मुझे लगा कि अब पत्रकारिता के पेशे को टाटा कहने या फिर मुसीबतें मोल लेने के दिन आ गए हैं। उसी समय एक साथ आठ-दस पुलिस वाले फर्श पर अपने जूते बजाते आए और मुख्यमंत्री को जोर की सलामी ठोंकी। मैं तो अंदर तक काँप गया मगर शिवराज का सीना छप्पन इंच का हो गया। उन्होंने अफसरों को शाबासी दी और इसी तरह काम करते रहने की हिदायत भी। मेरी आँखों के सामने मध्यप्रदेश का भविष्य घूमने लगा। इस ख़ौफ़ानाक़ सपने से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने शिवराज को जयहिंद कहा और खिसक लिया।
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