एक आतंकवादी देश के नक्शे क़दम पर क्यों चलना चाहती है सरकार?


अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्जिकल स्ट्राइक की तुलना इस्रायल की सैन्य कार्रवाईयों से कर रहे हैं तो इसमें चौंकने की कोई बात नहीं है, क्योंकि इस्रायल उनके दिल में बसा हुआ है। और उनके ही क्यों संघ प्रेरित हर अति राष्ट्रवादी के दिल में इस्रायल बसा हुआ है। वे चाहते हैं कि भारत इस्रायल बन जाए, उसी की तरह व्यवहार करे, इसलिए ये स्वाभाविक है कि वे अपने कारनामों में इस्रायल की छवि देखने की कोशिश करें।

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अति राष्ट्रवादियों की नज़र में इस्रायल ऐसा देश है जिसने चारों तरफ से मुस्लिम राष्ट्रों से घिरे होने के बावजूद न केवल खुद को बचाए रखा है बल्कि उनको डराकर भी रखा हुआ है। इस्रायल की सैन्य शक्ति और उसके युद्धोन्मादी तेवर उन्हें लुभाते हैं और इसीलिए वह उन्हें आदर्श लगता है।

चूँकि संघजनित अंधराषट्रवाद की विचारधारा में विधर्मियों और ख़ास तौर पर मुसलमानों के प्रति घृणा एवं हिसा का भाव है इसलिए उन्हें इस्रायल से अपना मेल लगता है और वे उसे अपना आदर्श भी मानते हैं। उनकी दिली तमन्ना यही है कि भारत इस्रायल बन जाए और पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर दे।

लेकिन अंधराष्ट्रवाद एक उन्माद का नाम है। वह तर्कों और तथ्यों पर गौर नहीं करता, बल्कि उनकी अनदेखी करके चलता है। मसलन, वे ये नहीं देखते कि इस्रायल पश्चिमी एशिया में जो भी दादागीरी कर रहा है, वह अमेरिका तथा नाटो देशों की शह और संरक्षण की वजह से।

अमेरिका में यहूदियों की सशक्त लॉबी है जो वहाँ की सरकार को इस्रायलपरस्त होने के लिए मजबूर किए रहती है। इसीलिए अमेरिकी हुकूमत इस्रायल के तमाम कुकर्मों की तरफ से आँखें बंद ही नहीं किए रहती बल्कि उसे हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर बचाती भी रहती है। अमेरिका और यूरोप में बसे यहूदी इस्रायल को धन-धान्य से भी खूब मदद करते हैं।

सोचिए, क्या भारत के पास ऐसा समर्थन और सहयोग है जिसके बल पर वह दक्षिण एशिया का इस्रायल बन सके? नहीं है। ऐसे में इस्रायल बनने के इरादे बहुत सारे ख़तरों को जन्म दे सकता है। ध्यान रहे पश्चिम एशिया में सिवाय इस्रायल के किसी के पास परमाणु बम नहीं है, जबकि पाकिस्तान दो सौ परमाणु बम बनाकर बैठा हुआ है। यही नहीं, उसके सिर पर अमेरिका और चीन दोनों का हाथ भी है। जबकि भारत ज़्यादा से ज़्यादा रूस की दोस्ती का भरोसा कर सकता है और वह भी बदले हुए हालात में कितना कर सकता है इसकी परीक्षा होनी है।
यहाँ इस्रायल के चरित्र पर भी गौर करना बेहद ज़रूरी है। इस्रायल की छवि आतंकवादी देश की है। पाकिस्तान में सरकार तो केवल आतंकवाद को सहयोग और समर्थन देती है मगर इस्रायल तो घोषित रूप से आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाया गया है। उसने कई फिलिस्तीनी नेताओं की बाकायदा हत्यारे दस्तों और अपनी खुफिया एजंसी मोसाद के ज़रिए हत्याएं करवाई हैं।

इस्रायल एक आतंकवादी राष्ट्र है ये कोई आरोप नहीं है बल्कि इसके दस्तावेज़ी प्रमाण भी उपलब्ध हैं। युद्ध अपराधों के लिए उसे कई अंतरराष्ट्रीय एजंसियों ने धिक्कारा है। संयुक्त राष्ट्र ने बाकायदा प्रस्ताव पारित करके उसकी निंदा की है।

इस्रायल लगातार इन संगठनों के निर्देशों की अवहेलना करता रहा है। वह पश्चिमी एशिया में शांति कायम करने की दिशा में एक बड़ा रोड़ा है। उसके हठी रवैये की वजह से फिलिस्तीन के साथ हुआ समझौता लागू नहीं हो सका और आगे भी समझौता वार्ताओं की संभावनाएं नहीं दिख रही हैं।

अब सवाल ये उठता है कि क्या सरकार आतंकवादी और आपराधिक चरित्र वाले इस्रायल के नक्शे कदम पर चलकर क्या भारत को भी वैसा ही बनाना चाहती है? अगर ऐसा है तो ये बुद्ध और गाँधी के देश को कलंकित करने जैसा होगा।

इसके ख़तरे भी बहुत बड़े हैं। इस्रायल की नकल करके हम समूचे इस्लामी जगत को अपना दुश्मन बना लेगें और आतंकवाद की जो आग पश्चिम एशिया में लगी हुई है वह हमारी तरफ भी लपकेगी। अभी केवल पाकिस्तान से आतंकवाद निर्यात हो रहा है मगर बाद में दूसरे देश के आतंकवादी संगठन भी हमें खुलकर निशाना बनाने लगेंगे।

एक आतंकवादी देश के नक्शे क़दम पर क्यों चलना चाहती है सरकार?
Why government want to follow a terrorist state?

Written by-डॉ. मुकेश कुमार

डॉ. मुकेश कुमार










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