केजरीवाल और उनकी पार्टी को स्वराज और संघर्ष के पाठ फिर से पढ़ना चाहिए

पिछले पंद्रह दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए बहुत भारी रहे हैं। एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं, हमले हो रहे हैं और उनके कई नेता कठघरे में खड़े हैं। ज़ाहिर है कि इन सबसे उनकी साख को गहरा धक्का लगा है।

Kejriwal and his party Should read lessons of self rule and struggle again
पहले संदीप कुमार के सीडी कांड ने उन्हें नुकसान पहुँचाया, फिर आशुतोष की असंगत तुलनाओं ने और फिर पंजाब में चल रहे घमासान की वजह से उस पर चौतरफा मार पड़ी है। भले ही आरोपों में दम न हो मगर संजय सिंह जैसे नेता पर पार्टी के अंदर से ही हमला होना बताता है कि वहाँ भी सब कुछ ठीक नहीं है।



महत्वपूर्ण बात ये भी है कि विपक्षी दलों को आक्रामक तेवरों के साथ हल्ला बोलने का अवसर मिल गया है और वे बचाव की मुद्रा में आने के लिए विवश हो गए हैं। केजरीवाल ने संदीप कुमार को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करके और फिर वीडियो जारी करके डैमेज कंट्रोल करने की जो कोशिश की थी वह कामयाब नहीं हुई है।

केजरीवाल की साफ़-सुथरी छवि भी कम से कम अभी तक छवि में हो रहे इस निरंतर क्षरण को नहीं रोक पाई है। ज़ाहिर है कि इसका असर सरकार के कामकाज पर तो पड़ ही रहा है और पार्टी की विश्सनीयता भी संदिग्ध हो गई है। ये उनके लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं। ख़ास तौर पर तब जब वे दूसरे राज्यों में अपने विस्तार की कोशिशों में जुटे हों।

पंजाब में तो कुछ समय पहले तक आप की जीत तय मानी जा रही थी, मगर अब अचानक ऐसा लग रहा है कि पार्टी अपनी बढ़त गँवा रही है और अगले छह महीनों में कहीं ये मौक़ा ही न खो दे। पार्टी के भविष्य का काफी कुछ दारोमदार पंजाब पर ही था।

कहा जा सकता है कि पिछले डेढ़ साल में दोनों के लिए ये सबसे बुरा वक़्त है। लेकिन इस स्थिति के लिए अगर टीम केजरीवाल षड़यंत्रों को ज़िम्मेदार बताकर बचना चाहेगी तो ऐसा हो नहीं पाएगा। अगर आप राजनीति में हैं तो षड़यंत्र भी होंगे और आपके पास उनसे निपटने की तैयारी भी होनी चाहिए।



सबसे प्रमुख बात तो ये है कि ज़्यादातर चीज़ें पार्टी और सरकार के अंदर से आ रही हैं। संदीप कुमार के स्कैंडल पर कार्रवाई करने में देरी का नतीजा था कि उसने इतना विस्फोटक रूप धारण कर लिया। पंजाब की सर फुटव्वल के लिए किसी षड़यंत्र को ज़िम्मेदार बताना नासमझी होगी।

लेकिन बुनियादी बात ये है कि पार्टी और सरकार ने उन मूल्यों और सिद्धांतों का उस तरह से पालन नहीं किया जैसे किया जाना चाहिए था। उम्मीदवारों के चयन से लेकर उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाने तक समुचित सावधानी नहीं बरती गई। इसकी सबसे बड़ी वजह यही दिखती है कि उसने प्रक्रिया पर सही ढंग से अमल नहीं किया। न पारदर्शिता दिखाई गई और न ही कसौटियों को सख़्ती से लागू किया गया।

वास्तव में अब समय आ गया है जब पार्टी को आत्मचिंतन और आत्ममंथन करना चाहिए। त्वरित विस्तार के अभियान से ज्यादा ज़रूरी है अपनी विश्वसनीयता को स्थापित करना। पार्टी नेतृत्व को अपनी बढ़ती  महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाकर बुनियादी पाठों को फिर से पढ़ना होगा और उन पर अमल सुनिश्चित करना होगा।



स्वराज और संघर्ष दोनों पार्टी के एजंडे से गायब हो चुके हैं। पार्टी के अंदर लोकतंत्र तो पहले ही ख़त्म हो चुका था और सारी सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में केंद्रित हो चुकी है। ये तमाम अवगुण हैं जो दूसरी पार्टियों को पथभ्रष्ट कर चुके हैं और अब आम आदमी पार्टी को भी उसी तरह से नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं।

अगर केजरीवाल राजनीति में सत्ता के लिए नहीं परिवर्तन के लिए आए हैं तो उन्हें अपना मार्ग बदलना होगा। अगर ज़रूरी लगे तो पार्टी को भंग करके पुनर्गठित करने का जोखिम भी लेना होगा।

केजरीवाल और उनकी पार्टी को स्वराज और संघर्ष के पाठ फिर से पढ़ना चाहिए
Kejriwal and his party Should read lessons of self rule and struggle again


Written by-डॉ. मुकेश कुमार











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