बीजेपी हाईकमान ने गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल से इस्तीफ़ा माँग लिया। हाईकमान को लगा कि वे गुजरात को सँभाल नहीं पा रहीं और अगर बनी रहीं तो अगला चुनाव हारना तय है। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह प्रदेश है और वहाँ की हार नाक कटाने वाली होगी, इसलिए बर्दाश्त नहीं की जा सकती। ज़ाहिर है आनंदी बेन की बलि ले ली गई।
सवाल उठता है कि इन दो वर्षों में गुजरात में जो कुछ हुआ क्या इसके लिए आनंदी बेने ही ज़िम्मेदार हैं? अगर ऊपरी तौर पर देखा जाएगा तो कोई भी इसी निष्कर्ष पर पहुँचेगा। स्थानीय निकायों के चुनाव में बीजेपी की करारी हार उन्हीं के नेतृत्व में हुई। पाटीदार आंदोलन उनके मुख्यमंत्री रहते हुए ही इतने बड़े पैमाने पर फैला और हिंसक हुआ। अब दलितों पर अत्य़ाचार और फिर उनका प्रदेश व्यापी विरोध भी उनकी नज़रों के सामने हो रहा है। इसलिए लाज़िमी है कि आनंदी बेन को कसूरवार मानकर दंडित किया जाए।
लेकिन सचाई सतह के नीचे है। पहली बात तो ये है कि गुजरात में आनंदी बेन का नहीं मोदी और शाह का राज चल रहा है। आनंदी बेन तो महज कठपुतली थीं। वे मोदी की पादुकाएं रख कर राज कर रही थीं। मोदी ने उन्हें उत्तराधिकारी बनाया ही इसलिए था कि वे आज्ञाकारी रहेंगी और उनके निर्देशों का पालन करेंगी।
गाँधीनगर में सब जानते हैं कि साहब और उनके खासमखास शाह का ही सिक्का चलता है। साफ़ है कि गुजरात में जो कुछ हुआ और हो रहा है वह आनंदी बेन के करने या न करने से नहीं हो रहा। इसलिए सरकार की विफलता के लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो केंद्रीय नेतृत्व।
दूसरी सचाई ये है कि मोदी राज में गुजरात की सचाईयों को दबाकर या मैनेज करके रखा गया था। वहाँ न विकास का कोई चमत्कार हुआ था और न ही किसी तरह की सामाजिक समरसता कायम हुई थी। झूठ का एक गुब्बारा था जिसे कभी न कभी तो फूटना था और वह फूट गया। विकास के तमाम दावे झूठे साबित हो चुके हैं।
इस बीच तमाम घोटाले भी धीरे-धीरे उजागर हो गए। गौतम अडानी से लेकर आनंदी बेन की बेटी अनार पटेल तक को बँटी खैरात मय तथ्यों के बाहर आ गई। इससे असंतोष का बढ़ना लाज़िमी था।
गुजरात मॉडल के महाझूठ पर सबसे बड़ी चोट पड़ी है दलितों पर अत्याचार की घटनाओं और उनके आंदोलन से। मोदी राज में मज़बूत हुए सवर्णों के वर्चस्व ने ये नौबत ला दी कि वे दलितों को सरे आम पीटने-मारने लगे। इसने हिंदुत्व का काला चेहरा उघाड़कर रख दिया। इसके पहले पाटीदार आंदोलन ने केक में बड़ा हिस्सा पाने के लिए ज़ोर लगाया था और उससे भी हिंदुत्व की ही फ़ज़ीहत हुई थी।
अब अगले साल की शुरूआत में उत्तरप्रदेश में चुनाव हैं और बीजेपी हाईकमान घबराया हुआ है कि अगर गुजरात का सच वहाँ फैल गया तो उसके तो बारह बज जाएंगे। यूपी के बाद गुजरात का नंबर आएगा और वहाँ भी हार मिली तो बीजेपी के अंदर ही उसके खिलाफ़ विद्रोह हो जाएगा। मोदी के लिए बाक़ी का कार्यकाल पूरा करना मुश्किल हो सकता है।
ऐसे में एक ही सूरत थी। आनंदी बेन को कसूरवार ठहराओ और उनकी बलि ले लो। बेचारी आनंदी, जिनकी अपनी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं थी, वे करती भी क्यां। इस्तीफा माँगे जाने पर उन्होंने अपने पचहत्तर साल पूरे होने का बहाना बहाना बनाते हुए आत्मसमर्पण कर दिया।
अगर बीजेपी हाईकमान सोच रहा है कि आनंदी के जाने से हालात सँभल जाएंगे तो वह बहुत बड़ी खुशफ़हमी में है। अब बात नियंत्रण से बाहर हो चुकी है। वे तमाम सवाल जो बहुत सख्ती से हिंदुत्व के कारपेट के नीचे दबा दिए गए थे वे पूरी ताक़त से उठ खड़े हुए हैं और जवाब मिले बिना चुप नहीं होंगें।
कसूर हिंदुत्व के गुजरात मॉडल का और सज़ा आनंदी बेन को?