क्या चीन ब्रह्मोस के बहाने अरुणाचल पर निशाना साध रहा है?


(ये सही है कि सरकार भारत-चीन सीमा पर ब्रम्होस मिसायल तैनात करके भुजाएं फड़का रही है और उसका मुख्य मक़सद फिलहाल अंधराष्ट्रवाद को हवा देकर राजनीतिक लाभ उठाना है। लेकिन ये भी हक़ीक़त है कि सीमा पर चीन की लगातार हलचलें चिंता बढ़ाने वाली हैं और भारत का एहतियाती क़दम उठनाना लाज़िमी है। हाँ, कोशिश ये होनी चाहिए कि इससे तनाव न बढ़े और बिगड़कर टकराव की नौबत ला दे-मॉडरेटर)

भारत ने अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा के पास अपना ब्रह्मबाण अर्थात ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र तैनात कर दिया है। अपनी सैन्य ताकत पर इतराता चीन भारत के इस कदम से भड़क गया है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए भारत को बुरे नतीजों की चेतावनी तक दे डाली है। चेतावनी में कहा गया है कि चीन भी इस तरह के कदम उठा सकता है।

उसका कहना है कि इसका न केवल दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि क्षेत्रीय असंतुलन भी उभरेगा।  चीन के पीएलए डेली के मुताबिक भारत  ने सीमा पर सुपरसोनिक मिसाइलें तैनात करके आत्मरक्षा की जरूरत की सीमा को पार कर दिया है।



चीन की यह धमकी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत चरितार्थ करती है। भारत की तरफ से अपनी रक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उठाए जा रहे कदमों से बहुत साल पहले चीन न केवल अरुणाचल प्रदेश बल्कि नेपाल से लगे सीमांत इलाकों में भी अपनी सामरिक गतिविधियां बढ़ाता आ रहा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। नेपाल तक तो उसकी बेधड़क पहुंच ही बन चुकी है।

भारतीय सीमा में अरुणाचल प्रदेश के भीतर चीन की सेना की घुसपैठ और फिर पीछे खिसकने का सिलसिला जाने कब से जारी है। सीमाई इलाकों के पास उसके सैनिक बेस, सड़कों के जाल, भारत में तबाही फैलाने के सरंजाम वह बहुत पहले तैयार हो चुके हैं। ऐसे में भारत का अपनी सीमा सुरक्षा को लेकर चिंतित होना लाजिमी है। हमारी सेना अपने इलाके में किस तरह की तैनाती करे, ये तय करना हमारे अपने अधिकार क्षेत्र में है, बीजिंग के नहीं।

दरअसल चीन दुनिया का संभवतः एकमात्र देश है जो वैश्वीकरण के इस दौर में भी सीमा-विस्तार की अपनी मानसिकता से उबर नहीं पाया। यहां तक कि फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति माने जाने वाले अमरीका ने भी कहीं अपने सीमा विस्तार की चीन जैसी खुली कोशिशें नहीं कीं। अपनी मुख्य भूमि से तकरीबन 500 किलोमीटर दूर साउथ चाइना-सी में चीन की ओर से बनाए गए कृत्रिम द्वीप उसकी विस्तारवादी नीति के प्रबल उदाहरण हैं।

चीन को तब और मिर्ची लगती है, जब भारत सरकार की तरफ से अरुणाचल प्रदेश में कोई नई गतिविधि उसे दिखाई देती है। भारतीय प्रधानमंत्री ही नहीं, केंद्र सरकार के किसी मंत्री के अरुणाचल प्रदेश भ्रमण से ही उसे बुखार चढ़ आता है। इसके लिए अपना विरोध जताने में वह देर नहीं करता। दूसरे शब्दों में कहें तो खासतौर से अरुणाचल प्रदेश को लेकर यह उसकी एक अलहदा कूटनीति का अहम हिस्सा बन गया है। कुछ दिन पहले जब चीन सीमा के पास भारतीय वायुसेना ने सुपरसोनिक सुखोई विमानों की उड़ान की थी, तब भी वह इसी तरह भड़का था।



अब ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र तैनात करने से वह क्षेत्रीय असंतुलन पैदा होने की धमकी तक उतर आया है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत की तुलना में चीन की सैन्य शक्ति अभी भी काफी अधिक है। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि आज का भारत 1962 की तुलना में कई क्षेत्रों में कहीं अधिक शक्तिशाली हो गया है। चीन को लगातार नहीं पसंद करने वाला अमरीका भी निश्चित तौर पर इन गतिविधियों पर बारीक नजर रखे है।

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का कहना है कि अरुणाचाल प्रदेश में चीन की सीमा के पास ब्रह्मोस तैनाती से उसके तिब्बत और यूनान प्रांत के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। समूचे अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने वाला चीन जब इस तरह की बात करता है तो अच्छा नहीं लगता। 'खुद मियां फजीहत औरों को नसीहत' जैसी बात साबित होती है। हमारी पूर्वोत्तरीय सीमा के पास अपनी हरकतों से चीन लगातार भारत के लिए खतरा बना हुआ है। वह चाहता है कि भारत उसकी धमकी से सहम जाए और सीमा पर कोई रक्षा व्यवस्था नहीं बढ़ाए। फिर एक दिन मौका पाकर वह अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत की तरह हड़प ले।

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पीएल डेली के विचार निश्चित तौर पर चीन सरकार के विचार हैं। भले ही इन पर कितने ही कूटनीतिक मुलम्मे क्यों न चढ़ाए जाएं। उसकी भाषा खुद सब कुछ बयां कर देती है। वह कहता है, भारत ने अपने "जवाबी संतुलन कायम करने और टकराव पैदा करने' के नजरिए की वजह से यह कदम उठाया है। उसने कहा है कि सीमाई इलाकों में सुखोई विमानों और ड्रोन्स की तैनाती करके भारत सैन्य दृष्टिकोण से फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।



सवाल यह है कि फिर चीन क्या कर रहा है। वह  तो सीमाई इलाकों को अपनी सैनिक ताकत के बल पर हड़पने की कोशिश में लगा है। भारत की तरफ से ऐसी कोई संप्रसारवादी रणनीति नहीं अपनाई गई। वह तो केवल अपनी सीमा को सुरक्षित करने का काम कर रहा है। ध्वनि की रफ्तार से तकरीबन पौने तीन गुना तेजी से मार करने वाले ब्रह्मोस की मारक क्षमता 290 किलो मीटर है। यह संकरे पहाड़ी इलाकों में छिपे लक्ष्य को भी सफलता से निशाना बना सकता है।

इसे किसी भी प्लेटफॉर्म, मसलन-सबमरीन आदि से छोड़ा जा सकता है।  चीन कहता है कि इससे सीमा से सटे उसके इलाकों को खतरा पैदा हो गया है। हालांकि चीन के अंदरूनी इलाकों को निशाना बनाने में यह सफल नहीं हो सकता।

Is China aiming Arunachal using deploying of Brahmos missiles as an excuse?

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