इसलिए छलावा और झूठों का बंडल है GST


वस्तु एवं सेवा कर बिल को राज्यसभा से भी हरी झंडी मिल गई है और अब उसे लागू करने की लंबी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। लेकिन यदि आप इस खामखयाली में हैं कि इसके समर्थकों द्वारा बताए जा रहे फायदे आपकी झोली में गिरने वालें हैं तो आपको निराशा होने वाली है।

दुनिया के जिन 140 देशों मे GST लागू है, वहाँ के अनुभव यही बताते हैं कि जो सब्ज़बाग वहाँ की जनता को दिखाए गए थे वे कभी पूरे नहीं हुए। न अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बढ़ी, न आम आदमी को किसी तरह की राहत मिली।

ऐतिहासिक बताया जा रहा ये कर सुधार संबंधी कानून GST अप्रत्यक्ष करों के ढाँचे को बदलेगा ज़रूर और वन इंडिया वन टैक्स की ओर भी देश छलाँग लगाने लगेगा, मगर आम आदमी को इससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला। उस पर करों का बोझ और बढ़ने जा रहा है।

GST से महँगाई बढ़ेगी ये इसके पैरोकार भी खुलकर मान रहे हैं। अभी वे कह रहे हैं कि ऐसा केवल तीन साल के लिए होगा, मगर सचाई हम सबको पता है। एक बार महँगाई बढ़ने के बाद कम नहीं होती।




एक झूठा ख़्वाब ये दिखाया जा रहा है कि इससे ढेर सारे रोज़गार पैदा होंगे। सन् 1991 के कथित ऐतिहासिक सुधारों को लागू करते समय भी यही सपना दिखाया गया था, मगर पिछले बारह साल के आँकड़े बताते हैं कि कुछ डेढ़ करोड़ रोजगार ही पैदा हुए। पिछले दो साल में तो सवा लाख से भी कम रोज़गारों का स्रजन हुआ है।
तीसरा बड़ा झूठ ये फैलाया गया है कि GST से सकल घरेलू उत्पाद यानी GDP एक से दो फ़ीसदी तक बढ़ जाएगा। लेकिन जिन देशों में ये लागू हो चुका है वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। वे जस की तस हैं। हाँ आम आदमी पर बोझ ज़रूर बढ़ गया है।

ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि अगर इससे आम आदमी को कुछ मिलना नहीं है तो फिर फायदा किसका होने जा रहा है?  तो ये कड़वी सचाई जान लीजिए कि बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों के लिए ही ये कवायद की जा रही है। इससे मझौले और छोटे व्यापरियों और उद्योगपतियों को भी कुछ नहीं मिलने वाला। बल्कि वे एक जटिल प्रक्रिया में भी उलझकर रह जाएंगे।

अगर वे इस बात से खुश हो रहे हैं कि चुंगी, नाके सब बंद हो जाएंगे और एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के रास्तों में होने वाली लूट रुक जाएगी, तो वे धोखे में हैं। हो सकता है कि इस मोर्चे पर उन्हें थोड़ी सी राहत मिल भी जाए मगर बाक़ी जगहों पर उन्हें भुगतना पड़ेगा।

बड़े उद्योगपतियों और व्यापारियों को पिछले दस साल में अड़तालीस लाख करोड़ की रियायतें दी गई हैं। पिछले साल के बजट में भी छह लाख करोड़ की छूट उन्हें दी गई थी। GST भी एक तरह से उन्हें लाभ पहुँचाने के लिए है। विदेशी कंपनियों को भी इससे फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है।

दरअसल, ये तो सब महूसस करते हैं कि अप्रत्यक्ष करों में सुधार की ज़रूरत है, उसे सरल बनाया जाना चाहिए। लेकिन इस सुधार का बोझ आम आदमी पर न डाला जाए, इस ओर सरकार बिल्कुल नहीं सोच रही। वामपंथियों को छोड़कर तमाम राजनीतिक दल सरकार का साथ निभाने के लिए बेचैन हैं।




काँग्रेस ने विपक्ष में आने के बाद टैक्स कम करने पर ज़ोर ज़रूर दिया मगर इससे ज़्यादा कुछ नहीं कर सकी। उसने ये भी माँग नहीं की कि उद्योग एवं व्यापार जगत को दी जाने वाली रियायत कम करके आम आदमी को राहत दी जाए।

जहाँ तक मीडिया का सवाल है तो वह कार्पेरेट के दबाव में पहले से ही आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने और GST लागू करने के लिए दबाव बनाने में लगा हुआ था और अब वही खुशी मनाने में भी सबसे आगे है।



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