स्मृति ईरानी की विदाई नहीं कर पाएगी नुकसान की भरपाई

भूल सुधार का भी एक समय होता है और अगर वह उस समय न किया जाए तो पूरी कवायद बेकार साबित होती है। स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विकास मंत्रालय से हटाना भी देर से की गई कार्रवाई है। स्मृति ने मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर जो दाग़ इस सरकार पर लगाए हैं वे उन्हें हटाने से नहीं धुलेंगे। उन्होंने इन दो साल में समूचे शिक्षा जगत को अपना दुश्मन बना लिया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को छोड़कर पूरा छात्र जगत उनसे खार खाए बैठा था। शिक्षक तो उनके व्यवहार से नाखुश हैं ही। उन्होंने माहौल को इस क़दर विषाक्त कर दिया है कि नए मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पसीने छूट जाएंगे।

दरअसल, स्मृति जैसी अनुभवहीन एवं अल्प शिक्षित व्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपकर ही हिमालयी भूल कर दी गई थी। उनकी नियुक्ति की वजह से स्वयं प्रधानमंत्री हँसी-मज़ाक के पात्र बन गए थे। सरकार और पार्टी की किरकिरी भी हो रही थी। फिर करेला ऊपर से नीम चढ़ा। स्मृति ईरानी एक मंत्री की मर्यादा में रहकर काम करने के बजाय जब-तब चंडी का रूप धर लेती थीं और सोचती थीं कि उनका ये लड़ाकू रूप उनकी कमज़ोरियों को ढाँप लेगा। मगर ऐसा हुआ नहीं।

हैदराबाद विश्वविद्यालय के रोहित वेमुला मामले में पहले उनके दलित विरोधी रवैये ने सरकार को कठघरे मे खड़ा किया, फिर संसद में उनकी ड्रामेबाज़ी और ग़लत बयानबाज़ी ने उनका मज़ाक उड़वाया। इस घटना के बाद उन्हें सँभल जाना चाहिए था मगर उन्होंने अपने ज़िद्दीपने की वजह से इस टकराव को दूसरे विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थाओं तक विस्तार दे दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के विवादों में वे उलझीं और शोध छात्रों के वजीफे को ख़त्म करके उन्होंने अपनी नासमझी का परिचय दिया।

बहुत सारे मौकों पर उनका दलित विरोधी रवैया भी सामने आया। उन्होंने आरक्षित पदों पर भर्ती के मुद्दे को टाला ही नहीं, बल्कि उन्हें सवर्णों से भरने की कोशिश भी की। उनकी इन हरकतों से ज़ाहिर हो गया कि सरकार एक दलित विरोधी एजेंडे पर चल रही है और इसको सबसे अधिक शिक्षा जगत में लागू किया जा रहा है।

बतौर मंत्री भी उन्होंने अपनी गरिमा का निर्वाह नहीं किया। बिहार के शिक्षामंत्री और दलित नेता अशोक चौधरी द्वारा डियर कहकर ट्वीट किए जाने पर उन्होंने बेवजह हंगामा खड़ा किया और अपनी खिल्ली उड़वाई।

स्मृति की विदाई करके मोदी आश्वस्त हो सकते हैं कि अब विवाद कम होंगे, झगड़े कम होंगे। लेकिन नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। प्रकाश जावड़ेकर ठंडे दिमाग़ के आदमी हैं और बेवजह इस उस से पंगा नहीं लेते। इससे थोड़ी शांति ज़रूर बनी रहेगी।

शिक्षा जगत राहत की सांस ज़रूर ले सकता है लेकिन उसे इस खामखयाली में नहीं रहना चाहिए कि सरकार का एजेंडा बदल जाएगा। शिक्षा का भगवाकरण उसके विभिन्न राजनीतिक कार्यक्रमों में से एक है, इसलिए ये सरकार हर वह काम करेगी जो स्मृति ईरानी करती रही हैं, मगर चुपचाप। दलित, अल्पसंख्यक, पिछड़े एवं वामपंथी पहले की ही तरह निशाने पर बने रहेंगे।

-चाणक्य-
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