NSG-प्रचार के पीछे का सच कुछ और है

truth is something else behind NSG publicity-deshkaal
भारत सरकार और मीडिया पिछले दो साल से इस तरह के प्रचार में लगे हुए हैं मानो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जग जीत लिया हो और दुनिया उनकी मुरीद बन गई हो। उनकी ऐसी तमाम सफलताएं गिनाई गईं जिनका ज़मीन पर कोई अस्तित्व ही नहीं है। ठीक यही हाल न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप य़ानी एनएसजी में शामिल होने को लेकर भी है।
पिछले कई दिनों से ये प्रचारित किया जा रहा था कि पूरी दुनिया चाहती है कि भारत को एनएसजी में शामिल कर लिया जाए, बस अड़चन है तो पाकिस्तान और उसके सिर पर हाथ रखे बैठा चीन। ये बताया जा रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस तरह के कूटनैतिक प्रयास करके मैदान मारने में लगे हैं। दक्षिण कोरिया में चल रही बैठक में हिस्सा लेने वे इस तरह जाते हुए बताए गए कि वहाँ वे चीनी प्रधानमंत्री सी पिंग से मिलकर उन्हें भी राज़ी कर ही लेंगे।
लेकिन देखिए कि कहानी पूरी उलटी निकली। चीन ही नहीं दुनिया के कई बड़े देशों ने भारत की दावेदारी को खारिज़ कर दिया। इनमें ब्राज़ील, ऑस्ट्रिया, न्यूज़ीलैंड, आयरलैंड और तुर्की प्रमुख हैं। ब्राज़ील तो ब्रिक्स का मेंबर भी है और पीएमओ को उसे पहले ही साध लेना चाहिए था, मगर वह नाकाम रहा।
तुर्की में तो अभी कट्टरपंथी सरकार है इसलिए उसे तो पंगा लगाना ही था, मगर शायद पीएमओ आँखें बंद किए बैठा था या फिर वह प्रचार कार्य में इतना व्यस्त था ताकि इस सचाई से लोगों का ध्यान हटाया जा सके। लेकिन कलई खुलनी थी सो खुल गई।
सचाई ये है कि भारत सरकार ढोल पीटने और तमाशा करने में ज़्यादा लगी हुई है बजाय इसके कि चुपचाप काम किया जाए और ठोस उपलब्धियाँ हासिल होने के बाद ही उन्हें प्रदर्शित किया जाए।
जहाँ तक न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में शामिल होने का सवाल है तो सबको पता है कि वह उतना आसान नहीं है जितना की सरकार समझ रही है। उसने परमाणु अप्रसार संधि यानी NPT को स्वीकार नहीं किया है और इस आधार पर बहुत सारे देश अड़ंगे लगाने के लिए तैयार बैठे हैं।
बहुत सारे देश तो अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता से ही नाराज़ हैं और वे कतई नहीं चाहेंगे कि भारत मज़बूत हो और एशिया में अमेरिका का ताक़तवर मोहरा बनकर उनके लिए चुनौती पेश करे। भारत सरकार की अति हिंदूवादी छवि भी अगर अड़चन बन रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं है।
प्रचारित धारणा के विपरीत दुनिया भर में भारत को लेकर ये भय बढ़ा है कि वह फासीवाद की तरफ क़दम बढ़ा रहा है और उससे विश्व शांति को ख़तरा पैदा हो सकता है। ऐसे में लाज़िमी है कि वे भारत की परमाणु ताक़त को बढ़ने से रोकने की हर संभव कोशिश करेंगे।
- चतुरसेन 
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