कायर कौम अमेरिका, फिर काहे ऐंठे मूँछ


साधौ जग बौराना

अमेरिका के अटार्नी जनरल एरिक होल्डर का कहना है कि अमेरिकी लोग कायर होते हैं। उनके मुताबिक अमेरिकी कायर इसलिए होते हैं क्योंकि वे नस्ली मामलों पर बातचीत करने से घबराते हैं, कतराते हैं।

अब अगर किसी मुल्क का अटार्नी जनरल ही ऐसा कहे तो शक़ करने की गुंज़ाइश नहीं रह जाती। वे कह रहे हैं तो पक्की बात है कि अमेरिकी कायर हैं। हालाँकि किसी कौम को ही कायर करार देना ही एक नस्लवादी विचार है मगर चूँकि ये हम नहीं खुद अमेरिका के अटार्नी जनरल कह रहे हैं इसलिए यकीन करने का मन करता है। मगर शायद होल्डर साहब अमेरिकी कायरता को सही ढंग से पहचान नहीं पाए हैं। अमेरिकी केवल नस्ली मामलों में ही नहीं, बल्कि सभी मामलों में कायर हैं।

बेशक अमेरिका दुनिया भर में अपनी दादागीरी दिखाता फिरता है। उसके फौजी पूरी धरती को रौंदते रहते हैं। लोग इसीलिए उसे अंकल सैम तक कहते हैं मग है वह कायर ही। दुनिया भर के देशों को डराना दरअसल उसके अपने डर का ही नतीजा है। वह जितना अधिक डरता है उतना अधिक डराता है। डर की वजह से ही वह नए-नए हथियार बनाता है, दुनिया भर में सेनाएं सजाता है और हमेशा य़ुद्धोन्मत्त रहता है।

वास्तव में अमेरिका इतना अधिक डरपोक है कि उसे हर तरफ से डर दिखाई देता है। पहले उसे सोवियत संघ से डर सताता था। वियतनाम, क्यूबा, चिली, निकारागुआ जैसे छोटे-छोटे मुल्क उसे डराते रहते थे। शीत युद्ध के दौरान तो वह कम्युनिस्ट आ रहे हैं इस भय से ही वह थर-थर काँपता था। इसी की वजह से उसने स्टार वार जैसी योजना तक बना डाली थी।

समाजवादी देशों का पतन हो गया तो लगा कि अब अमेरिकी कायरता छोड़ देंगे और बहादुर हो जाएंगे। उनका डर छू मंतर हो जाएगा। मगर उन्हें इराक, ईरान उत्तर कोरिया और चीन वगैरा से डर लगने लगा। फिर वे उस तालिबान से डरने लगे जिसे उन्होंने पैदा ही नहीं किया था, पाला-पोसा भी था। आज की तारीख़ में उन्हें सबसे ज़्यादा इस्लामी कट्टरपंथियों से डर है। वे घबराए रहते हैं कि अल क़ायदा कहीं फिर से 9-11 न कर दे। वैसे इस डर का जन्मदाता भी वही है।

कहने को अमेरिका दुनिया का सबसे ताक़तवर मुल्क है मगर वास्तव में वह कायर लोगों का कायर मुल्क बनकर रह गया है। युद्ध के मैदान से एक बॉडी बैग आता नहीं है कि अमेरिकी छाती कूट-कूट कर हाय-हाय करने लगते हैं। पहले युद्धं देहि चिल्लाते हैं और फिर जब अमेरिकी फौजी मरने लगते हैं तो युद्ध रोकने के लिए प्रदर्शन करने लगते हैं।

ये अमरीकियों का कायर स्वभाव ही है कि सबसे ज़्यादा हथियार वही बनाते हैं, बेचते हैं और उनका इस्तेमाल भी करते हैं। यहाँ तक कि उनके नागरिक जीवन में भी हथियारों का चलन बहुत ज़्यादा है। छोटी उम्र के बच्चे तक रिवाल्वर लेकर स्कूलों में बड़े-बड़े काँड कर डालते हैं।

डरना अमरीकियों का चारित्रिक गुण बन गया है उन्हें डरने की आदत पड़ गई है। वे डर के बिना जी नहीं सकते इसलिए डरने की नई-नई तरकीबें खोजते रहते हैं। नए-नए डरों का आविष्कार करने में तो उनका कोई सानी नहीं है। ड्रैकुला से लेकर स्टार वार और एनाकोंडा तक वे भय की रचना करते रहते हैं। कभी-कभी तो उन्हें दुनिया का अंत ही नज़दीक नज़र आने लगता है और तब वे और भी डर जाते हैं।

इसलिए हे अमेरिका के प्रथम अटार्नी जनरल महोदय....अमेरिकी उससे कहीं ज़्यादा कायर हैं जितना आप सोचते हैं। और ये तो आपको पता ही होगा कि डरने का अंजाम क्या होता है। अगर न पता हो तो शोले फिल्म की एक डीवीडी मँगवाकर देख लीजिए। गब्बर सिंह आपको बता देगा। वैसे अभी नस्ली डर की नहीं मंदी के महाडर की बात कीजिए, क्योंकि अमेरिकी सबसे ज़्यादा भयाक्रांत उसी से हैं।


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