भाषा पर अज्ञानता का अतिक्रमण


अपने एक जूनियर, जिसकी ड्यूटी टिकर (जहां लिखे जाने वाले वाक्य और शब्द हर वक्त दिखते है) पर थी, के मुंह से ये सुनकर दंग रह गया कि अतिक्रमण क्या होता है और कलेक्ट्री का मतलब उसे पता नहीं ! सड़क हादसे में 5 लोगों की मौत होती है

तो ब्रेकिंग न्यूज में पहला वाक्य लिखा जाता है कार और ट्रक की भिडंत, फलां जगह पर हुआ हादसा, इसके बाद लिखा जाता है कार में सवार 5 लोगों की मौत। आप ही बताइए क्या खबर सबसे पहले दी गई या फिर सबसे आखिर में ! पुलिस ने लापरवाही से वाहन चलाते हुए 2 युवकों को गिरफ्तार कर लिया। क्या इस तरह लिखना सही है? मेरे नजरिए से सही ये होगा- लापरवाही से वाहन चलाते हुए 2 युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अर्थ का अनर्थ संबंधी एक वाक्य कभी नहीं भुलाया जा सकता। एक महिला से बलात्कार 䤕े बाद सुषमा स्वराज की टिप्पणी की खबर कुछ इस तरह लिखी गई- सुषमा स्वराज के बलात्कार संबंधी बयान....ये बात उस वक्त की है जब इस तरह की गलतियां बमुश्किल ही सामने आती थीं, लेकिन आज ये सब आम हो गया है। भाषा और ख़बर की दुर्दशा के ये नमूने भर थे जबकि ऐसे काफी मामले रोज देखे सुने जा रहे हैं, ध्यान नहीं दिया जा रहा ये बात अलग है।

नुक्तों की बात करूं तो मुझे खुद ज्यादा समझ नहीं किस शब्द में कहां नुक्ता लगेगा यही वजह है कि मैं इनके इस्तेमाल से बचता हूं। ऐा नहीं है कि मैं नुक्तों के बारे में सीखना ही नहीं चाहता लेकिन सोचिए एक ही वाक्य में 3 या 4 शब्द ऐसे आते हैं जिनमें नुक्ता लगता है लेकिन मुझे सिर्फ 2 के बारे में पता है तो ऐसे लिखे वाक्य में नुक्तों का जानकार लेखक के बारे में क्या राय बनाएगा और उसे कितना गुस्सा आएगा, लेकिन ऐसा धडल्ले से हो रहा है। पांच साल पहले जब पत्रकारिता शुरू की थी तब हिंदी पत्रकारिता के लिए जरूरी कुछ बुनियादी बातें सीखीं, जिनमें खबर की समझ, भाषा की शुद्धता और वाक्य विन्यास प्रमुख थे। हिंदी पत्रकारिता में हिंग्लिश का इस्तेमाल तो तभी शुरू हो गया था जिसे वक्त की जरूरत बताया गया। समझाया जाता था कि ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाए जो दर्शक आसानी से समझ सकें। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। ज्यादा से ज्यादा समाचार पत्र-पत्रिकाएं और हिंदी चैनल इसका जरिया थे। हिंग्लिश के मामले में भले ही ये माध्यम रोल मॉडल नहीं पाये लेकिन मात्रा और वाक्य विन्यास की 95 फीसदी शुद्धता के मामले में जरूर ये मार्गदर्शन करते थे। उस वक्त मात्रात्मक अशुद्धियां या फिर अर्थ का अनर्थ करने वाला वाक्य विन्यास कभी कभार ही देखने को मिलता था लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल गई है।

नामी हिंदी न्यूज चैनल्स और समाचार पत्रों में 24 घंटे ऐसी अशुद्धियां देखी सकती हैं जिन्हें देखकर हिंदी और हिंदी पत्रकारिता के भविष्य पर चिंता होने लगती है। जबकि आज विजुयल के साथ साथ टेक्स्ट का प्रचलन जबरदस्त तरीके से बढ़ा है। स्क्रीन पर विजुयल से ज्यादा लोकेशन, अपर, लोअर बैंड और टिकर की खबरें दिखाई देती हैं। सबसे ज्यादा ध्यान भी इन्हीं पर दिया जाता है लेकिन फिर भी जिस तरह से अशुद्धियां दिखाई देती हैं चिंताजनक है, क्योंकि बुद्धिजीवी वर्ग इन्हें पढ़कर अंदाजा लगा सकता है कि किसी माध्यम के क्या स्टैंडर्ड हैं और वहां किस तरह के लोग काम करते होंगे। पत्रकारिता में आने से पहले और अब भी ये ही माध्यम हैं जिनसे न सिर्फ बहुत से काम आने वाले हिंदी शब्दों का बल्कि ये ज्ञान भी होता था कि कौन सा शब्द कैसे लिखा जाता है। हालांकि ज्यादातर लिखने-पढ़ने में रोज काम आते थे लेकिन कई शब्द इन्हीं माध्यमों के जरिए सामने आते थे, तो जाहिर है जैसे लिखे होते थे उसे ही ठीक समझ लेते, क्योंकि संदेह की गुंजाइश कम होती थी। आज कई शब्दों पर दो राय सामने आती हैं, कंफ्यूजन होता है कि ये शब्द हम जानते हैं वैसे लिखा जाए या फिर सामने वाले के मुताबिक। कंफ्यूजन में जवाब यही होता है कि अभी तक ऐसे ही लिखा देखा है जैसे मैं बता रहा हूं। जाहिर सी बात है पत्र पत्रिकाओं या फिर समाचार चैनलों पर ही देखते आ रहे हैं। यहां मतलब सिर्फ इतना सा है कि हिंदी पत्र-पत्रिकाओं और समाचार चैनलों में किसी शब्द को पहली बार हम जैसा देखते-पढ़ते हैं वही ठीक समझते हैं। आम आदमी का भी यही नजरिया होता है, क्योंकि माध्यम तो यही सब हैं। तो सवाल ये है कि हिंदी की अशुद्धियों से क्या हम दूसरों की हिंदी भी खराब कर रहे हैं।

क्या ये बात सही है कि हिंदी पत्रकारिता में आज जेनरेशन गैप बढ़ गया है। हिंदी की अच्छी समझ रखने वाले बुद्धिजीवी और अनुभवी पत्रकारों की कमी हो गई है और इनकी जगह बचपन से ही अंग्रेजी माध्यम में पले बढ़े जर्नलिस्ट ने ले ली है। युवाओं का मैं विरोधी नहीं हूं क्योंकि मैं खुद भी युवा हूं और न ही अंग्रेजी के खिलाफ हूं क्योंकि इंग्लिश ग्लोबल लैंग्वेज है। पत्रकारिता में आज काफी कुछ बदल गया है लेकिन जिस माध्यम की पत्रकारिता हम कर रहे हैं कम से कम उसे तो सशक्त रखें। भाषा के ज्ञानी नहीं तो कम से कम बुनियादी जानकार बनकर तो अपना काम करें, न कि नासमझी का नकाब ओढ़कर हिदी पत्रकारिता और लेखन का नाम खराब करें। न सिर्फ वर्तमान दर्शक बल्कि आगे चलकर देश का भविष्य तय करने वाले युवा और बच्चे भी सभी तरह के मीडिया से हिंदी के बारे में कम से कम 25 फीसदी सीख तो ले ही रहे हैं। हो सकता है इतना कुछ लिखने के दौरान मैंने भी कुछ अशुद्धियां लिखी होंगी, ऐसे में आपसे अपील है कि मार्गदर्शन जरूर करें।

देवेन्द्र शर्मा वॉइस ऑफ इंडिया न्यूज़ में कार्यरत हैं।


Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment