इसलिए कभी भी युद्ध नहीं चाहेंगे मोदी


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब कोझीकोड में बोल रहे थे तो उनके चेहरे पर चिन्ताएं साफ नजर आ रही थीं। उनकी स्वाभाविक मुस्कान गायब थी, उनके ऊपर मीडिया का उन्मादी दवाब है। यह उन्मादी दवाब और किसी ने नहीं उनकी ढोल पार्टी ने ही पैदा किया है। इसे स्वनिर्मित मीडिया कैद भी कह सकते हैं।

Therefore-narendra-modi-would-not-ever-fight
यह सच है कि भारत ने आतंकियों के उड़ी में हुए हमले में अपने 18 बेहतरीन सैनिकों को खोया है। ये सैनिक न मारे जाते तब भी मीडिया उन्माद रहता, क्योंकि मोदी सरकार के पास विकास की कोई योजना नहीं है। उनकी सरकार को ढाई साल होने को आए वे अभी तक आम जनता को यह विश्वास नहीं दिला पाए हैं कि वे अच्छे प्रशासक हैं।

अच्छे प्रशासक का मतलब अपने मंत्रियों में आतंक पैदा करना नहीं है, उनके अधिकार छीनकर पंगु बनाना नहीं है। मोदी ने सत्ता संभालते ही सभी मंत्रियों को अधिकारहीन बनाकर सबसे घटिया प्रशासक का परिचय दिया और आरंभ में ही साफ कर दिया कि वे एक बदनाम प्रधानमंत्री के रूप में ही सत्ता के गलियारों में जाने जाएंगे।
मैंने आज तक एक भी ऐसा अफसर नहीं देखा जो उनकी कार्यशैली की प्रशंसा करता हो। उनकी कार्यशैली ने चमचाशाही पैदा की है। नौकरशाहों में वफादारों की भीड़ पैदा की है लेकिन ईमानदार नौकरशाह मोदीजी से दूर रहना ही पसंद करते हैं। बाबा नागार्जुन के शब्दों को उधार लेकर कहूँ तो मोदी जी की विशेषता है ´तानाशाही तामझाम है लोकतंत्र का नारा।´यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसमें हमें कश्मीर समस्या और पाक तनाव को देखने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जानते हैं कि युद्ध के बाद कोई प्रधानमंत्री भारतीय राजनीति में साबुत नहीं बचा है। सन् 1962 के बाद नेहरू की वह इमेज नहीं रही जो पहले थी। सन्1965 के युद्ध के बाद लाल बहादुर शास्त्रीजी टूट गए, कांग्रेस पूरी तरह कमजोर हो गयी। सन् 1971 में पाक को पराजित करके बंगलादेश बनाकर श्रीमती इंदिरा गांधी की आम जनता में सारी इमेज चंद सालों में ही भ्रष्ट नेता की होकर रह गयी और बाबू जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई के हाथों उनको बिहार और गुजरात के साथ देश में मुँह की खानी पड़ी।

स्थिति यहां तक बदतर हो गयी कि उनको अपनी रक्षा के लिए आपातकाल लगाना पड़ा।सन् 1971 की विजय के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस वही नहीं रहे जो 1971 के पहले थे। कांग्रेस बुरी तरह टूटी ,देशभर में हारी।यही हाल कारगिल युद्ध में जीत के बाद भाजपा का हुआ।अटलजी को इस विजय के बाद हम देख नहीं पाए हैं।भाजपा के सारे ढोल-नगाड़े पराजय में बदल गए और मनमोहन सिंह नए प्रधानमंत्री के रूप में सामने आए।

कहने का अर्थ यह है कि युद्ध के बाद कोई भी पार्टी विजेता नहीं रही। सन् 1971 जैसी जीत किसी को नहीं मिली,लेकिन आपातकाल जैसा बदनाम कदम भी किसी और ने नहीं इंदिरा गांधी ने ही उठाया। आम जनता से सबसे ज्यादा कांग्रेस 1971 के बाद ही कटनी शुरू हुई है उसके बाद वह कभी टिकाऊ ढ़ंग से आम जनता में अपनी जड़ें नहीं बना पायी।

कहने का आशय यह कि युद्ध किसी का मित्र नहीं होता। युद्ध में कोई विजेता नहीं होता,युद्ध में कोई नायक नहीं होता। अमेरिका में देखें, इराक को तहस-नहस करने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के बारे में सोचें उनकी पार्टी इराक युद्ध के बाद लौट नहीं पाई जबकि इराक को वे जीत लिए,अफगानिस्तान को रौंद दिए। इन दो युद्धों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह कंगाल कर दिया।इराक युद्ध के बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा किसी से जनता यदि घृणा करती थी तो वे थे राष्ट्रपति जार्ज बुश।

चूंकि आरएसएस के लोगों का नायक हिटलर है तो देखें द्वितीय विश्वयुद्ध ने हिटलर की सारी दुनिया में किस तरह की इमेज बनायी ॽ सबसे ज्यादा घृणा किए जाने वाले नेता के रूप में सारी दुनिया हिटलर को याद करती है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संभवतःयह सब जानते हैं कि सन् 1962,1965,1971 और अंत में कारगिल युद्ध ने तत्कालीन नेताओं को खैरात में जनाक्रोश दिया। कम से कम जनाक्रोश की कीमत पर पाक से युद्ध करना मोदीजी पसंद नहीं करेंगे। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि युद्ध में कौन जीतेगा, महत्वपूर्ण यह है कि युद्ध के बाद नेता, देश और भाजपा का क्या होगा ॽ युद्ध यदि होता है तो यह तय है भारत जीतेगा, लेकिन मोदी-भाजपा आम जनता में हार जाएंगे।
मैं हाल ही में कारगिल गया था वहां लोगों से मिला। बड़ी संख्या में कारगिल युद्ध के चश्मदीद गवाहों से भी मिला। कारगिल की गरीबी और बदहाल अवस्था से सब लोग परेशान हैं। कारगिल युद्ध जीतकर भी वहां की आम जनता के दिलों में हमारे नेता अपने लिए वह स्थान नहीं बना पाए जो होना चाहिए।

कारगिल का इलाका बेहद गरीब है। विगत 76 दिनों से कश्मीर में कर्फ्यू लगे होने के कारण वहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो गयी है। पर्यटन ही वहां रोटी-रोजी का एकमात्र सहारा है। जो लोग कश्मीर में कर्फ्यू लगाकर खुश हैं वे कश्मीर की जनता को तो कष्ट दे ही रहे हैं,कारगिल और लद्दाख की जनता को भी तकलीफ दे रहे हैं।

आज की स्थिति में यदि युद्ध होता है तो कश्मीर-कारगिल-लेह-लद्दाख की जनता हमारी सेना के साथ खड़ी होगी इसमें संदेह है। हम सब जानते हैं कि हमने कारगिल युद्ध सिर्फ अपनी सेना के बल पर नहीं जीता,बल्कि कारगिल-लद्धाख की जनता की मदद से वह युद्ध जीता गया।

मीडिया में जो लोग युद्ध करो, पाक पर हमला करो, आतंकी ठिकानों पर हमले करो आदि सुझाव दे रहे हैं वे नहीं जानते या फिर जान-बूझकर सच्चाई को छिपा रहे हैं। कश्मीर का इलाका अशांत रखकर, आम जनता को घरों में कैद करके भारतीय सेना के बलबूते पर कभी भी सफलता नहीं मिल सकती।

हमें ध्यान रखना होगा कि कारगिल युद्ध के समय कारगिल की खास जनजातियों की मदद के बाद ही हम कारगिल युद्ध में विजय हासिल कर पाए थे। उस समय कारगिल में जनता हमारे साथ थी। आज स्थिति एकदम विपरीत है। विगत76 दिनों से कश्मीर-कारगिल-लेह-लद्दाख की जनता बेहद परेशान है और उसके मन में केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के खिलाफ जबर्दस्त गुस्सा है।जनता को विरोध में करके कोई देश युद्ध नहीं जीत पाया है।

इसलिए कभी भी युद्ध नहीं चाहेंगे मोदी
This is why Prime Minister Narendra Modi would not like to go for war with Pakistan

Written By

जगदीश्वर चतुर्वेदी








जगदीश्वर चतुर्वेदी

अन्य पोस्ट :
सरकार और अलगाववादियों को एक्सपोज क्यों नहीं करते मीडिया और बुद्धिजीवी?
Why media and Intellectuals are not exposing government and separatists?
लोकतंत्र बना रहेगा, लेकिन इस तरह दबे पाँव आएगा फासीवाद
कश्मीर को देखना है तो मिथ और अफ़वाहों के पार देखना होगा-आँखों देखा कश्मीर-2
If you want to see Kashmir, you have to see beyond myths and rumours
मैंने कश्मीर में वह देखा जिसे कोई नहीं दिखा रहा और जो देखा जाना चाहिए
What I have seen in Kashmir, nobody is showing and it must be seen
हर टीवी चर्चा में संघ की नुमाइंदगी के निहितार्थ समझिए
कश्मीर के दो दुश्मन-कश्मीरी अलगाववाद और हिंदू राष्ट्रवाद
Two enemies of Kashmir-Kashmiri Separatism and Hindu Nationalism
Previous Post Next Post