सरकार और अलगाववादियों को एक्सपोज क्यों नहीं करते मीडिया और बुद्धिजीवी?


कश्मीर में कर्फ्यू लगे 70 दिन हो गए। अब तक 85 लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन हमें नहीं मालूम कि वहां क्या हो रहा है। हमारे देश के बुद्धिजीवियों को भी इससे कोई परेशानी नजर नहीं आ रही। किसी भी लेखक संघ ने प्रतिवाद करते हुए आवाज बुलंद नहीं की है।

exposing-kashmir-government
समझ में नहीं आ रहा कि प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ आदि संगठनों में कश्मीर को लेकर चुप्पी क्यों हैॽ कश्मीर की पीड़ा हमें तकलीफ क्यों नहीं देतीॽ क्या उत्तर प्रदेश या बिहार में दो महीने तक कर्फ्यू लगा रहे तो हम सब इसी तरह चुप बैठे रहतेॽ मुझे बेहद झल्लाहट हो रही है कि हमारे तमाम बेहतरीन बुद्धिजीवी और मानवाधिकार संगठन कश्मीर के मसले पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई मुहिम अभी तक क्यों नहीं छेड़ पाएॽ



मैं जब कश्मीर में कुछ समय पहले वहां घूमते हुए कश्मीर के बुद्धिजीवियों-लेखकों-रंगकर्मियों और आम लोगों से बातें कर रहा था तो एक बात सबने कही कि आरएसएस और मीडिया के कश्मीर विरोधी अभियान ने कश्मीर को लंबे समय से मुख्यधारा से अलग-थलग कर रखा है। आम कश्मीरी के सुख-दुख को देस के बाकी हिस्से में रहने वाले लोग नहीं जानते ,और न मीडिया बताना चाहता है।

सबसे पीड़ादायक रूख केन्द्र सरकार का है, वह एक कदम आगे बढ़कर पृथकतावादियों को बातचीत के लिए अभी तक राजी नहीं कर पायी है। इसका दुष्परिणाम यह निकला है कि आम जनता बुरी तरह से परेशान होकर रह गयी है। आम कश्मीरी अमन-चैन की जिन्दगी जीना चाहता है,लेकिन मोदी सरकार और पृथकतावादी मिलकर आम जनता को अमन के साथ रहने नहीं देना चाहते।

हम जानना चाहते हैं कि कश्मीर के पृथकतावादी नेता और हुर्रियत (जी) के अध्यक्ष सईद अली जिलानी ने 26 अगस्त 2016 को जो पत्र सेना के अधिकारियों को लिखा था उस पर केन्द्र सरकार ने कोई जवाब दिया कि नहींॽ मीडिया में उस पत्र को लेकर मोदी सरकार के रूख का कहीं कोई जिक्र नजर नहीं आता।

जिलानी ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि सेना की कार्रवाई से अब तक कश्मीर में एक लाख लोग मारे गए हैं, दस हजार लोग गायब हैं और साठ हजार बच्चे अनाथ हो गए हैं। कम से कम इन आंकड़ों के बारे में तथ्यपूर्ण खंडन केन्द्र सरकार को जरूर देना चाहिए वरना यही समझा जाएगा कि जिलानी सही कह रहे हैं। जिलानी का यह पत्र अनेक मामलों में बेहद खतरनाक मंशाओं से भरा हुआ है। इन मंशाओं में सबसे खतरनाक मंशा है आम कश्मीरी को दिमागी तौर पर भारत से मुक्त कर देना।



केन्द्र सरकार की हरकतों और पृथकतावादियों की चालों में विलक्षण साम्य है, वे जाने-अनजाने एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम कर रहे हैं। कश्मीर में इतने लंबे समय से कर्फ्यू के लगे रहने से पृथकतावादियों को अपने मंसूबे पूरे करने में मदद मिली है। विगत कई सालों में आम कश्मीरी मुख्यधारा में लौटा था,राज्य में शांति लौटी थी लेकिन मोदी सरकार ने बुरहान वानी की हत्या करके समूची कश्मीरी जनता को पृथकतावादियों और सेना के रहमो-करम पर जीने के लिए छोड़ दिया।

दो साल पहले कश्मीर में लोकतंत्र था, शांति थी, चुनाव हुए थे, सामान्य जीवन चल रहा था, लेकिन विगत दो महिने में सबकुछ बुनियादी तौर पर बदल गया। आज आम कश्मीरी जहां एक ओर आतंकियों-पृथकतावादियों से नफरत करता है वहीं वह भारत सरकार से भी नफरत करने लगा है।

मोदी सरकार ने राजनीतिक पहल न करके कश्मीर की जनता को पूरी तरह हुर्रियत और दूसरे पृथकतावादी संगठनों के हवाले कर दिया है जबकि जरूरत यह है कि आम जनता को आतंकियों-पृथकतावादियों से अलग-थलग किया जाए। हजारों करोड़ रूपये का आर्थिक नुकसान झेलने के बाद जम्मू-कश्मीर बहुत जल्दी अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा।

हमारे नीति निर्माता कहीं न कहीं यह सोचकर चल रहे हैं कि कश्मीरी जनता की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ देंगे तो वह सीधे रास्ते पर आ जाएगी। यह धारणा गलत है। यह सोचना भी गलत है कि कश्मीरियों को उत्पीडित करके वहां शांति स्थापित हो जाएगी,पाक का असर कम हो जाएगा,आतंकियों का असर कम हो जाएगा।

मोदी सरकार मूलतःकश्मीरी जनता के प्रति हृदयहीन भाव से पेश आ रही है। यह हृदयहीनता उनको विरासत में आरएसएस और अमेरिका से मिली है। इस हृदयहीनता का लक्ष्य है आम लोगों के दिलों में दरारें पैदा करना।आम लोगों के अंदर लोकतंत्र के प्रति नफरत गहरी करना।

सरकार और अलगाववादियों को एक्सपोज क्यों नहीं करते मीडिया और बुद्धिजीवी?
Why media and Intellectuals are not exposing government and separatists?


Written By

जगदीश्वर चतुर्वेदी








जगदीश्वर चतुर्वेदी

अन्य पोस्ट :
लोकतंत्र बना रहेगा, लेकिन इस तरह दबे पाँव आएगा फासीवाद
कश्मीर को देखना है तो मिथ और अफ़वाहों के पार देखना होगा-आँखों देखा कश्मीर-2
If you want to see Kashmir, you have to see beyond myths and rumours
मैंने कश्मीर में वह देखा जिसे कोई नहीं दिखा रहा और जो देखा जाना चाहिए
What I have seen in Kashmir, nobody is showing and it must be seen
हर टीवी चर्चा में संघ की नुमाइंदगी के निहितार्थ समझिए
कश्मीर के दो दुश्मन-कश्मीरी अलगाववाद और हिंदू राष्ट्रवाद
Two enemies of Kashmir-Kashmiri Separatism and Hindu Nationalism
विचारों को नियंत्रित करने के लिए संघ की नई रणनीति
RSS’s new strategy for propagating its ideology
आंबेडकर की नज़र में धर्म, धर्मनिरपेक्षता और मानवता
Religion, Secularism and humanity from the eyes of Baba Saheb Ambedkar
Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment