अतिथि


बिना कुछ पूछे ही
मेरे ह्रदय के दरवाज़े खोलकर वह अंदर आ गया
आते ही उसने प्रेम से सजा मेरा गुलदस्ता तोड़ दिया

guest-atithi-neelim-kumar
कहाँ का मनहूस इंसान-
सुबह ही आया था
खिलाया, पिलाया
शाम होने को आई मगर
अतिथि जाता ही नहीं
अब तो रात हो चुकी
मेरे ही बिस्तर पर गहरी नींद में
सोया है अतिथि


आधी रात को उसने
अपने ह्रदय से एक पोटली निकाली
और मेरे हाथ में रख दी
फिर अचानक जाने लगा ये कहते हुए
कि रात वाली गाड़ी से जाना है

उसके जाने के बाद मैंने पोटली खोलकर देखी
प्रेम से सजे मेरे गुलदस्ते की तरह
उसका ह्रदय भी खंडित था
कहाँ का अतिथि था
रात वाली गाड़ी से जाने कहाँ चला गया।





असमिया कविताओं के विद्रोही स्वर
पिछले तीन-चार दशकों में असमिया कविता ने नए रंग-रूप अख्तियार किये हैं और उनका आस्वाद भी बदला है| मगर कविता में विद्रोह कि जो परम्परा नए कवियों को विरासत में मिली थी वह मूल भावना बनकर उसमें न केवल मौजूद है बल्कि और भी मज़बूत हुई है| यहाँ प्रस्तुत है पांच महत्वपूर्ण कवियों की रचनाएँ. असमिया से अनुवाद पापोरी गोस्वामी ने किया है ।

अन्य कवितायेँ :
केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी
आग
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