tag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post1109769835768717555..comments2023-08-28T17:40:22.717+05:30Comments on deshkaal introduce indian political and social issues: बरखा, राजदीप! अर्नब ही नहीं, अपराधी और भी हैंUnknownnoreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-72796316377236466282016-08-21T00:10:25.253+05:302016-08-21T00:10:25.253+05:30जब बरखा दत्त कारगिल में न्यूज़ लीक कर रही थी तो मुक...जब बरखा दत्त कारगिल में न्यूज़ लीक कर रही थी तो मुकेश कुमार महाशय सो रहे थे। ये तब भी सोते रहते हैं जब राजदीप सागरिका और बरखा बुरहान वानी को पीड़ित बताते हैं। महेश जी 65 साल से आपके अंदर का पत्रकार सो रहा था? जे एन यू के ओमर खालिद और कन्हैया की तरह आज़ादी चाहिए?devanshuhttps://www.blogger.com/profile/12383473110366210320noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-33292452250569147552016-08-15T18:33:28.307+05:302016-08-15T18:33:28.307+05:30राजदीप और वर्षा दोनों एक पक्ष के हैं आपा की तरफ के...राजदीप और वर्षा दोनों एक पक्ष के हैं आपा की तरफ के एन्कर हैं। यह लेख अर्णव की निन्दा करने के लिये लिखवाया गया है। गिर तो राजदीप और वर्षा गईं हैं। अर्थव्यवस्था तो फिर भी ठीक है। दर्शकों की नजर से वर्षा और राजदीप गिर चुके हैं।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/13332901015022283518noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-59949189965550066232016-08-05T10:35:57.845+05:302016-08-05T10:35:57.845+05:30"हाल में राजदीप सरदेसाई ने अपने ब्लॉग में फाक..."हाल में राजदीप सरदेसाई ने अपने ब्लॉग में फाकलैंड युद्ध के संदर्भ में बीबीसी की भूमिका उदाहरण देते हुए ठीक ही कहा था कि पत्रकार के लिए सच सबसे बड़ा होता है, देश से भी बड़ा।" तो क्या आपका भी मनना है की बुरहान वानी एक freedom fighter क्योंकि आपके तर्कों से तो यही पता चलता है. हमारी सेना अपने सीने पर गोली कहती रहे और आप जैसे लोग बुद्धि विलास में गोते लगते रहें और हर आतंकवादी को शहीद बताते रहें . देश को प्रेम करना अंध राष्ट्रवाद नहीं होता . आप जैसे बुद्दिमानों को कुच्छ दिन कश्मीर में पत्थर बाजों और a k 47 हमले करनेवालों का सामना करने के लिए भेज देना छाहिये . माफ़ कीजिये देश भक्ति को गाली की संज्ञा मत दीजिये . हम पकिस्तान नहीं हैं जो खुले आम आतंक का साथ दे रहे हैं .Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04234651670572061286noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-30643935036570927652016-08-05T07:48:56.866+05:302016-08-05T07:48:56.866+05:30आपकी की पूरी टिप्पड़ी एकतरफा है . अर्नब ने व्यापम घ...आपकी की पूरी टिप्पड़ी एकतरफा है . अर्नब ने व्यापम घोटाले और राजस्थान की मुख्यमंत्री के बारे में हफ़्तों उनके खिलाफ कार्यक्रम किये . शायद उस समय आपको अच्छा लग रहा होगा, इसलिए कुव=छ नहीं कहा . लगता है आज कोई राष्ट्रवाद या राष्ट्र प्रेम की बात करे तो वो जाहिल है. बुद्धिविलास की पराकाष्ठा को को छूते हुए आतंकवादी का साथ दे तो वह liberal है . अरे बंद करो ये बकवास इसी बकवास के कारण हमारा देश हजारों वर्ष की गुलामी झेल चूका है . कुछ लोग आज भी उसी गुलामी की ओर देश को ले जाना चाहते हैं . Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04234651670572061286noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-39759412748782935122016-08-02T18:54:50.302+05:302016-08-02T18:54:50.302+05:30मुझे लगा कि आप पत्रकारों के बीच हाल में चल रही वाक...मुझे लगा कि आप पत्रकारों के बीच हाल में चल रही वाक युद्ध पर रौशनी डालेंगे। उसके कारण बताएंगे। लेकिन आपने तो पूरा लेख अर्णब को अपराधी बनाने में ही खर्च कर दिया। Dev Kumar Pukhrajhttps://www.blogger.com/profile/15769003317143603023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2842870847287223421.post-90163304894547608462016-07-31T19:04:21.493+05:302016-07-31T19:04:21.493+05:30मामला किसी एक पत्रकार का सरकार की जी हजूरी करने और...मामला किसी एक पत्रकार का सरकार की जी हजूरी करने और दूसरे समकक्ष पत्रकारों का उसकी कार्यशैली पर सवाल करने का नहीं है बल्कि ज्यादातर टीवी चैनल पर ऐंकर जिस तरह शिकायत कर्ता, जांच अधिकारी की भूमिका निभाते हुए जज की तरह अपना फैसला सुनाने का काम कर रहे हैं उससे लोकतंत्र में मीडिया की चौथे खंबे वाली भूमिका साप्ताहिक बाजारों में सब्जी बिक्रेता जैसे दिखती है। मुझे याद आता है वह दौर जब मरहूम वरिष्ठ पत्रकार वी पी सिंह ने दूरदर्शन पर आज तक की शुरुआत कर विषय से संबंधित समस्याओं और उसके निदान के लिए सार्थक बहस की शुरुआत की थी। मैं भी अकसर उसका दर्शक होता था। लेकिन आज न केवल ऐंकर बल्कि की भूमिका बदल गई हैं बल्कि चर्चा में शामिल होने वाले राजनेता भी आपस में कुत्तों की तरह जिस तरह लडते हैं उसे देखने के बाद मैं लंबे समय से अब टीवी का दर्शक नहीं हूँ। और तो और मैं उस कार्यक्रम को भी नहीं देख पाता हूं जिसकी चर्चा में मैं भी शामिल रहता हूँ। क्योंकि मैंने अपने कमरे से वर्षों पूर्व टीवी हटा दिया था<br /> मेरी राय है कि चर्चा के लिए विषय के चयन का तरीका पारदर्शी और एंकर की निष्पक्ष भूमिका होनी चाहिए और साथ में राजनीतिक दलों के नेताओं का कुत्तों की तरह चोंच लड़ाने पर रोक लगा कर सार्थक बहस के लिए इस तरह के प्रावधान शामिल हों जो भी उल्लंघन करे उसके दल को एक निश्चित समय तक टीवी के कार्यक्रम में शामिल होने पर रोक लगाई जा सके। अन्यथा लोकतंत्र का यह चौथा पायदान किसी भी तरह से अपनी भूमिका ईमानदारी से नहीं निभा पाएगा।Jan Sangharsh Vahinihttps://www.blogger.com/profile/14076940737803778157noreply@blogger.com