मुझे डर है कि कहीं अब यूपी को गुजरात न बना दिया जाए-अखिलेश


चुनाव नतीजों ने अखिलेश यादव की रणनीति को धराशायी कर दिया, सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। वे एक झटके में हीरो से ज़ीरो बन गए। इतनी बुरी शिकस्त की तो उन्होंने सपने में भी सोची नहीं थी। उन्हें उम्मीद थी कि उन्होंने हर दाँव सही चला है और उत्तरप्रदेश के मतदाता उन्हें भारी बहुमत से जिताएंगे। लेकिन नतीजों से उन्हें सदमा लगा है। यही नहीं, आलोचकों को हमला बोलने का मौक़ा मिल गया है। खुद मुलायम-शिवपाल उन्हें बख्शने के लिए तैयार नहीं हैं। आज़म ख़ाँ तो परिणाम आने के पहले ही उन पर निशाना साध चुके हैं। ऐसे में अब लाख टके का सवाल ये है कि उनका क्या होगा और क्या समाजवादियों की यादव सेना बिखर जाएगी। ज़ाहिर है कि यही सब प्रश्न मेरे दिमाग़ में हलचल मचा रहे थे, इसलिए लाज़िमी था कि उनका एनकाउंटर करने के लिए उनके दरबार में हाज़िर होता।
I-am-afraid-about-up-akhileshyadav

मैं जब पहुंचा तो अखिलेश हमदर्दी जताने वालों और हौसला बढ़ाने वाले अपने सिपहसालारों से घिरे हुए थे। वे कभी इस कंधे पर तो कभी उस कंधे पर अपना सिर रखकर जी हल्का करने की कोशिश में मुब्तिला थे, मगर दुख इतना बड़ा था कि वह कम होता ही नहीं था। बहरहाल, मुझे देखकर वे भीड़ से निकलकर आए और मुझे लेकर अंदर चले गए। एकांत में मुझसे भी यही सवाल करने लगे कि आख़िर उनसे ग़लती क्या हुई? जवाब देने के बजाय मैंने भी सांत्वना देते हुए सवाल-जवाब शुरू कर दिए।


अखिलेशजी, चुनाव नतीजों ने तो आपका दिल तोड़ दिया होगा। ऐसी हार की कल्पना तो आपने कभी नहीं की होगी?
सपने में भी नहीं। मुझे लगा था कि बहुत बुरा होगा तो यही कि बुआजी से समर्थन लेना पड़ेगा। मगर उसकी तो नौबत भी नहीं आई। एकदम से सूपड़ा साफ़ हो गया। मुझे लगता है कि बुआ ठीक कह रही हैं। ज़रूर इवीएम में घपला हुआ है।

देखिए, बहाने मत ढ़ूँढ़िए, हार स्वीकार कीजिए। जनता ने आपको दंड तो दिया ही है?
अगर विकास करने का दंड़ दिया है तो मैं अब सब पार्टियों से कहूँगा कि भाई सब करना विकास मत करना, क्योंकि जनता को ये पसंद नहीं आता। अगर मुझे दंड इसलिए दिया है कि मैंने दंगों की राजनीति नहीं की, सांप्रदायिक दंगे नहीं करवाए, लोगों को आपस में नहीं लड़वाया तब तो मैं इस दंड को कबूल करता हूँ और यूपी की जनता के लिए शुभकामनाएं देता हूँ। अब मेरा सबसे बड़ा डर यही है कि कहीं यूपी को गुजरात न बना दिया जाए।

तो अच्छा है न यूपी भी अगर गुजरात जैसा संपन्न प्रदेश बन जाएगा तो इसमें बुराई क्या है?
मैं गुजरात जैसी तरक्की की बात नहीं कर रहा। वो हो तो उस पर किसको आपत्ति होगी। मैं तो सन् 2002 और उसके बाद वहाँ चल रहे हिंदूत्ववादी राज की बात कर रहा हूँ। मुझे डर है कि चुनाव के दौरान जो श्मशान बनाम कब्रिस्तान और दीवाली बनाम ईद का नारा दिया गया अब उसे ज़मीन पर उतारा जाएगा। और मैं आपको बता दूँ कि दंगाई मानसिकता वाले लोग बस मौक़े का इंतज़ार ही कर रहे थे और अब उन्हें वह मिल गया है। अब वे खुलकर खेलेंगे। मुझे तो लगता है कि गंगा-जमुनी तहज़ीब पर अब तक का सबसे बड़ा ख़तरा मँडरा रहा है। जो काम अँग्रेज़ नहीं कर पाए, अब वह बीजेपी करके दिखाएगी।

देखिए, जनता ने साफ़ संदेश दे दिया है। उसे न आप पसंद हो और न ही आप और राहुल का साथ पसंद है। 
मुझे यूपी की जनता पर दया आ रही है। वह नहीं जानती कि उसने क्या कर दिया है। उन्होंने यूपी को एक ऐसी भट्टी में झोंक दिया है जिसमें बहुत कुछ खाक़ हो सकता है। ये बदलाव कितना महंगा पड़ेगा उसका उन्हें अंदाज़ा नहीं है।

मुलायम, शिवपाल सब आप पर बुरी तरह नाराज़ होंगे?
होंगे तो होंगे लेकिन उन्हें होना नहीं चाहिए। लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने ही सब कुछ तय किया था मगर क्या हुआ था सबको पता है। मैंने तो कोशिश की थी कि पिताजी और चाचाजी ने सरकार की जो इमेज बना दी थी, उससे उसे उबारकर जीत की ओर ले जाएं। मुझे जनता से भी यही उम्मीद थी कि वह मेरे काम को वोट दे, मगर उसने धर्म के नाम पर वोट डाल दिया। अब बताइए कि कोई सरकार विकास क्यों करना चाहेगी। वह तो वही करेगी जिससे फिर से चुनाव जीत सके। लेकिन जनता को अब राजनीतिक दलों को कोसने का कोई अधिकार नहीं रह जाता यदि वह अपनी ज़िम्मेदारी का सही ढंग से निर्वाह नहीं कर सकती।

क्या आपको नहीं लगता कि परिवारवाद की जो राजनीति मुलायम परिवार कर रहा था, उसने आपकी संभावनाओं और काम दोनों पर पानी फेर दिया?
एक वजह ये भी हो सकती है, मगर असली वजह तो यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्दों को पीछे धकेल दिया और चुनाव को हिंदू बनाम मुसलमान बना दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भी गिराया और ऐसे हथकंडे आज़माए जो उस पद पर बैठे व्यक्ति को शोभा नहीं देते। अब बताइए कि मतदान के एक दिन पहले आईएस की बात करना और बहाना बनाकर एक कथित आतंकवादी को मार भी देना क्या अच्छी बात है।

क्या आपको नहीं लगता कि काँग्रेस का साथ लेकर आपने एक बड़ी ग़लती की?
अब तो सभी यही कहेंगे, मगर यदि मैं ऐसा नहीं करता तो कहते कि मैंने सेकुलर वोटों का बँटवारा करवा दिया। काँग्रेस से जब हमारी डील हुई तो सबने यही कहा था कि अब हमारे गठबंधन को कोई नहीं हरा सकता। यानी सभी मानते थे कि ये डील ज़रुरी थी।

लेकिन मुलायम ने तो इसका विरोध किया था?
उन्हें ग़लत बताया गया था इसलिए उन्होंने बयान दे दिया था। लेकिन जब मैंने उन्हें समझाया तो उन्होंने तो मेरी पीठ ठोंकी और शाबाशी भी दी। बात ये है कि जब आप हार जाते हो तो आपके हर क़दम को ग़लत बताया जाता है, अगर मैं जीत जाता तो यही सब मेरी अकलमंदी और दूरदृष्टि के रूप में देखा जाता।

मतगणना के एक दिन पहले आपने बुआजी से समर्थन वापस लेने की बात कही थी। क्या आपको आभास हो गया था कि ऐसा कुछ होने जा रहा है?
बिल्कुल हो गया था, लेकिन मैंने सोचा नहीं था कि इतनी कम सीटें आएंगी।

बीएसपी से किस तरह के समझौते की उम्मीदें थीं आपको और क्या आप मायावती को नेता के रूप में स्वीकार कर लेते?
देखिए, अब तो इस पर बात करना भी बेकार है, मगर हाँ, मेरे दिमाग़ में बस इतनी सी बात है कि यूपी को सांप्रदायिक ताक़तों से कैसे बचाऊँ। मुझे दुख है कि मैं अब ऐसा कर पाने की स्थिति में नहीं हूँ।

क्या बीएसपी से समझौते के लिए आप मुख्यमंत्री की कुर्सी मायावतीजी को दे सकते थे?
मैंने कहा न कि अब इन पर बात करने का कोई मतलब नहीं है। अलबत्ता मैं हर किस्म का त्याग करने के लिए तैयार था। मैं मुख्यमंत्री की कुर्सी भी छोड़ सकता था।

अब आगे क्या सोचा है? क्या अब आप पार्टी का नेतृत्व आप छोड़ देंगे?
अगर नेताजी कहेंगे तो वह भी करूँगा। लेकिन मैं बता देना चाहता हूँ कि मैने चुनाव हारा है, हिम्मत नहीं। मैं पार्टी को फिर से खड़ा करूँगा और आप देखिएगा कि वह खड़ी होगी। चुनाव में हार-जीत होती रहती है। एक हार से घबराकर मैं चुप बैठ जाऊंगा ऐसा नहीं है।

आपकी पार्टी परिवारवाद की वजह से बदनाम है। क्या उसे परिवार के प्रभुत्व से मुक्ति मिलेगी?
देखिए, परिवार पार्टी की ताक़त है। वह उसे जोड़ने का काम करता है, उसे आगे बढ़ाने में सहयोग करता है। ये तो बीजेपी के दबाव में मीडिया वालों ने उसकी नकारात्मक छवि बनाई है। किस पार्टी में परिवार नहीं है बताइए आप मुझे। बीजेपी जो इतना शोर मचाती है, उसमें कितना परिवावाद है इसका पता उसके उम्मीदवारों की सूची देखकर ही लगाया जा सकता है।

ऐसा लगता है कि काँग्रेस अब सबके लिए बोझ बन चुकी है और जो भी उसका दामन पकड़ता है वही डूब जाता है। क्या अब भी आप राहुल के साथ काम करते रहेंगे?
बिल्कुल करता रूहूँगा, बल्कि अब तो और भी बढ़-चढ़कर क्योंकि बिना मिले सांप्रदायिक ताक़तों से नहीं लड़ा जा सकता। हमें एकजुट होना ही पड़ेगा और न केवल सपा काँग्रेस को बल्कि सभी पार्टियों को भी मिलकर सन् 2019 की तैयारी करनी पड़ेगी।

मैं आख़िरी सवाल करना ही चाह रहा था कि मुलायम अपनी पत्नी के साथ आ धमके। उनकी पत्नी यानी अखिलेश की सौतेली माँ आते ही शुरू हो गईं। कहने लगीं-“कर दिया न चौपट। खुद तो मुख्यमंत्री बन लिया, अब मेरे लड़के का क्या होगा। उसका तो करियर ही चौपट कर दिया तूने।“ मैं इस पारिवारिक कलह में पड़ना नहीं चाहता था इसलिए चुपचाप खिसक लिया।

मुझे डर है कि कहीं अब यूपी को गुजरात न बना दिया जाए-अखिलेश


Written by-डॉ. मुकेश कुमार


डॉ. मुकेश कुमार










अन्य पोस्ट :
ये हार शिवसेना की नहीं, मराठियों की है-उद्धव ठाकरे
मुझे तो लगता है कि यूपी हाथ से निकल गया-अमित शाह
बोले तो, अम्मा का आत्मा मेरे अंदर बैठा-शशिकला
जाहिलों के थप्पड़ों से बेहतर है समझौता-भंसाली
अब तो लगता है कहीं जाकर डूब मरूँ-उर्जित पटेल
आज नहीं तो कल, बोर्ड पर कब्ज़ा करके रहूँगा-अनुराग ठाकुर


वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।


Tags 
Share on Google Plus

0 comments:

Post a Comment