प्रियंका ने सही पकड़ा है, हमारा माइंड-सेट यही है-कटियार


राम मंदिर आंदोलन पर भड़काऊ बयानों और जब-तब विवादास्पद टिप्पणियाँ करके सुर्ख़ियोँ बटोरने के लिए बदनाम विनय कटियार की लाचारी समझ में आती है। पार्टी ने उन्हें हाशिए पर फेंक रखा है और उनके उस एजेंडे को भी जिसकी बदौलत वे कभी बीजेपी के चमकते सितारे हुआ करते थे। इसलिए ज़ाहिर है कि उनमें उपेक्षा का दर्द भी है और खिसियाहट भी। लेकिन पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा में कोई कमी नहीं आई है, इसलिए वे अपनी समझ से जितनी बेहतर हो सकती है, उसकी सेवा भी करते रहते हैं। प्रियंका गाँधी के बारे में उनकी टिप्पणी भी उनकी इसी भावना का इज़हार है। वैसे इस बहाने खुद को ख़बरों में बनाए रखने की रणनीति भी काम कर रही है। ऐसा करके वे उन नेताओं को खुश करने की कोशिश भी कर रहे हैं जो उन्हें इस दुरावस्था से निकाल सकते हैं।

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यही वजह है कि मीडिया उनके बारे में चाहे जो लिखे, दिखाए और सुनाए, वे मगन हैं, खुशी से उछले पड़ रहे हैं। इसीलिए एनकाउंटर के लिए उनसे ज़्यादा चिरौरी नहीं करनी पड़ी। उल्टे वे तो उसी समय बुलाने लगे, मगर मैंने उन्हें प्यार से समझाया कि संपादक जी ने मुझे पत्रकारिता के अलावा और भी अधिक महत्वपूर्ण काम दे रखे हैं इसलिए उनको निपटाकर ही आ सकूँगा। उनकी आवाज़ में थोड़ा निराशा आ गई, क्योंकि एक ज़माना था जब पत्रकार उनके पीछे दौड़ते थे और आज ये वक़्त आ गया है कि एक दो कौड़ी का पत्रकार कह रहा है पहले संपादक फिर कटियार। फिर भी उन्होंने अपनी निराशा को छिपाते हुए मुझे यथाशीघ्र आने को कहा। फोन रखने के बाद मुझे लगा कटियार साहब के साथ ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि क्या पता कब किसके दिन फिरें और वह मंत्री या प्रधानमंत्री बन जाए। ऐसी ग़लतियाँ मैं पहले भी कर चुका हूँ और पछताता भी रहता हूँ। लिहाज़ा मैंने संपादकजी को गोली दी और पहुँच गया कटियार साहब के दरबार में।

आदतन उन्होंने पहले तो एक समुदाय विशेष के लोगों के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं और फिर मीडिया पर अपना गुस्सा उतारने लगे। मैंने उन्हें ये कहकर शांत किया कि ये सब बातें आप इंटरव्यू में कहें तो ज़्यादा बेहतर होगा। वे मान गए और मैंने सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू किया।

कटियार साहब, आपने प्रियंका गाँधी के बारे में इतनी ओछी टिप्पणी क्यों की? 
भाई ये टिप्पणी ओछी कैसे हो गई पहले तो मुझे ये बताया जाए। क्या किसी महिला की सुंदरता के बारे में बात करना ओछेपन के दायरे में आता है? हमारे तो शास्त्र-पुराण सौंदर्य वर्णन से भरे पड़े हैं। हिंदू दर्शन स्त्रियों के सौंदर्य को विशेष महत्व देता है। ये हमारी हज़ारों वर्षों की परंपरा का हिस्सा है, हमारी प्राचीन संस्कृति का अंग है। मैंने तो अपनी सांस्कृतिक परंपरा का स्मरण करते हुए ही टिप्पणी की थी।

देखिए, आप धर्म, संस्कृति और परंपरा की आड़ न लें। सब मान रहे हैं कि आपकी टिप्पणी सेक्सिस्ट है।
पहले तो ये बताइए कि ये सेक्सिस्ट है क्या बला। मैं तो सेक्स जानता था और सेक्सी शब्द को भी सुना है किसी गाने या किसी फिल्म में। मगर मैं लगातार सुन रहा हूँ कि मैने सेक्सिस्ट रिमार्क किया है। मैंने अपनी पार्टी के तमाम नेताओं को फोन लगाकर पूछ डाला कि इस शब्द का मतलब क्या है। यहाँ तक कि नागपुर भी फोन मिला दिया, मगर किसी ने सही-सही बताया नहीं। अब आप ही समझाइए तो आपके सवाल का जवाब दूँ।

सेक्सिस्ट टिप्पणी का मतलब है लैंगिकवादी या लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण बात कहना।अब आपने ये लैंगिकवादी कह दिया, ये तो मुझे अँग्रेज़ी के शब्द से भी ज़्यादा टेढ़ा और अबूझ लग रहा है।

देखिए, सीधा सा मतलब है कि आपने प्रियंका पर महिला होने के आधार पर टिप्पणी की न कि उनके दूसरे गुणों के आधार पर। ये महिलाओं को नीची नज़रों से देखना माना जाता है, उन्हें देह तक सीमित कर देना माना जाता है।
मैं तो जीवन भर इसी नज़र से देखता आया हूँ महिलाओं को मगर आज पता चल रहा है कि ये नीची नज़रों से देखना कहलाता है। मेरी पार्टी के तमाम नेताओं को मैं जानता हूँ, वे सब मेरी ही तरह सोचते हैं और ऑफ द रिकॉर्ड इसी तरह की बातें भी करते हैं। हाँ, ये ज़रूर है कि वे खुलकर नहीं बोलते और मैं बोल देता हूँ।

इसीलिए तो प्रियंका ने कहा है कि आपके बयान से आपकी पार्टी का माइँडसेट ज़ाहिर होता है?
प्रियंकाजी ने सही पकड़ा है। हमारी पार्टी का माइंड सेट यही है, मगर इसमें ग़लत क्या है ये बताइए। अगर ये माइँड सेट न होता तो स्मृति ईरानी मुझसे बड़ी नेता बन जातीं और कैबिनेट मेंत्री भी? आप मानें या न मानें मगर भारतीय संस्कृति में सौंदर्य स्त्री की योग्यता का एक बड़ा मापदंड माना जाता है।

ये किस भारतीय संस्कृति की बात कर रहे हैं आप? हो सकता है मर्दवादी, ब्राम्हणवादी संस्कृति में महिलाओं को इस रूप में पेश किया जाता हो, मगर ये महिलाओं का अपमान है, उन्हें हीन मानना है।
पता नहीं आप मीडिया वालों को हो क्या गया है। पश्चिमी ज्ञान ने आप लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर दी है। आप लोग भारतीय संस्कृति को समझते तो हो नहीं, बस उसके पीछे पड़ जाते हो। महिलाओं को हमारे यहाँ देवी माना जाता है, उन्हें पूजा जाता है। आपने सुना नहीं यत्र नारी पूज्यंते........

तो फिर आप प्रियंका गाँधी को देवी क्यों नहीं मानते, उनकी पूजा क्यों नहीं करते? उन पर हल्की टिप्पणियाँ क्यों करते हैं?
देखिए राजनीति में अगर वे आएंगी तो उन्हें ये सब झेलना पड़ेगा।

इसका मतलब है कि आपको उनके राजनीति में आने से कष्ट है। वे राजनीति से दूर रहें तो आप उन पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे?
ये भी कोई पूछने की बात है भला। जब वे राजनीति में सक्रिय हुईं तभी तो मैने मुँह खोला, वरना मैं तो चुप ही था।

आपको उनसे डर लग रहा है?
मैं आफ द रिक़ॉर्ड कह सकता हूँ कि डर लग रहा है, बल्कि मुझे ही नहीं पूरी पार्टी को डर लग रहा है। मगर पब्लिकली नहीं कह सकता। आप इसे मत छापिएगा।

क्या प्रियंका में ऐसा करिश्मा है जिससे बीजेपी जैसी पार्टी घबराने लगे और घबराकर ऊलजलूल टिप्पणी करने लगे?
करिश्मा तो है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। जो इंकार करता है वह झूठ बोलता है। लेकिन हमें इस करिश्मा को बढ़ने से रोकना है, इसलिए ज़रूरी है कि शुरू में ही उस पर हमले शुरू कर दिए जाएं, उनकी खूबियों का ऐसा मज़ाक उड़ाया जाए ताकि वे महत्वहीन हो जाएं। ये हमारी पार्टी की हमेशा से रणनीति रही है।

लेकिन आपकी पार्टी ने तो खुद को आपके बयान से अलग कर लिया है। उसने कहा है कि यह आपकी निजी राय है और पार्टी का उससे कोई भी लेना-देना नहीं है?
पार्टी को तो यही कहना था। अगर नहीं कहेगी तो महिला वोटर तो सब ख़िलाफ़ हो जाएगा। उसके लिए लाज़िमी है कि वह दिखाने के लिए विरोध करे। मगर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अंदर ही अंदर वह खुश है बल्कि लोगों को एनकरेज भी करेगी। बहुत से नेताओं ने तो मुझे बधाईयां भी दी हैं।

कैसे मान लिया जाए कि आप सही कह रहे हैं?
अगर पार्टी मेरे बयान को आपत्तिजनक मानती तो मुझसे माफ़ी माँगने के लिए कहती, मेरे ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई करती, मगर उसने कुछ नहीं किया और न करेगी। जितने भी विवादास्पद बयान उसे फ़ायदेमंद लगते हैं, उनसे वह खुद को अलग कर लेती है, मगर कोई कार्रवाई नहीं करती। उसे पता है कि उनसे कैसे फ़ायदा लेना है।

ये तो साफ़ धोखाधड़ी है?
राजनीति धोखाधड़ी का दूसरा नाम है। इसमें जुमले धोखा देने के लिए गढ़े जाते हैं। वादे छल से वोट हड़पने के लिए किए जाते हैं। विवादास्पद बयानों का भी यही मक़सद होता है और ये सुनियोजित होते हैं, अनायास या अप्रत्याशित नहीं।

तो ये केशव प्रसाद मौर्य ने जो राम मंदिर का राग अलापा है उसका भी उद्देश्य यही होगा?
और नहीं तो क्या? चुनाव के पहले मंदिर का मसला उठाने का मक़सद बिल्कुल साफ़ है।

क्या बीजेपी को मोदी के करिश्मे पर यक़ीन नहीं है जो राम मंदिर का मुद्दा उठाना पड़ रहा है?
देखिए हम चांस नहीं लेना चाहते। अगर बिहार की तरह मोदी का करिश्मा यूपी में भी न चला तो बैक अप में ऐसे अस्त्र-शस्त्र होने चाहिए न जो संकट के समय इस्तेमाल किए जा सकें। राम मंदिर का मुद्दा भी तरकश में रखा ऐसा ही तीर है।

लेकिन आप लोग तो कहते हैं कि राम मंदिर आस्था का प्रश्न है?
हा...हा....हा.....हाँ है न.....चुनावी आस्था का प्रश्न, सत्ता में आस्था का प्रश्न......

धन्य हैं आप और आप लोगों की राम-भक्ति। ख़ैर अंत मे ये बताइए कि आपका उद्धार कब होगा? हाईकमान आप पर कृपा कब करेगा?
ये तो हाईकमान ही बता सकता है। मैं तो अपना कर्म कर रहा हूँ, बाक़ी उन्हें देखना है कि मेरा बेहतर उपयोग केंद्र में या फिर राज्य में कहाँ और कैसे करना है।

इतना कहते-कहते कटियार उदासी के भँवर में डूबने-उतराने लगे। चेहरे पर न उत्साह रहा और न ही तीखे तेवर। बस छाई हुई थी तो एक बेबसी, लाचारगी। मैंने उन्हें छेड़ने के बजाए अकेला छोड़ देना बेहतर समझा और चुपचाप चला आया।

वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।


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