तुसी देखना गुरू, बीजेपी की लुटिया डूबेगी और केजरी तुम्हें महँगा पड़ेगा.-सिद्धू


आवाज़-ए-पंजाब पार्टी का ऐलान करने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू उत्साह से भरे हुए हैं। समर्थकों से घिरे हुए वे अपनी मुहावरेदार भाषा में बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। उनके समर्थक भी उन्हें चने के झाड़ में च़ढ़ाने में लगे हुए हैं। फोन पर फोन आए जा रहे हैं बधाईयों के। उनकी पत्नी थोड़ी-थोड़ी देर में आकर उन्हें बता देती है कि किसका फोन आया है। वे अंदर जाते हैं और बात करके फिर अपने दरबार-ए-ख़ास में हाजिर।

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पिछली बार जब उनका एनकाउंटर किया था तो सिद्धू बहुत खुश हुए थे। बोले यार तूने तो मेरी दिल की बात कह दी। उस एनकाउंटर का लिंक उन्होंने जाने कितने लोगों को भेजा जिसकी वजह से वह वायरल हो गया।



नतीजतन, डेढ़ लाख से ज़्यादा हिट हुए और करीब पचीस हज़ार लाइक-शेयर। ज़ाहिर है उनका गदगद होना लाज़िमी था। अब जबकि उनको अपने जैसे लोगों की और भी ज़्यादा ज़रूरत है तो आगे बढ़कर गले लगाना ज़रूरी हो जाता है और उन्होंने यही किया भी। ओ बादशाहो कहते हुए गले से लगा लिया।

भाभीजी के हाथ की कड़क चाय पीने के बाद मैंने सिद्धू के साथ एनकाउंटर शुरू किया।

सिद्धूजी, आपने नई पार्टी का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन लगता है कि एक बड़ा जोखिम ले लिया है आपने?
तुसी ठीक कहते हो जी। मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि बिना प्रेक्टिस के शोएब अख्तर की गेंद खेलने खड़ा हो गया हूँ। लेकिन मेरे दोस्त बिना जोखिम के कुछ हासिल नहीं होता। सोने को चमकने के लिए आग में गलना ही पड़ता है। हीरा जब तक तराशा नहीं जाता तब तक हीरा नहीं कहलाता।

फिर भी बड़ी-बड़ी टीमें हैं आपके सामने और आपकी टीम बहुत कमज़ोर दिखलाई दे रही है? अभी तो ग्यारह खिलाड़ी भी नहीं हैं आपके पास?
मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर लोग जुटते गए, कारवाँ आगे बढ़ता गया। मैं तो निकल पड़ा हूँ गुरू। अब देखना तुसी खिलाड़ी भी आ जाएंगे।

लेकिन आपको नहीं लगता कि चढ़ाई बहुत ऊँची है?
चढ़ाई ऊँची है मगर मेरे अंदर चींटी जैसा हौसला है। जैसे चींटी चीनी को पीठ पर लादकर पहाड़ चढ़ जाती है न वैसे ही मैं भी चढ़ जाऊंगा।

क्या ये बेहतर नहीं होता कि आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चलते। चढ़ाई आसान हो जाती?
चाहता तो मैं भी यही था, मगर क्या है कि केजरीवाल ने गुगली फेंक दी। वो भी दूसरी पार्टियों की तरह मेरा इस्तेमाल करना चाहता था। कहने लगा तुम प्रचार करो और भाभीजी को चुनाव लड़वा दो, उसे मंत्री-वंत्री बना देंगे। यानी जिससे बचने के लिए बीजेपी को छोड़ा वही वे करवाना चाहते थे। अब अगर प्रचार ही करना होता तो बीजेपी क्या बुरी थी।

लेकिन केजरीवाल ने ऐसी शर्त क्यों रख दी?
पता नहीं गुरू। बहुत शातिर खिलाड़ी है केजरीवाल। दूर की सोचकर चलता है, हवा ही नहीं लगने देता। हो सकता है खुद मुख्यमंत्री बनना चाहता हो या फिर हो सकता है इसलिए बच रहा हो कि किसी बीजेपी वाले को कमान दे दी तो पार्टी की बदनामी न हो जाए।

लेकिन केजरीवाल ने आपके बारे में एक भी ग़लत बात नहीं की?
मैंने कहा ना बहुत पहुँचा हुआ आदमी है। धोनी जैसा कैप्टन है वो। सबसे लड़ता भी है और ऑप्शन भी खुला रखता है। उसे पता है न कि क्या पता कब मेरी ज़रूरत पड़ जाए। हो सकता है चुनाव बाद मुझे ही मुख्यमंत्री बनाना पड़े या मेरा समर्थन लेकर मुख्यमंत्री बनना पड़ जाए।

आप ठीक कह रहे हो। अगर केजरीवाल चतुर नहीं होते तो यहाँ तक नहीं पहुँचते। लेकिन आपने भी तो अपने ऑप्शन खोल रखे होंगे?
वाह गुरू अब आपने हमको ही घेर लिया। इसका जवाब ये है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसमें कोई किसी का स्थायी मित्र या शत्रु नही होता। हालाँकि मैं लडाई सत्य की लड़ रहा हूँ, पंजाबियों के हक़ की लड रहा हूँ, मगर सचाई तो यही है न कि अगर पॉवर न हुई तो आप कुछ नहीं कर सकते। चुनाव क्या है आख़िर-सत्ता की लड़ाई और जब हम चुनाव लड़ रहे हैं तो सत्ता जीतने के लिए। इसलिए ऑप्शन खुले हुए हैं।



यानी ज़रूरत पड़ी तो आप बीजेपी-अकाली के साथ भी जा सकते हैं?
अभी इसके बारे में कुछ कहना ठीक नहीं। हम तो चुनाव जीतने के लड़ रहे हैं और हमें उम्मीद है कि अपने दम पर जीतेंगे भी।

आपका दम ही कितना है जो जीतने का दावा कर रहे हैं?
देखो गुरू चुनाव अपने दम से नहीं जनता के दम से जीता जाता है। और मेरा दम भी कम मत आँको। आप ही बताओ इस समय पूरे पंजाब में कौन सा फेस है जिसे पंजाब के लोग मुख्यमंत्री बनाना चाहेंगे। काँग्रेस के पास अमरिंदर सिंह हैं लेकिन उनकी पार्टी की हालत खराब है। अकाली-बीजेपी तो ख़ैर डूब ही रही हैं तो उनके नेताओं को तो खारिज़ ही कर दो। अब रही बात आप की तो, वहाँ तो ऐसी महाभारत मची हुई है कि वे किसी एक नेता पर कभी राज़ी नहीं होंगे। अब बचा मैं यानी नवजोत सिंह सिद्धू, बिल्कुल पाक-साफ़। कभी पंजाब का सिर झुकने नहीं दिया। 

तो आपकी पार्टी की एकमात्र यूएसपी खुद आप हो?
ये बात तो शीशे की तरह साफ़ है। आवाज़-ए-पंजाब का मतलब ही आवाज़-ए-सिद्धू है। मैं जो बोलूंगा वही पार्टी की आवाज़ बन जाएगी। वैसे भी पार्टी में और कोई बोलने वाला होगा ही नहीं, होगा तो उसे बोलने का मौक़ा मिलेगा ही नहीं क्योंकि मैं जब बोलना बंद करूँगा तब न उसका नंबर आएगा।



आपका कोई एजेंडा भी होगा?
एक ही एजेंडा है जी, मुझे मुख्यमंत्री बनाओ। मैं सबसे सही बंदा हूँ और सही बंदा अगर मुख्यमंत्री बन गया तो सब कुछ अपने आप ठीक हो जाना है।

फिर भी जनता से कुछ वायदे तो करने होंगे न?
वायदा तो कर दिया न। अभी तक सारा मुनाफ़ा एक ही परिवार कमा रहा है। मैं ये नहीं चलने दूँगा। मैं कई परिवारों को मुनाफ़ा खाने दूँगा। पब्लिक को भी उसमे से हिस्सा मिलेगा।

आप तो गोलमोल बात कर रहे हैं। जनता इसका क्या अर्थ निकाले?
चुनाव में गोलमोल वादे ही करना चाहिए नहीं तो हालत केजरीवाल जैसी ही हो जानी है गुरू। मत भूलो कि दिल्ली में मोदी की सरकार है और चंडीगढ़ में उनका भेजा हुआ गवर्नर होगा। मुख्यमंत्री को वही करना होगा जो मोदीजी चाहेंगे। और फिर ज़्यादा मुद्दे होने से पब्लिक कन्फ्यूज हो जाती है। इसलिए अपना तो सिंगल पॉइंट एजेंडा है-मुझे मुख्यमंत्री बनाओ। 

मैं समझ गया कि सिद्धू का गेमप्लान क्या है और उसके सफल होने के चांसेज क्या हैं। लेकिन मैं उनसे ये कह नही सकता था, क्योंकि तब मुझे वे अगली बार एनकाउंटर कभी नहीं करने देते। मैंने उन्हें ऑल द बेस्ट कहा और चला आया।


वैधानिक चेतावनी - ये व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया काल्पनिक इंटरव्यू है। कृपया इसे इसी नज़रिए से पढ़ें।

Written by-डॉ. मुकेश कुमार











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