दुकान


जिस दुकान में
पीने जाता हूँ मैं
वहाँ एक औरत रहती है।

वहाँ एक औरत रहती है इसलिए
शाम से रात तक
ठुँसे होते हैं मर्द
उस दुकान में
जाम चूमते हुए

और मुझसे
एक भी घूँट नहीं पिया जाता
लौट आता हूँ
वह औरत वहाँ रहती है इसलिए।

एक शाम उससे पूछा मैंने
तुम कौन हो
उसने कहा मैं प्रेम नहीं
मैं दूसरी दुकान खोजने निकल पड़ा।


असमिया कविताओं के विद्रोही स्वर
पिछले तीन-चार दशकों में असमिया कविता ने नए रंग-रूप अख्तियार किये हैं और उनका आस्वाद भी बदला है| मगर कविता में विद्रोह कि जो परम्परा नए कवियों को विरासत में मिली थी वह मूल भावना बनकर उसमें न केवल मौजूद है बल्कि और भी मज़बूत हुई है| यहाँ प्रस्तुत है पांच महत्वपूर्ण कवियों की रचनाएँ. असमिया से अनुवाद पापोरी गोस्वामी ने किया है ।

अन्य कवितायेँ :
केश खुले ही रहने दो याज्ञसेनी
आग
अतिथि
दुकान




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